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शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

तीन नवगीत

डॉ मृदुल शर्मा

  1.

दिन कटे
नैराश्य-भय से लड़खड़ाते।

रात-दिन थे कैद घर में
सिर झुकाये।
भूत भय का
अभय हो आंखें दिखाये।

कर्म-सैंधव 
देह  में थे छटपटाते।।

हो रहा था
काल का अनवरत तांडव।
गीत गूंगे हो गये थे
मौन कलरव।

पास आते
स्वजन भी थे थरथराते।।

मुश्किलों के पांव
अब पीछे मुड़े हैं।
फिर पखेरू जीत के,
नभ में उड़े हैं।

आ गये दिन फिर
हंसी से खनखनाते।।

       2.


किसे खबर थी,
ऐसे दिन भी आएंगे।।

स्वर गूंजेंगे,
मै-मेरा, तू-तेरा के।
सुबह-शाम
संबंधों के होंगे फांके।

मुर्दे खुद ही, 
अपना बोझ उठायेंगे।।
किसे खबर थी,
ऐसे दिन भी आएंगे।।

जाति-धर्म के बाड़ों में
रहना होगा।
देख हवा के रुख को ही
बहना होगा।

राम-कृष्ण तक
बाड़ों में बंट जाएंगे।।
किसे खबर थी,
ऐसे दिन भी आएंगे।।

सूरज की किरणें 
गोदामों में होंगी।
सत्य-न्याय की
ध्वजा उठायेंगे ढोंगी।

बलिदानों को
हाट दिखाये  जाएंगे।
किसे खबर थी,
ऐसे  दिन भी आएंगे।।

      3.

पंछी यहां गीत मत गाना।।

तुम हो बियाबान के वासी।
इस बस्ती के लिए प्रवासी।
ठकुरसुहाती को कहने में,
अगर हो गयी चूक जरा सी।

बहुत पड़ेगा फिर पछताना।।
पंछी यहां गीत मत गाना।।

यहां व्यवस्था घुटनों चलती।
खादी है जनता को छलती।
पैसों की खातिर खाकी भी,
कठपुतली की तरह मचलती।

रीति यहां की है बिक जाना।।
पंछी यहां गीत मत गाना।।

जोड़-जुगाड़ अगर कर पाओ।
तो फिर तुम भी मौज उड़ाओ।
इसमें अगर नहीं हो माहिर,
तो प्राणों की खैर मनाओ।

कौन काट दे कब परवाना।।
पंछी यहां गीत मत गाना।।

569क/108/2, स्नेह नगर,
आलमबाग, लखनऊ-226005
मो.9956846197

परिचय - जन्म -01-05-1952, शिक्षा-एम.ए., पीएच.डी. ,  गद्य-पद्य की तेईस पुस्तकें प्रकाशित। दो कृतिया उ.प्र.हिंदी संस्थान और तीन कृतियां अन्य साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत। विगत चार दशकों में शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में पांच सौ से अधिक रचनाएं प्रकाशित। उ.प्र.हिंदी संस्थान  द्वारा साहित्य भूषण सम्मान,         
वर्तमान में छंद बद्ध कविता की त्रैमासिक पत्रिका "चेतना स्रोत"का अवैतनिक संपादन ।

मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित  नवगीत
प्रकाशनार्थ प्रेषित।


आदमी

 
मैं
इंसान हूं
किसी भीड़ की आवाज नहीं
किसी स्लोगन का पक्षधर नहीं
 
हूं
मैं इंसान ही
उसी भीड़ का
उसी स्लोगन का
 
तुम्हें तो पता है
मुझे तोड़ा गया
हर बार स्लोगन से
और बनाया गया
हर बार भीड़ का अंग
 
हां
इंसान हूं मैं
बिना इंसानियत का.
 
 
उनका प्रकट होना
 
तुम्हारे विचारों में
फिर जाग गया प्रहरियों सी नींद
और खो गया
रंग त्योहारों से
आरज़ू भाषाओं से
प्रेम घरों से
 
तुम्हारे बाजुओं में
प्रकट हुआ गुरिल्ला
लाव लश्कर के साथ
और चमकने लगा भय
हमारे खलिहानों में
 
यहां अनुराग के आंच में
बेड़ियों में बंधा उत्सव
और चिरागों की आभाएँ
बीमार पड़े हैं गांव में
कि आंसुओं में तब्दील
हर दिल की आरजू
भूखा प्यासा भटका है यहीं कहीं
 
हां तुम्हारे रास्तों में
कोई नदी प्रकट नहीं होती
ना ही कोई फूल मुस्कुराता है
निकलता है एक बम
जो फूटता है किसी बस में
किसी चौराहे पर
और हम तब्दील हो जाते हैं
एक टूटे आईने के शक्ल में.
 
 
मोतीलाल दास
डोंगाकाटा, नंदपुर
मनोहरपुर - 833104, झारखंड
मो.9931346271/7978537176

रविवार, 26 दिसंबर 2021

कविताएँ केशव शरण

एक जुगनू
_________

वह सूरज को बतायेगा
वह उसका मित्र है
वह चांद को बतायेगा
वह उसका दोस्त है
वह सितारों को बतायेगा
वे उसके चेले हैं

पत्ते-पत्ते से
बूटे-बूटे से

और उड़ेगा
टिमटिमा-टिमटिमा कर
______________________


वह बहुत घबराया है
__________________

एक को
सर देना है
एक को रक्त
एक को पसीना
एक को
घर देना है
फूंक अपना

वह बहुत घबराया है
जिसके हिस्से आया है
सिर्फ़ एक रोयें का
बलिदान

वह कहीं मुख़बिर न बन जाय !
__________________________



ध्यान
________

मैंने जल लिया
आसमान लिया
जल में आसमान
और एक पेड़ का अक्स लिया
जल में मछलियां लीं
जल ऊपर पत्थर की सीढ़ियां लीं
और ध्यान किया
मुंह लटकाये औंधा

मुझे कुछ न कौंधा
प्रिये तेरे सिवा !
__________________________




भोगेच्छुक 
_____________

भोगेच्छुक दृष्टि
विज्ञापन पर फैली है
लेकिन असल चीज़ थैली है
जिसकी कमी मजबूर कर देती है
भोग से 
दूर कर देती है

पर भोगेच्छुक दृष्टि वाला 
योगेच्छुक नहीं हो जाता
वह वंचना के दुख उठाता 
लेकिन भोगेच्छुक दृष्टि छोड़ नहीं पाता 
और दृष्टियों से भी होता हुआ अंध
करने में लग जाता 
थैली का प्रबंध 
____________________________


अंत तक 
_________


अभी मेरे पास समय है
ख़याल यही था मेरा
अंत तक 
______________________
एस 2/564 सिकरौल 
वाराणसी 221002
9415295137

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

छन्द युग आएगा

गंगा जल लेकर चल मन तू, विश्वनाथ काशी के धाम।
चक्र थमेगा जन्म-मरण का, करे जो भक्ति तू निष्काम।।
चिंता, व्यथा मिटेगी मन से, तन से पीड़ा होगी दूर,
मनमौजी-सा जीवन होगा, मोद रहेगी नित भरपूर,
कुछ क्षण दें दें भोले को बस, जग को दें दें आठों याम।
चक्र थमेगा जन्म-मरण का, करे जो भक्ति तू निष्काम।।
नभ-सा नीरव मौन सधेगा, अंतस गूॅंजे अनहत नाद,
चिर निद्रा-सा ध्यान लगेगा, मिट जाएंगे सारे वाद,
सम ही लगेंगे सुख-दुख और, रैन-दिवस अरु ढलती शाम।
चक्र थमेगा जन्म-मरण का, करे जो भक्ति तू निष्काम।।
माया फिर न प्रभावी होगी, मृग-तृष्णा का होगा अंत,
निर्विकार से तन-मन होंगे, बरसेगा आनंद अनंत,
दर्प भाव की कारा टूटे, प्रशमित होवे रति पति काम।
चक्र थमेगा जन्म-मरण का, करे जो भक्ति तू निष्काम।।
डॉ पवन कुमार पाण्डे
असिस्टेंट प्रोफेसर
निजामाबाद, तेलंगाना
98487815408

मोह -गँधी गीत बन

कृष्ण मोहन प्रसाद 'मोहन '
 
मोह -गँधी गीत बन,
क्यों छेड़ती हो?
मैं जहाँ चूका सृजन हूँ,
और तुम बीती कहानी,
इस अगन्धी मरु -निशा की,
उष्ण-शुष्क वयार में भी,
खनखनाती तुम ---
तुम्हारी चूड़ियों की लय,
एक आदिम -बोध की,
मादक -ऋचा-सी,
अलस नयनों में,
शब्द रूपाकार होती,
क्यों अजानी राह पर,
तुम घेरती हो?
मोह -गंधी गीत बन,
क्यों छेड़ती हो?
रात की चूनर सितारों से टंकी हैं,
बे -खबर -सा भोर ज़ब सोया हुआ हैं,
तुम सजी -सी आरती करपूर -गंधी,
क्यों अचानक ही जली हो?
छीन कर फिर बाँसुरी उस कृष्ण की,
क्यों टेरती हो?
मोह गंधी गीत बन, क्यों छेड़ती हो?
जनम -जनम की रूठी राधा,
मनुहारों में सुर ज़ब साधा,
मौन -मुखर मुस्कान दिखा कर
छिपी -छिपी जाने किस तल में ---
छोड़ कृष्ण को आधा -आधा,
फिर गीतों में, उमड़ -घुमड़ कर,
असमय, कुसमय, चुपके, छिपके,
क्यों पेरती हो?
मोह -गन्धी गीत बन क्यों छेड़ती हो?
मोह गंधी गीत बन क्यों छेड़ती हो?


मुजफ्फरपुर (बिहार )

अनदेखे जख्म


गोपेश दशोरा 

वक्त के साथ, जख्म भरा नहीं करते,
मरने वालों के साथ, मरा नहीं करते।
जिन्दगी गुजरी हो, जिनकी सूनेपन में,
वह लोग अन्धेरों से, डरा नहीं करते।
मुसीबतों से लड़ के, आगे बढ़ने वाले,
खड़े खड़े बस बात, करा नहीं करते।
खुद की गलती, मान लेते हैं खुद ही,
कभी गैर पे इल्जाम, धरा नहीं करते।
जिसे कर के, झुक जाए सर सब का,
ऐसा काम भूल कर, करा नहीं करते।
जो दिखते नहीं, पर दर्द देते रहते हैं,
ऐसे जख्मों को कभी, हरा नहीं करते।

उदयपुर, राजस्थान।

चाहता वो हमें इस दिल में बसाना शायद

 

चाहता वो हमें इस दिल में बसाना शायद।
बात ये भूल गया हम को बताना शायद।
झूठ को सच की तरह मान रहे थे सारे।
जो असल सच वो किसी ने भी न जाना शायद।
प्यार की राह में कुरबान हुए कितने ही।
शेष दुनिया में रहा उन का फसाना शायद।
वास्ते देश के जो जान गँवाए अपनी।
याद उन को ही रखेगा ये जमाना शायद।
खार ही खार नजर आ रहे हैं गुलशान में।
बागबां भूल गया फूल खिलाना शायद।
प्यार में हो गया पागल जो अगर मैं उस के।
वो भी तो चाह रहा मुझ को ही पाना शायद।
शाम को लौट के कश्यप न परिंदा आया।
फँस गया जाल में वो देख के दाना शायद।
****
रचनाकार
प्रदीप कश्यप


मुस्कुराया बहुत

-किशोर छिपेश्वर"सागर"
 
वक्त ने फिर मुझे आजमाया बहुत
एक मैं था कि बस मुस्कुराया बहुत
कारवां है कि जो हौसलों से चला
लक्ष्य उसने यहाँ शीघ्र पाया बहुत
जिंदगी की उलझनों से परेशान था
मैंने अपने को ही तो मनाया बहुत
मेरी तनहाइयों की न पूछो दशा
इस जमाने ने मुझको सताया बहुत
याद दिल से न जाती तुम्हारी कभी
भूलना था जिसे याद आया बहुत
गीत-ग़ज़लों का मैंने सहारा लिया,
आज हालात ने है लिखाया बहुत

बालाघाट

करव‌ अन्न के मोल


- मनीराम साहू 'मितान'
 
करव‌ अन्न‌ के मोल‌ जी, काम हरय ये नेक।
लगय बछर उपजाय मा, देथव छिन मा फेंक।
सहिके घाम किसान मन, करथें खेत तियार।
घेरी बेरी जोंतथें, खातू माटी डार।
बोये बर दिन रात उँन, कर दथें जी एक।
लगय बछर उपजाय मा, देथव छिन मा फेंक।
नींद कोड़ चत्वारथें, पानी खूब पलाँय।
बरसा झड़ी धुँकान मा, भींजत ठुठर कमाँय।
करथें उँन‌ जी प्रान‌ दे, रइथे बुता जतेक।
लगय बछर उपजाय मा, देथव छिन मा फेंक।
फसल‌ कहूँ अब पाकगे, लुवई मिँजई काम।
खँटथे नित दिन जाड़ मा, मिलय नही आराम।
समझव गुनव किसान सब, सहिथें दरद कतेक।
लगय बछर उपजाय मा, देथव छिन मा फेंक।

कोलकाता में अशोक अंजुम को मिला "काव्य-वीणा सम्मान"

 

कोलकोता। गत दिवस भारतीय भाषा परिषद्, कोलकाता के भव्य सभागार में कवि श्री अशोक 'अंजुम' को उनके दोहा- संग्रह "प्रिया तुम्हारा गांव" के लिए अखिल भारतीय परिवार-मिलन संस्था द्वारा सन् 2020 के "काव्य वीणा सम्मान" से अलंकृत किया गया। सम्मान के अंतर्गत् ₹51000 /-(इक्यावन हज़ार रुपए) शॉल, स्मृति-चिह्न, अभिनंदन-पत्र, उत्तरीय, श्रीफल आदि सम्मान-स्वरूप प्रदान किए गए। इस अवसर पर 2021 के काव्य वीणा सम्मान से कवि श्री जयकुमार रुसवा को उनकी पुस्तक "मन की पीर" के लिए सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ श्रीमती शोभा चूड़ीवाल की सरस्वती वंदना से हुआ, तत्पश्चात् डॉ. राजश्री शुक्ल ने पुस्तक-चयन-प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए श्री अशोक अंजुम के दोहा वैशिष्ट्य को रेखांकित किया और उनके अनेक दोहे सुनाए। संस्था के सचिव श्री संदीप अग्रवाल ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। श्री ईश्वरी प्रसाद टांटिया ने प्रशस्ति-पत्र वाचन करके उसे श्री अंजुम को भेंट किया। संस्था के संस्थापक श्री अरुण चूड़ीवाल ने आकर्षक स्मृति-चिह्न भेंट कर अशोक अंजुम को सम्मानित किया। इस अवसर पर कवि श्री अशोक अंजुम ने अपने लगभग आधा घंटे के वक्तव्य और काव्य-पाठ द्वारा उपस्थित विद्वत जनों के समक्ष प्रमाणित कर दिया कि वे इस काव्य-वीणा सम्मान के सर्वथा योग्य हैं ‌। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विद्वान साहित्यकार डॉ प्रेमशंकर त्रिपाठी ने कवि अशोक 'अंजुम' की रचनाधर्मिता की भूरि-भूरि प्रशंसा की। संचालन वरिष्ठ कवि, नाटककार श्री राजेंद्र कानूनगो ने किया। इस अवसर पर कवि श्री अंजुम की पत्नी कवयित्री श्रीमती भारती शर्मा को भी उत्तरीय पहनाकर सम्मानित किया गया। डॉ. ऋषिकेश राय, श्री विजय झुनझुनवाला, श्री रावेल पुष्प, कवि रवि प्रताप सिंह, श्रीमती आशा राज कानूनगो, श्री विजय अत्रि, अंजू गुप्ता, विनीता मनोत, अमित मूंधड़ा, श्री योगेन्द्र गुप्ता, श्री बंशीधर शर्मा, अरुण मल्लावत, महावीर बजाज, सुरेश चौधरी आदि बड़ी संख्या में साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों की उपस्थिति रही। कार्यक्रम की पूर्व संध्या पर अर्थात् एक दिन पहले श्री अशोक 'अंजुम' के सम्मान में श्री अरुण चूड़ीवाल ने अपने बंगले के विशाल, खूबसूरत प्रांगण में काव्य-संध्या का आयोजन भी किया जिसमें लगभग एक घंटा श्री अंजुम ने अपने गीत, ग़ज़ल, दोहे और हास्य-व्यंग्य कविताओं का पाठ करके उपस्थितजनों को आह्लादित किया।

मंगलवार, 21 दिसंबर 2021

इश्क़ में मुमकिन तो है जज़्बात लेकिन

तान्या 

इश्क़ में मुमकिन तो है जज़्बात लेकिन
एक-तरफ़ा में मिलेगी मात लेकिन
फिर से उसने पहले गुड-नाइट कहा है
फिर से दिल में रह गयी कुछ बात लेकिन
साथ बैठे बात करनी थी हमें कुछ
दोनों बैठे रोये पूरी रात लेकिन
फूँक कर कैंडल बुझाया जब भी खुद को
केक खाकर सबने दी सौग़ात लेकिन
लेना-देना कुछ नहीं है तुझसे फिर भी
सुनती हूँ अब भी वही नग़मात लेकिन
उम्र भर ऐसे रहे हम जैसे उसने
दी मुहब्बत हो, लगी ख़ैरात लेकिन
ख़्वाब जो बिखरे वही गड़ते हैं फिर भी
पूरा होना नींद की हाजात लेकिन
प्यार देते हैं जिसे पिंजड़े में रखकर
मैं परिन्दे की वही हूँ ज़ात लेकिन

-: प्यारी बिटिया :-




सदा सत्य ही कहती बिटिया।
लक्ष्मी बाई लगती बिटिया।।

शब्दों के तीरों से कैसे,
रिपु को आहत करती बिटिया।।

करे सदा बेवाक टिप्पणी,
नहीं किसी से डरती बिटिया।।

सदाचार के साथ खड़ी है,
अत्याचार कुचलती बिटिया।।

एक अकेली सब पर भारी,
कोई जुल्म न सहती बिटिया।।

अपनी आँखें कान खोलकर,
सँभल-सँभल पग धरती बिटिया।।


नीता अवस्थी (कानपुर)



गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

रक्तिम अधरों के पंकज उर

संतोष कुमार श्रीवास
 
रक्तिम अधरों के पंकज उर,मृदु सुमन सुवासित होते हैं।
मरंद के झरते हैं निर्झर,मधुकर लालायित होते हैं।।
नित सजल नेह की सरिता मे।
मृदु कुमुद नीड़ की कविता मे।
उस छंद बद्ध की ड़गर सुघड़।
मन सुमन सुवासित होते हैं।
रक्तिम अधरों के पंकज उर,मृदु सुमन सुवासित होते हैं।
मरंद के झरते हैं निर्झर,मधुकर लालायित होते हैं।।
करुणा की केशर क्यारी मे।
अरुणिमा अधर फुलवारी मे।
उरतल की निश्छल गात महा।
हृद् मुकुर आह्लादित होते हैं।
रक्तिम अधरों के पंकज उर,मृदु सुमन सुवासित होते हैं।
मरंद के झरते हैं निर्झर,मधुकर लालायित होते हैं।।
नयनों की शीतल छाया मे।
आंसु की गहनतम माया मे।
पलकों की निर्मल कुंज मृदुल।
नित नेह सुभाषित होते हैं।
रक्तिम अधरों के पंकज उर,मृदु सुमन सुवासित होते हैं।
मरंद के झरते हैं निर्झर,मधुकर लालायित होते हैं।।
नित-नित चरणों के पावन रज।
मुकलित,प्रमुदित,रक्तिम नीरज।
लालायित नयनन की आभा।
अश्रु सिंधु समाहित होते हैं।
रक्तिम अधरों के पंकज उर,मृदु सुमन सुवासित होते हैं।
मरंद के झरते हैं निर्झर,मधुकर लालायित होते हैं।।


कोरबा (छत्तीसगढ़)

बाल गीत

 मदारी और बंदर काका

दिखा दे, दिखा दे, बंदर काका डांस
डांस, डांस, डांस कि भई मिला जो चांस
तुझे घेरे खड़े देखो बाबू और साब
करो सलाम ये हैं माई और बाप
बच्चे जो दौड़े हैं छोड़ सारा- कुछ
कौतुक तेरे देख हो लेंगे खुश
अजी, आएगा खूब मजा, लेंगे सब रास
दिखा दे, दिखा दे, बंदर काका डांस
कैसे झाड़ू लगाती बता दादी, नानी
पनघट से पनिहारिन लाती है पानी
लकुटिया ले दादा जी चलते हैं कैसे
पापा जी अखबार पढ़ते हैं कैसे
कैसे चलते हैं छतरी ले गरमी, चौमास
दिखा दे, दिखा दे, बंदर काका डांस
हनुमंत ने कैसे समंदर को लांघा
गल्लू भाई कैसे चलाता है तांगा
कैसे श्रवण कुमार ने कांवरिया उठाई
माता और पिता की सेवा बजाई
सबसे है बढ़ सेवा, हिम्मत, विश्वास
दिखा दे, दिखा दे, बंदर काका डांस
दही को दादी बिलोती है कैसे
मोती को मम्मा पिरोती है कैसे
कैसे गूंगे बतियाते इशारे से हैं
कैसे लंगड़े जन चलते सहारे से हैं
कोई दिखता है कैसे हंसमुख, उदास
दिखा दे, दिखा दे, बंदर काका डांस
नई नवेली शरमाती है कैसे
बता अपना घूंघट उठाती है कैसे
फिर दो दिन में रंग अपना कैसा दिखाती है
त्यौरी चढ़ाती कैसे मुंह को फुलाती है
और मियां को नचाती कैसे कठपुतली नाच
दिखा दे, दिखा दे, बंदर काका डांस
काम पसंद है कि आराम पसंद है
आराम याने क्या हराम पसंद है
काम बिना पैसा तू पाएगा कैसा
पेट बोलो अपना चलाएगा कैसा
तब डौकी को तेरी ले जाएगी सास
( अच्छा, तो काम करेगा )
वाह, वाह, वाह मेरे काका शाबाश
दिखा दे, दिखा दे, बंदर काका डांस
(2)
गर मिले कुनकुना पानी
चार दिनों से नहीं नहाए
बंदर बंडू मामा
और न ठंड में धो पाए वह
कुर्ता और पाजामा
शॉल, कोट, जैकेट, स्वेटर और
टोपी, गरम रजाई
तिस पर स्वर हा, हा, हू, हू का
उच्चार रहे हैं हाई
बंदरिया मामी बोलीं- पहले
जाओ, आओ नहाकर
वरना मैं चल दूंगी मायका
ठेंगा तुम्हें दिखाकर
मुझसे सहन न होगा तेरा
बासी- बासी रहना
ओ बासीमैन सोच बतलाओ
क्या है तेरा कहना
बंदर मामा भभक के बोले
बासी, हर्गिज कहें न आप
क्या नहीं दीखता कितने ताजे हैं
मुंह से निकल रही है भाप
अजी, नहाना थोड़े ही है
छोटी- मोटी कुर्बानी
फिर भी खूब नहा लूंगा मैं
गर मिले कुनकुना पानी
(3)
चंदा मामा आओ ना
चंदा मामा आओ ना
और न देर लगाओ ना
सब बंधा चुके कब से राखी
बस एक अकेले तुम बाकी
चंदा मामा आ गया ना
बूझ रहीं दादी, काकी
आ बुझा दो तुम्हीं पहेली
दूर से मत मुस्काओ ना
चंदा मामा आओ ना
तेरी किस्मत का क्या कहना
मम्मा सी पाई बहना
जिसको खलते रहता हरदम
तेरा दूर देश रहना
ऐसी बहन को आज के दिन तो
हर्गिज नहीं भुलाओ ना
चंदा मामा आओ ना
वह पूजा थाल सजाएगी
चंदन- तिलक लगाएगी
और बांधकर राखी तुमको
रसगुल्ले खिलाएगी
आ जाओ, आ भी जाओ
मत गैरों से शरमाओ ना
चंदा मामा आओ ना
तेरे आंगन के सब तारे
सुंदर- सुंदर, प्यारे- प्यारे
राखियां हैं, बांधे मम्मा के
झिलमिल- झिलमिल, न्यारे- न्यारे
आओ फिर बंधवाकर अपना
आंगन और सजाओ ना
चंदा मामा आओ ना
कमलेश चंद्राकर

आत्ममंथन

दिनेश्‍वर दयाल 
 
हमारी त्रुटियों ने मुझसे कहदी,
सुनो दिनेश्वर विचार करना l
संस्कार दायित्व कर्तव्य तुम्हारा,
धर्म समझकर ही निर्णय लेना ll
गलत नहीं तुम सही कहा हो,
जरा सा मंथन जरूर करना l
बच्चे तो बच्चे परिजन भी बदले,
गद्दारी किसने कि ध्यान रखना ll
ना वो तुम्हारा कहा ही मेरा,
समस्या गम्भीर समझ तू चलना l
उत्साह तुम्हारा आत्मज्योति जननी,
कृपा जगत जन कि माँग करना ll
ना कोई शत्रु मित्र ही जग में,
निष्ठां से अभिनय सदा तू करना l
युगो तपस्या फल प्राप्त कर तुम,
सच्चाई से ना मुँह मोड़ चलना ll
हे आत्मज्योति आदेश तुम्हारा,
निष्ठां से पालन हमें हैं करना l
तू मित्र मेरी हो युग सहायक,
काया तो नश्वर मिल नष्ट होना ll

मिले थे यक़ - ब - यक़ क्या वो ज़माने याद आएंगे

किसन स्‍वरुप

मिले थे यक़ - ब - यक़ क्या वो ज़माने याद आएंगे,
किये फिर तर्क़ रिश्ते, क्या बहाने याद आएंगे।
हमारी तंग -दस्ती और ख़ुद्दारी का वो आलम,
मिले ,कितने ज़माने- भर के ताने याद आएंगे।
समय की चाल से चलते न जाने हम कहाँ होते,
कभी हालात की उलझन, फ़साने याद आएंगे ।
सफ़र की ठोकरों ने रहगुजर में हौसला बख़्शा,
कभी तनहाइयों मे वो ठिकाने याद आएंगे।
तुम्हीं जिनका सबब थे औ तुम्हीं थे दर्द आलूदा,
पड़े थे ज़ख़्म वो सारे छिपाने, याद आएंगे।
न कोई फ़िक्र-फ़ाक़ा औ न कोई काम की उलझन,
लड़कपन के, गये वो दिन सुहाने याद आएंगे ।
वही पगड॔डियाँ,पनघट,पनारे, गाँव की पोखर,
हमें बेइन्तहा , वो दिन सुहाने याद आएंगे ।

अनुत्तरित

डॉ प्रतिभा त्रिवेदी 

 

" नहीं भवानी नहीं, तुम भैया की बराबरी नहीं कर सकती। " ये दादी ने टोकते हुए कहा था।
दादी ये तो गलत बात है, मुझसे मैथ्स नहीं बनती इसलिए ट्यूटर मुझे चाहिए । मैं परीक्षा में फेल हो जाऊंगी लेकिन पापा ने भैया के लिए कोचिंग लगवा दी और मेरे बारे में कोई सोचा ही नहीं। ये तो अन्याय है। तब तक माँ ने हस्तक्षेप कर दिया था।
" भवानी तुम आजकल बहुत वाचाल होती जा रही हो। दादी से इस तरह बहस नहीं करते चुप रहो। ज्यों-ज्यों बड़ी हो रही हो , मर्यादा ही भूलती जा रही हो। हर समय नहीं बोला जाता भले घर की लडकियां चुप रहती हैं - तुम भी चुप रहना सीखो। "
बस उस दिन से भवानी ने मुंह पर हाथ रख लिया यानी सब कुछ यदि गलत भी हो रहा है तब भी चुप ही रहना है क्योंकि भले घरों की बेटियों की भलाई इसी में है कि वो चुप रहें।
भवानी अब बड़ी हो रही थी, उसकी आंखें सजग हो चली थीं। अब वो उम्र के उस दौर से गुजर रही थी जहां मनचाहे सपने देखने की आजादी होती है और जुनून की हद तक कुछ कर गुजरने का हौसला भी अंकुरित होने वाले बीज की तरह अंकुआ गया था। उस बीच कोई ऐसा भी था जो आकर्षण का केंद्र बिंदु बनता जा रहा था। पहली बार भवानी ने आइने में खुद को निहारा था और सपनीली आंखें उनींदी हो चली थीं। ये परिवर्तन किसीने देखा हो या ना देखा हो लेकिन उसकी अपनी सहेली ने उसे परख लिया था। वो आहिस्ते से उसे समझा रही थी,
नहीं भूवी नहीं, तुम्हें ऐसे सपने नही देखने चाहिए। इन आंखों से तुम्हें वही देखना होगा जो तुम्हारे घर परिवार वाले चाहेंगे। इसलिए अपनी आंखें बंद कर लो, वरना जीवन भर तुम्हारी आंखें सपने नहीं बल्कि आंसूओं से रोती रहेंगी। बस भवानी ने अपनी आंखें बंद कर लीं।
एक समय ऐसा भी आया भवानी की धूमधाम से शादी हुई। ऐसा लगा मानो अब सपनों की रोक से प्रतिबंध हटा बल्कि ऐसा भी लगा अब वो अपने पिया की प्राणेश्वरी है - इसलिए अब
" बोल की लब आजाद हैं तेरे, बोल जुबां अब तेरी है"
वह अपने होठों पर लगे ताले खोल सकती है लेकिन यहाँ तो पतिदेव से उसने वो सब सुना जो शायद ना सुनती तो बेहतर होता। जब देखो तब केवल शिकायतों का पिटारा खोल देते। ये कैसा जीवन साथी था - जिसके सहारे उसे पूरा जीवन जीना था वो सहारा ही बेसहारा हो चला था। इधर सास ने भी ताने बाजी में मानो तडका लगा दिया था और सदैव यही घुट्टी पिलाया करती कि,
" अरे उसकी बातों पर ध्यान मत दो। बस एक कान से सुनोऔर दूसरे से निकाल दो। हमारे खानदान की बहुओं के कान केवल प्रशंसा के लिए नहीं होते बल्कि ये सब कुछ भी अनसुना करना होता है समझी।"
अब भवानी निश्चित ही एक सभ्य सुसंस्कृत और भली महिला के रूप में समाज में सम्मान पा रही है लेकिन एक यक्ष प्रश्न उसके जेहन में हर बार कौंध जाता है,
जब बोलना चाहा तो जिसने रोका वो भी एक स्त्री थी,
जब कुछ अपने लिए देखना चाहा तो उन आंखों को प्रतिबंधित जिसने किया - वो भी एक स्त्री थी।
जब कुछ गलत सुनकर विरोध करना चाहा तो सुनने से रोकने वाली भी एक स्त्री थी।
प्रश्न यही आज तक अनुत्तरित है जब वह देख, सुन और बोल नहीं सकती - तब क्या सचमुच वो अब भी जिंदा है? बोलो अब सब क्यों हुए शर्मिंदा हैं? है कोई जवाब?
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ग्वालियर

हास्य कविता

अक्ल बाटने लगे विधाता,
लंबी लगी कतारी।
सभी आदमी खड़े हुए थे,
कहीं नहीं थी नारी।।
सभी नारियाँ कहाँ रह गई,
था ये अचरज भारी ।
पता चला ब्यूटी पार्लर में,
पहुँच गई थी सारी।।
मेकअप की थी गहन प्रक्रिया,
एक एक पर भारी ।
बैठी थीं कुछ इंतजार में,
कब आएगी बारी।।
उधर विधाता ने पुरूषों में,
अक्ल बाँट दी सारी ।
पार्लर से फुर्सत पाकर के,
जब पहुँची सब नारी।।
बोर्ड लगा था स्टॉक ख़त्म है,
नहीं अक्ल अब बाकी ।
रोने लगी सभी महिलाएं ,
नींद खुली ब्रह्मा की।।
पूछा कैसा शोर हो रहा,
ब्रह्मलोक के द्वारे ?
पता चला कि स्टॉक अक्ल का
पुरुष ले गए सारे।।
ब्रह्मा जी ने कहा देवियों ,
बहुत देर कर दी है ।
जितनी भी थी अक्ल सभी वो,
पुरुषों में भर दी है।।
लगी चीखने महिलाये ,
ये कैसा न्याय तुम्हारा?
कुछ भी करो, चाहिए हमको
आधा भाग हमारा।।
पुरुषो में शारीरिक बल है,
हम ठहरी अबलाएं ।
अक्ल हमारे लिए जरुरी ,
निज रक्षा कर पाएं।।
बहुत सोच दाढ़ी सहलाकर,
तब बोले ब्रह्मा जी ।
इक वरदान तुम्हे देता हूँ ,
हो जाओ अब राजी।।
थोड़ी सी भी हँसी तुम्हारी ,
रहे पुरुष पर भारी ।
कितना भी वह अक्लमंद हो,
अक्ल जायेगी मारी।।
एक बोली, क्या नहीं जानते!
स्त्री कैसी होती है?
हंसने से ज्यादा महिलाये,
बिना बात रोती है।।
ब्रह्मा बोले यही कार्य तब,
रोना भी कर देगा ।
औरत का रोना भी नर की,
बुद्धि को हर लेगा।।
इक बोली, हमको ना रोना,
ना हंसना आता है।
झगड़े में है सिद्धहस्त हम,
झगड़ा ही भाता है।।
ब्रह्मा बोले चलो मान ली,
यह भी बात तुम्हारी ।
घर में जब भी झगड़ा होगा,
होगी विजय तुम्हारी।।
जग में अपनी पत्नी से जब
कोई पति लड़ेगा।
पछताएगा, सिर ठोकेगा
आखिर वही झुकेगा।।
ब्रह्मा बोले सुनो ध्यान से,
अंतिम वचन हमारा ।
तीन शस्त्र अब तुम्हे दे दिए,
पूरा न्याय हमारा।।
इन अचूक शस्त्रों में भी,
जो मानव नहीं फंसेगा ।
बड़ा विलक्षण जगतजयी
ऐसा नर दुर्लभ होगा।।
कहे कवि सब बड़े ध्यान से,
सुन लो बात हमारी ।
बिना अक्ल के भी होती है,
नर पर नारी भारी।।

अग्निपरीक्षा के दुर्गम पथ पर

अग्निपरीक्षा के दुर्गम पथ पर
समर्पण मेरा ध्वज लिए ही खड़ा है
अस्तित्व पर जब मेरे आ पड़ी है
प्रतिमान मैंने स्वयं का गढ़ा है
हुई न मैं भयभीत अग्निशिखा से
पावक को अंजुरी में भर लिया है
विलग कर प्राणों को गात से मैंने
अग्नि शय्या पर ही रख लिया है
झुका नहीं पायेगा ये गगन भी जिसे
स्वभिमान मेरा हिमालय से बड़ा है
ओ ! सृष्टि सृजन के कर्ता धर्ता
हे ! रघुवर मेरे जगपालन कर्ता
तर गए पापी जिस राम को रटकर
प्रति स्वास मैंने वही नाम जपा है
हुई कैसे स्वामी काया ये अपावन
ये तन मन सकल आप ही तो मेरा हैं
ये धरती, गगन और ये दिग दिशाएं
ये ऋतुएँ ये पंछी ये पुष्प लताएं
इस क्षण की सदा साक्षी ये रहेंगी
युग युग तक मेरी गाथा ये कहेंगी
प्रेम है ये मेरा विवशता नहीं है
प्रण है ये मेरा दीनता तो नहीं है
कभी अहिल्या कभी जानकी मैं रही हूँ
युग युग से अग्निपरीक्षा मैं दे रही हूँ
★★★
©प्राची मिश्रा

आज गुजरा समय याद आने लगा है,

आज गुजरा समय याद आने लगा है,

वो बचपन की यादें सजाने लगा है।
समय लोरियां गुनगुनाने लगा है।
वही माँ के हाथों की प्यारी थपकियाँ,
मेरे पीठ को थपथपाने लगा है।
कहीं खो न जाऊं, कही गिर न जाऊं,
कभी माँ की आँखों से,ओझल हो जाऊं,
वही खोजना, दौड़ना, हर तरफ देखना,
नाम लेकर बड़े जोर से बोलना।
आज फिर सब, हमें याद आने लगा है।
समय लोरियां, गुनगुनाने लगा है।
वो बचपन की यादें, सजाने लगा है।
कभी क्रोध मे आ के चाटाँ लगाना,
फिर रोते हुए देख,आशूँ बहानाँ
वो माता के हाथों का एक-एक निवालाँ,
मुझे आज फिर याद आने लगा है।
समय लोरियां गुनगुनाने लगा है।
वो बचपन की यादे, सजाने लगा है।
वहीं रूठना, भागना, दौड़ना,
क्रोध मे आ के, कुछ भी मेरा बोलना,
फिर भी माँ का मुझे, प्यार से देखना।
आज फिर मुझको, सब याद आने लगा है।
समय लोरियां गुनगुनाने लगा है।
वो बचपन की यादें सजाने लगा है।
माँ तो ममता की देवी है,
उसकी छाया मे पल बढ़ के,
तुमनें यह मंजिल पाई है।
माँ की खुशियों का ध्यान रखो,
जो जीवन तुम पर वारी है।
जिसनें तुमको है, रक्त पिलाकर,
पाला ,पोसा, बड़ा किया।
उस माँ को थोड़ा दर्द हुआ,
सब अच्छे कर्म गवाँ दोगे,
इस भवसागर मे सदा-सदा,
फसने का मार्ग बना लोगे।
✍️रत्नेश कुमार राय

बुधवार, 15 दिसंबर 2021

इक्कीस पोस्ट

डॉ. संजीत कुमार
1
     पतझड़ का मौसम दिल्ली के लिहाज से थोड़ा खुशनुमा रहता है। दिल्ली की सर्दी कभी-कभी शिमला,मंसूरी की सर्दी को भी पीछे छोड़ देती है । सर्दी के बनिस्बत पतझड़ के मौसम में न तो ज्यादा सर्दी होेती है , न ज्यादा गर्मी । हां दिल्ली के कठिन जाड़ो के बाद गर्मी की दस्तक का अहसास ये मौसम जरूर करा देता है। दिल्ली की सड़कों पर डाल से गिरे सूखे-सूखे पत्ते आवारगी में यहां-वहां भटकते मानों वे मुक्त हो गए हो और अपनी परिणति को पा चुके हो। लेकिन शाखाओं से मुक्त हो चुके पत्तों ने दिल्ली में झाड़ू लगाने वाले की नाम में दम कर रक्खा था। ऐसी ही एक जगह थी वंसुधरा जो त्रिलोक पुरी से सटा हुआ इलाका है जिसमें कई पास सोसाईटीयां है । यहां - वहां आवारगी में उड़ते हुए पत्ते थे कि संभलने का नाम ही नहीं ले रहे थें । प्रीतम जो पांच साल पहले ही कच्चों में पक्का हुआ है हैरान परेशान है कि आखिर वो करे तो करे क्या एक जगह ढेर लगाता है तो तेज हवा का झोंका फिर उसके ढेर को उड़ा देता है, और उसकी करी कराई मेहनत पर पानी फेर देता है। एक तो ये मौसम दूसरा यहां के चुतिया लोग सालों को इतनी समझ नहीं की कूड़ा सड़क पर खुले में नहीं फेंकते, बड़ी साफ गाड़ी में जा रहे है, पानी पीकर खाली बोतल सड़क पर ही फेंकेगें, रात को सोडा-दारू की बोतले मजाल है कि गाड़ी में पड़ी रह जाए कांच खोला और बोतल बाहर सड़क पर। और दूसरा ये साले रेहड़ी वाले अपने फलों और सब्जियों की गंदगी ऐसे छोड़ जाते है जैसे इनका जीजा साफ करेगा आकर, अरे यार तुम अपनी दुकान लगा लो साला ये इंडिया है कहीं भी लगा लो कोई मना करने वाला नहीं पर भाई तुम साफ-सफाई तो रख सकते हो। हां तो प्रीतम के कच्चों में पक्का होने की बात चल रही थी , अब आप कहेंगे की भाई या तो पक्का होता है या कच्चा फिर ये कच्चों में पक्का क्या हुआ। तो इसको समझने के लिए हमें दिल्ली की सफाई व्यवस्था की तकनीक को या इसके झोल को समझना होगा। थोड़ी जानकारी ले लो , कुछ दे ही रहा हूं अगर यह जानकारी आपको नहीं होगी तो ये कहानी भी आपकों समझने में कठिनाई होगी। कहानी में जरूर प्रीतम एक महत्वपूर्ण किरदार हो सकता है या न भी हो, यह भी हो सकता है कहानी ही खुद महत्वपूर्ण किरदार हो जाए, लेकिन सफाई - व्यवस्था या इसमें लगे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लोग इसमें एक अहम किरदार के रूप में जरूर है। तो सूरते हाल यह है कि दिल्ली की सफाई व्यवस्था में लगे लोगों में से 99 प्रतिशत लोग एक ही जाति से है एक परसेंट का ग्रेस दे रहा हूॅं । जिनमें से ज्यादातर अपने आपको वाल्मिकी रिषि का वंशज मानते है, लेकिन ऐसे विद्वजनों की भी कमी नहीं जो इसे गलत मानते है । उनका तर्क यह रहता है कि वाल्मिकी जी के हाथों मे ंतो कलम थी फिर हमारे हाथों में ये केजरीवाल पार्टी का चुनाव चिन्ह क्यों। अनेको-अनेक विद्वानों की इस पर अलग अलग राय है, खेर मेरा इस मुद्दे में जाने का कोई इरादा नहीं है। तो सबसे नीचली सीढ़ी पर आते है ऐवजीदार जिन्हे सब्सीट्यूट भी कहा जाता है। ये वो प्राणी होता है जेसा कि नाम से ही ज्ञात होता है कि किसी कच्चे या पक्के कर्मचारी के एबसेंट रहने पर सफाई बीटो पर भेजा जाता है, ताकि बीट गंदी न रह जाए, बीट मतलब इलाका । वाल्मिकी समुदास का एक बहुत बड़ा हिस्सा इसके लिए हमेशा तैयार रहता है जिसका फायदा सभी ने उठाया है , सभी से मेरा मतलब व्यवस्था से है किसको लिया जाएगा किसको नहीं इसके कोई निश्‍चित नियम नहीं है। जरूरतों के नियम है, आप मेरी जरूरत पूरी कर दो में आपकी कर दूंगा। जरूरते पूरी करने के क्रम में पुरूष महिलाओं से पीछे रह जाते हैं ऐसा में कतई नहीं कहता , ये बात वहीं से निकल कर आई है , कुछ दबे मुंह बात भी करते तो कुछ कहते हमें क्या लेना। अखिर दरोगा से कोई भी बिगाड़ना नहीं चाहता। अखिर वो ही तो है जो उनकी जिन्दगीं की डोर को खीचं या ढील दे सकता है। दूसरी सीढ़ी पर कच्चे कर्मचारी आते है जिनको काम तो रोज मिलता है , लेकिन वो सरकारी खातों में अस्थाई के रूप में दर्ज रहते है। ऐसा भी संभव है कि आप जीवन भर कच्चों में ही नौकरी करते रहे , और कच्चों में ही अर्थात अस्थाई के रूप में ही सेवानिवृत हो जाए इनके शब्दों में कहें तो रिटायरमेंट , ंजब किसी ऐसे कर्मचारी की रिटायरमेंट होती है तो उसको गेंदे के फूल की एक माला पहनाकर ,एक मिठाई का डिब्बा और एक छाता देकर विदा कर दिया जाता है, और हां अगर दरोगा ज्यादा दरियादिल निकला तो चाय समोसे की पार्टी का इंतजाम भी करा सकता है । अब सोचो ऐसा कर्मचारी उस समय क्‍या सोच रहा होता होगा, ये स्थिति ठीक ऐसी ही है जैसे की आज विश्‍वविद्यालय में कई एड्होक ही रिटायर हो जाते है , त्यागी जी विश्‍विद्यालय में सो रहे है तो यहां भी कोई न कोई त्यागी या उनके सहोदर सो ही रहे है किसी ने कुछ समय पहले कहानी भी लिखी थी शहशाह सो रहे है। जब शंहशाह सो रहे होते है तो प्रजा की सबसे ज्यादा लंका लगती है। अब आता है सबसे उंचे पायदान का सफाई कर्मचारी , ये कर्मचारी पक्का कर्मचारी कहलाता है। इनको सभी सुविधाएं प्राप्त रहती है, बीमार हो जाओं तो सीजीएचएस , सभी प्रकार की छुट्टियां, फंड, बौनस , बीमा, एलटीसी आदि। अपने साथी कर्मचारियों के बीच इनका काफी सम्मान होता है। ऐसा सम्मान जैसा कि दिल्ली विश्‍वविद्यालय के परमानेंट फेकल्टी का होता है और कच्चो की स्थिति एडहोक वाली होती है , कई एडहोको अरे सॉरी मतलब कच्चों को अपनी बीट के अलावा अतिरिक्त बीटों पर भी कार्य करना पड़ता है क्योंकि परमानेंट वाले लाहोरी-पिशोरी छूटे हुए होते है। अब ये लाहोरी पिशोरी भी समझना पड़ेगा लाहोरी-पिशोरी मतलब जो परमांनेट कर्मचारी होता है ( दिल्ली विश्‍वविद्यालय वाला नहीं ) उनमें से कई लोग अपनी बीटो पर काम करने नहीं आते लेकिन दारोगा बाकायदा उनकी हाजिरी लगाता रहता है जिसके इसके ऐवज में ये दरोगा को कुछ नजराना अपनी तनख्वाह में से देते है। इनका कुल्ला दारू से ही होता है , इनमें से कई तो ऐसे है जिनकी हाजिरी ठेकांे पर लगती है , कई तो आपको ठेके खुलने से पहले आपको इन्तजारी में नजर आ जाएगें। परिणाम स्वरूप अपनी नौकरी भी पूरी नहीं कर पाते, कारपोरेशन में हजारों की संख्या में ऐसे कर्मचारियों के बच्चो की फाइले अनुकंपा के आधार पर नौकरी के लिए धूल खाती रहती है ।
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इतने लंबे ज्ञान के बीच में प्रीतम की बात तो रह ही गई जो अभी पांच साल पहले कच्चों में पक्का हुआ है। कच्चों में पक्का होने से पहले प्रीतम 15 साल तक सब्सीट्यूट के रूप में काम करता रहा। प्रीतम छह फुट लंबा और सांवला युवक था , काम का पक्का अपने काम को ही पूजा समझता था। हालांकि ये बात अलग थी की उसकी बीट पर काम करने वाली भी एक पूजा थी। पूजा के साथ कमली और मंगली भी थी, थे तो और भी लेकिन सबका नाम लिखा तो रायता इनता फैल की एक कहानी में समेटना मुष्किल हो जाएगा । पूजा कमली, मंगली और प्रीतम अक्सर बीट पर सफाई के बाद सुसताने के लिए थोड़ा चंदू चाय वाले की ठइये पर इक्टठा होते थे। पूजा क्या हुआ आज बड़ी बुझी-बुझि सी लग रही है , चेहरे पर बारह क्यों बजे हुए है? पूजा अचानक एैसे किसी प्रष्न के लिए तैयार नहीं थी अरे नहीं प्रीतम कोई ऐसी बात नहीं बस ऐसे ही जी ठीक नहीं है । क्यों क्या हुआ तेरे जी को सुबह तो सही था फिर अब क्या हुआ ? अब क्या बताउूं तुझे-तुझे पता तो है उस भड़वे का आज भी कह रहा था चल नई पिक्चर लगी है चांद सिनेमा पर आग ही आग तुझे दिखा लाता हूं, बता हरामी को जरा भी सरम नहीं है में उसकी बेटीकी उमर की हूं , ससुरे के पैर कबर में लटके हुए है फिर भी ठरकपन है कि खतम होने का नाम ही नहीं ले रहा इस सुरजन का। चन्दू चाय बना रहा था लेकिन उसके कान उनकी बातों में ही लगे थे प्रीतम भाई ये साला सुरजन जो है न है भेनचो... पक्का ठरकी कल ही एक किलों पलंगतोड़ हलवा ले गया है अफगानी खान से। मैनें सुना था खान से कह रहा था इस बार हिमालय पर पैदा होने वाला सिलाजित ला दे, सुना है बहुत बढिया रिजल्ट है उसका । साला इतना ठरकी है कि उसके पड़ोसी अपनी बकरिया और कुतियाओं तक को उससे बचा कर रखते है। कमली और मंगली क्या ऐसा कोन था जिसको उसके ठरकपन के बारे में पता न हो। फिर सब्सीटयूट कर्मचारिणों की हालत ऐसी मछलियों की होती है जिनके षिकार पर सरकार की कोई पाबंदी नहीं होती। हाजिरी चाहिए तो दरोगा की हाजरी भुगतना जरूरी है। कमली की उमर पचास वर्श हो चुकी है अपने जमानें में अपूर्व संुदरी थी । झाड़ू तो वह सड़क पर चलाती थी लेकिन लोगो के दिल पर झाड़ू लगती थी। कमली जब मोहल्ले में झाडू लगा रही होती तो मोटी सेठानियां अपने गेट बंद ही रखती थी। उनके सेठ फिर भी कमली को ताड़ने का जुगाड़ ठंूठ ही लेते थे। उनके दिल से एक ठण्डी सी हाय निकलती कहते साली है तो भंगन मगर है बहुत करारी। कमली थी ही इतनी खूबसूरत , गोरा-गोरा रंगा , अच्छा भरा बदन, बिलोरी आंखे, लंबे-भारी काले काले बाल, संुदर दांत कमी कोई आप चाहकर भी नहीं निकाल सकते । क्या सोच रहे हो केटरीना कैफ ..... अगर कटरिना सोच रहे हो तो बिल्कुल सही सोच रहे हो। सुरजन कमली का बहुत ख्याल रखता था, कयोंकी बदले में कमली भी उसकी जरूरते पूरी करती थी । उसकी गली-मोहल्ले के लोग दबी जुबान में कहते थे की उसके छह बच्चों में से एक भी सूरत उसके पति पर नहीं गई थी। अरे ये हम कहां आ गये बात तो पूजा की थी फिर कमली कहां से आ गई, आ गई तो आ गई कमली अगर इतिहास है तो वर्तमान पूजा है। इतिहास-वर्तमान की क्या कहे इनका इतिहास भी यही है वर्तमान भी यही है और भविश्य भी यही हो सकता है । जब तक ये जांगेगे नहीं तब तक इनकी तारिख नहीं बदलेगी। ये बदलना भी चांहे तो व्यवस्था ऐसी है कि बहुत जल्दी कोई बड़ा बदलाव हो नहीं सकता , फिर आप कोन होते हो इनको बदलने के लिए कहने वाले।
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मंगली के बेटे का जन्मदिन आने वाला है पति अभी इसी महीने पक्का हुआ है और मंगली को तो आप जानते ही है अभी ऐवजीदार है। मंगली अपने पति षंकर से सुनो जी गणेशी का जन्मदिन आने वाला है तुमने क्या सोचा है ? आप भी सोच रहे होगेें पति का नाम षंकर बेटे का नाम गणेषी ये लेखक कहानी सुना रहा है या कोई पुराण-वुराण बांच रहा है। तो आपको यह पता होना चाहिए हमारी त्रिलोक पुरी में बेटों का नाम ऐसै ही रखा जाता है। अगर किसी के बाप का नाम दषरथ है तो उसके बेटे का नाम राम होगा ही होगा। खेर षंकर अपनी पत्नी के आग्रह पर जवाब देता है .......
में क्या सोंचू?
अरे तुम नहीं सोचोंगें तो और कोन सोचेगा ?
मतबलब तुम कहना क्या चाहती हो? गणेषी का जन्मदिन तो हर साल्ल आता है फिर इसमें सोचने की क्या बात है ? फिर इसणे कोण सा लाल किले पे झंडा फहरा दिया है सारे दिण तो हांडता फिरे है लोफरो की नायी।
गणेषी वहीं खड़ा था अपनी तारीफ सुन रहा था वह भी इस वाक्युद्ध में कूद गया हां क्या कह रहे हो लोफर, किसने कहा था सरकारी सकूल में दाखिले के लिए करवाते न प्राईवेट सकूल में । जरा आके तो देखो सकूल के हाल एक भी मास्टर कक्षा में नहीं आता । में ही क्या आधा सकूल गायब है। लेकिन आधा स्कूल जाता कहां था ये बात किसी और कहानी में बताएगें
अबे आधा ही तो गायब है बाकि आधा तो हैं न वहीं ।
अरे बस भी करो बात जनमदिन की चालरी थी यो सकूल कहां से आग्या । सकूल भी चला जागा इब बात करो जो चाल री थी इस बार हमारा लांेडा सोला साल का होने जा रहा है। और हमने उसके कितने जन्मदिन बनाए है जरा ये तो बताओं?
वो तुम्हारा बड्डा भाई हर साल की साल अपने बेटे का जन्मदिन धूमधाम से मणाता है । तुमने कभी एक बार भी अपने बेटे का जन्मदिन बणाने के बारे मेें सोच्चा? अरे छोड़ो सोच्चो तो तुम जब्ब , जब्ब तुम्हे याद हो कि कोई परिवार भी है तुम्हारे। षाम को अद्दा लाणा तो न भूलते, डेली मीट चहिए उसमें न होता खरचा, वो गए साल पातरी माता पर बच्चा घेटा किया, मां के केहणे से तब न हुआ खरचा...? मेरी तो किसमत ही खराब हो गई जो थारे जेसा पत्ति मिला, कभी भी परिवार के बारे में सोच्चों हो कुछ?
सोंच्चुं तो जब तब बूता हो कुछ , यहां क्या बूता है म्हारा जो जन्मदिण बनाएगें। और भाई साहब की होड़ हम कर सके हैं के , दोनो जन पक्के है वे तो कुछ भी कर सके है, फिर में भी अभी इसी महीणे पक्का हुआ हूं।
अरे बूता क्यों नहीं , इब तो बूता बण गया है , अब छोरे का सोलवा जन्मदिन कैस्से जाने दे।
अरी भागवान रहन दे कुछ नहीं रक्खा इन बातों में जन्मदिन नहीं बनाएगें तो यंहां कोन हमें जात भार कर रहया है।
अरे कैेस्सी बात करदी , अब हम इतने मुररदार होज्जा की छोरे का जन्मदिन भी न बना पांए। भाई वाह तमणें तो चाले काड़ दिए। मेरे भाई भाभी क्या कहेेंगे ही एक ही छोरा है उसका भी जन्मदिन हम ढंग से नहीं बना पाए।
ओ भागवाण सुण जा इब तुणे ठान ही ली है तो करले जो तुणे करणा है , मन्ने बता दिए क्या मण में है तेरे।
देक्खों जी , छोरा म्हारा सोला साल का होणे जा रहया है ंअब हमणे उसका यो जन्मदिन बडे ही धूमधाम से मणाणा है । पेस्से की चिंता में न करूंगी वोत्तो तुमणे करनी है। लोण निकलवा लो विजू से उसकी सेटिंग है बेंको में , वो कह ही रहया था कि एक बार फूफा को पक्का हो जाण दे मोटा लोण करा देगां अखिर महारा भतीजा से किस दिण काम आऐगा।
चल देखंू सू बात करके , किसमत अच्छी थी या खराब थी कि विजू भी आ धमका और फूफा के पेरों के हाथ लगा..... और फूफा जी कैसे हो सब ठीक तो चल रहा है न।
अरे बेट्टे क्या बताउ ठीक तो चल रहया है पर इब तेरी भुआ रोज रोज नया फंतरू ले आवे से । इब कह रहयी है कि गणेशी का सोलहवा बड्डे मणाणा है ।
ऐं लो फूफा इसमें कोण सी गलत बात कहदी भुआ नें , ठीक ही तो कह रही है । अरे आप हुकुम करो ये भतीजा किस दिन काम आएगा।
हां कमली बोल के सोची से तणे यो बड्डे की ।
देखो जी मेरा एक ही छोरा है बड्डे की पार्टी खूब बड़ी होणी चाहिए, चिकन-कोरमा , चिकन लॉलीपाप, एक मीठा और फरेजी खाणा अलग, जितणी भाण बेट्टी और दामाद आवेंगे सबका माण-ताण भी हमणें करणा पड़ेगा। किसी भी तरया तुम्हारी भाभी से कम नयी होग्गा म्हारे छोरे का बड्डे।
यो तो कम से कम एक लाख का जुकाम है क्यों भई विजू तू क्या कहये है।
हां मेरे हिसाब से तो एक के भी बात उपर जारइ है , भुआ इसमें दारू तो रह ही गई ।
वो ंतो तेरा फूफा जाणें और हां डीजे भी बढिया वाला करावेगें ताकि सब याद करे। ओर वो गाणा था हटजा ताउ पाछे ने वो जरूर बाजेगा और हां वो क्या था औ राजा लादे तीर कमान .... कमान.... अरे बुआ पेड़ पे बुलबुल बेठी है हां हां ये वाला.... ।
अब तू बता विजु बेटे तुझे क्या-क्या दूं लोण के लई।
देखो फूफा जी आप अपना और भुआ का आधार कार्ड नहीं आधार कार्ड नहीं षायद उन दिनों आधार कार्ड नहीं चलता था, इलेक्षन कार्ड , बेंक पास बुक और चैक बुक मुझे दे दो डेबिट कार्ड तो तुम्हारा मेरे ही पास पड़ा है। फार्म तो मेरे चेतक में पड़ा ही अभी ही भरवा लेता हूं। पंद्रह दिनों में ही थारा लोण करवा दूंगा।
चौर जेसी षक्ल का वीजू इन कामों में बड़ा एक्सपर्ट था, कहते है बेंको में उसकी इतनी अच्छी सेटिगं है कि मरे हुए लोगों के नाम का लोन पास करा सके था, वीजू ने फटाफट फूफा और बुआ के लोन एपलीकेसन फार्म, चैक और खाली पेपर साइन करा लिए।
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मेरी समझ में एक बात आ नहीं रही कि आखिर ये प्रीतम गया कहां , जब देखो तब गायब हो जाता है । और हां ये पूजा भी, अब समझ आया की दोनो एक ही किस्ती पर सवार थे , प्रेम होता ही ऐसा है जैसे आप बादलों पर चल रहे हो वाकिंग ऑन द क्लाउड सही कही ना, दोनो चले जा रहे थे नहर के किनारे-किनारे हरियाली की कोई कमी नहीं थी। पानी भी खूब भरा हुआ था नहर में। ठंडी-ठंडी ब्यार चल रही थी। रोमांस जौर मार रहा था लेकिन रोमांस के सोन्दर्यबोध में कभी-कभी अवरोध भी जा जाते थे लेकिन थोड़ी ही दूर नहर की मुंडेर पर एक षराबी पेषाब करने की कोषिष कर रहा था, दूर झाड़ियों में कुछ लोग हल्के होत भी नजर आ जाते थे । पूजा झेंप गई मन नही मन प्रीतम को कोस रही थी जब देखो तब इसी नहर के किनारे ले आता है जेसे ये कोई कंपनी बाग हो । खेर फिर भी मन को षांत कर कहती है प्रीतम एक बात तो बता अब कब तक हम यंूही नहर के किनारे-किनारे घूूमते रहेंगे, कभी डुबकी भी लगाएगें । तू बता कब लगानी है डूबकी, डूबकी लगाने के लिए तो मे ंहमेषा तेयार रहता हूं। देख प्रीतम मेरी बात को मजाक में मत लिया कर, मेरा मजाक का मूड नहीं है, । अरे मेरी जान तू तो यंू ही बुरा मान जाती है ,मेने गलत थोड़े ही कहा, घूमना-फिरना ही तो जिंदगी है, देखती नहीं ये आकाष के पंछी
सारे कितने आजाद है, हमेषा यहां से वहां वहां से यहां उड़ते रहते है । मैनें तो इनकी कभी लड़ाई होते भी नहीं देखी , खाने की भी इनकों कोई चिंता नहीं रहती मस्त रहते है मस्त। अच्छा सुन अब ये बाबा जी ज्ञान मुझे मत दे ज्यादा आकाष में न उड़ धरती पर आजा देख तू सारी बात समझता है, अब तू कच्चा कर्मचारी तो हो ही गया है और तुम्हारे और हमारे गोत भी नहीं मिलते । मां -बापू को भी तू पंसद है अब किस बात की देर है । तुझे पता है कालू की मां ने कब से लकड़ी दे रखी है, मां भी कह रही थी पक्का नौकर है ज्यादा मांग चांज भी नहीं बस एक होण्डा मोटरसाईकिल कालू को एक और एक उसके पिताजी को ही तो देनी पड़ेगी पर सारी जिन्दगी का सुख तो हो जाएगा पूजा को। अब सोच में उस कलेटे के पीछे बेठी कैसी लगुगीं। कैसी लगेगी बस ऐसे लगेगी जैसी बताषे पर चींटा चल रहा हो।
प्रीतम की जान को भी मुसीबते कम नहीं थी , पुरानी फिल्मों की तरह उसके पास भी बीमार मां, दो बहनों की षादी कर चुका है एक अभी बिनब्याही है एक बेकार पिताजी थे, बेकार मतलब उनके पास कुछ भी करने को नहीं था करते तो कया करे , जिनकी जिम्मेदारीयों के बोझ प्रीतम ने अपने कंधो पर उठा रक्खे थे या डाल दिए गए थे बात एक ही थी। प्रीतम के पिताजी सारा दिन घर के सामने बने छोटे पार्क में तास खेलते रहते और मोहल्ले की आने जाने वाली अम्मांओं को ताडते रहते, बेकार लाचार जरूर है लेकिन अकड़ पूरी है। बात-बात में कह देते है देख म्हारी तो जिंदगी गुजर गयी , हमणे जो करणा था कर दिया अब थम देखो अपणा। प्रीतम की और बापू की कई बार कहासुनी हो जाती हां क्या किया है तुमने बार बार कहते रहते है हमने जो करना था कर दिया । अबे और क्या करू ये मकान क्या दहेज में मिला है । नही ंदहेज मे ंतो नहीं मिला पर मिला तो संजय गांधी की बदोलत ही न । झुग्गी के बदले यहां प्लाट मिल गया और क्या इसके अलावा और क्या लाल किला खरीदा आपने? हां मैने तो नहीं खरीदा , तो तू खरीद ले । इस तरह की छोटी मोटी कहासुनी रोज की बात थी। मॉं को टीबी की बिमारी थी , बहन घर का सारा काम देखती थी दिन में खाली समय गिट्टे खेलती। पूजा की जिदंगी में प्रीतम कुछ ऐसे मिल चुका था जैसे षराब में सोडा मिल जाता है। उन दिनों ओयो रूम तो होते नहीं थे वरना मामला और ज्यादा आगे पंहुच गया होता। प्रीतम के रोजाना के झगड़े देखकर मां-बाप समझ गए की अब ज्यादा देर नही ंकर सकते प्रीतम की षादी में। वरना मां-बाप का इरादा तो था कि आखिरी भी निपट जाए तो कर देगें प्रीतम की षादी। खेर आखिर में मामला वहीं पंहुचा जहां पहंुचना था, ये था ब्लाक दस त्रिलोक पुरी का हनुमान मंदिर जो कि वाल्मिकी मंदिर के बराबर में था। वाल्मिकी मंदिर में चार पांच तसेड़ी तास बजा रहे थे और यहां मंगलवार का दिन था और दिनों की अपेक्षा मंदिर में ज्यादा भीड़ थी पंडित जी के चेले यंत्रवत श्ऱद्धालुओं के बंूदी के लिफाफे सिंदुरी रंग से रंगे हुए और लंगोट पहने हनुमान की मूरती के पांवो से छुआ कर उन्हे वापस देते और उन्हे टीका लगा देते। मंदिर में चार जगह दान-पेटिका रखी थी लोग श्रद्धाअनुसार उसमें रूपए-पैसे डाल रहे थे या यों कहे की जो जितना डरा हुआ था उतने ज्यादा पैसे डाल रहा था। जिन बच्चों के बोर्ड के एग्जाम थे सबसे ज्यादा लंका उनकी लगी हुई थी। वो प्रसाद चड़ाने के बाद पंडित से बाकायदा लाल धागा भी बंधवा रहे थे मानों लाल धागा उनके अच्छे एग्जाम कराने की गांरटी हनुमान जी उन्हे दे रहे हो। पंडित जी का कमरा जिसमें बढ़िया कूलर लगा था, पंडित जी गद्दी पर विराजमान थे एक दम सफेद कुर्ता पजामा , कंधे पर लाल रंग का अंगोझा नाक के उपर एक छोटा काला नजर का चष्मा , पंचाग के संमुद्र में पंडित जी ने डूबकी लगा रखी थी, मंदिर के प्रांगण में जर्सी गाय कभी-कभी रंभा देती थी , गोमूत्र और गोबर की मिलीजुली खुष्बू मंदिर में उड़ रही थी। पंडित जी ने गहरी सांस ली जैसा बहुत गहरा गोता लगाकर कुछ ढंूढ के लाए हो। दोनो की मांए पंडित जी के सामने हाथ जोड़ कर प्रापर डिसटेंस बनाकर बेठी थी, इसी इलाके के लोग पंडित जी के जजमान थे
जिनकी बदोलत पंडित जी का सबकुछ चलता था। कहते है जब पंडित जी इस मंदिर में आये थे तो बड़े फटहाल थे लेकिन हनुमान जी की इतनी कृपा हुई की आज त्रिलोक पुरी में ही उनके कई मकान किराए पर चड़े हुए है। और पंडित जी का रूप्या ब्याज पर भी चलता है। पंडित जी बड़ी गंभीरता से अपनी बात रखी देखो कुुंडली मिलान में सबसे महत्वपूर्ण होता है कि दोनो के कितने गुण मिलते है। हर किसी की कंुडली में आठ तरह के गणों और अश्टकूट का मिलान किया जाता है। षादी के लिए गुणों का मिलना बहुत जरूरी होता है। ये गुण है़-वर्ण , वेष्य, तारा, योनि? गृह मैत्री, गण, भकूट और नाड़ी ।इन सबके मिलान के बाद कुल 36 अंक होते है। इन दोनो के 36 में से 32 अंक मिलते है मतलब विवाह बहुत ही षुभ है। आने वाली देवठणि पर दोनों की षादी का उत्तम योग है। दोनों मंें से किसी को भी पंडत की बात कुछ समझ में न आई हां बस तारीख समझ आ गई , पूजा की मां ने अपनी चुन्नी की गांठ बड़ी सावधानी से खोली और उसमें से पंडित जी को पांच-पांच के चार रूपए और दो अठन्नी मिलाकर कुल 21 रूपए दक्षिणा रख दी। प्रीतम की मां ने अपनी चुन्नी की गांठ में से कुल दस रूपए की रेजगारी पंडित जी को प्रस्तुत चरण वंदना कर विदा ली। अपनी तरफ से उन्होनें पंडित जी को भरपूर दक्षिणा दी थी लेकिन पंडित जी उन्हे ऐसी नजरो से देख रहे थे मानों वे कह रहे हो ये क्या दक्षिणा दे रही हो।
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षादी का दिन भी आ ही गया दोनो घरों में गहमागहमी थी। पूजा की मां ने पड़ोस में रहने वाले सड़े हलवाई से 5 रूपए सेंकड़ा के हिसाब से दो लाख कर्जा ले लिया। इधर प्रीतम का भी यही हाल था वो कोन से धन्ना सेठ का बेटा था। कर्जा चाहे कितना हो जाए पर बारात तो षान से निकलनी चाहिए आखिर समाज में भी तो रहना है लोग क्या कहेगें। तो प्रीतम भाई साहब भी तोप से सलामी ले रहे थे, षादी से पहले मंडे पर प्रीतम ने अच्छी पार्टी का इंतजाम किया , लगभग पूरे महल्ले को दारू पिलाई, वो बात अलग है कि दारू पीकर मोहल्ले के दो जनों ने आपस में एक दूसरे का सर फाड़ दिया और मामला थाने में जाकर ले देकर सुलटा। कोरमा बनाने के लिए 27 ब्लाक से इदरिष खानसामे को लगाया था। सब कुछ सही जा रहा था ऐन मोके पर फूफा नाराज हो गए। नाराज ही नहीं हुए बुआ को भी कह दिया की अगर तू दो मिनट में मेरे साथ नहीं चली तो मतलब समझ ले फिर तेरे लिए मेरे घर में कोई जगह नहीं है। फूफा ने बुआ को दो आपॅषन दे दिए या तो में या ये तेरे घर वाले । बुआ ने भी दूसरा आपषन पसंद किया क्योंकि वो भी जानती थी की इसकी बस की कुछ नहीं है बस ऐसे मोके पर अगर वह नाराज नहीं हुआ तो फिर फूफा किस बात का। सब फूफा को मनाने में लग गए। अरे अब छोड़ो गुस्सा थूक दो आखिर हुआ क्या है । अरे हुआ क्या है सालों फूफा हूं फूफा कोई इज्जत ही नहीं यहां तो जवांई की। जिसे देखों अपनी धुन में ही मस्त है । साली हमारी कोई इज्जत ही नहीं है , ये साले पगड़ी लाए हैं हमारे लिए देखो तो केसी पुरानी-धुरानी सी है, अबे कबाड़ी बाजार से लाए हो क्या। प्रीतम ने देखा की मामला बिगड़ रहा है उसने आनन फानन में एक नई पगड़ी और अध्धा मंगवाकर फूफा को दिया , तब जाकर फूफा षांत हुए और घुड़चड़ी की रस्म को पूरा करने को तेयार हुए। दिल्ली थी इसिलिए घुड़चड़ी में कोई दिक्कत नहीं थी , अगर कहीं गांव-गोट की बात होती तो प्रीतम जी को भी साईकिल पर ही बारात लेकर जाना पड़ता । फूफा बड़े खुष थे ससुराल की तरफ से सगुन के रूप में सोने की अंगूठी जो मिली थी हां थोड़ी हलकी जरूर थी । बुआ को भी अच्छी विदा की आस था। इधर बारात आने ही वाली थी उधर पूजा को राजू की चिंता हो रही थी । उसका मन कुछ उचट रहा था मैनें कहा था भाई आज षादी के दिन भी तुझे काम पर जाना ? बहन बस थोड़ी देर की ही बात है सेपटी टेंक में कुछ प्राब्लम हो गई है, बेंक्वेट के मालिक बिल्लू सिंह ने थ्रीव्हीलर
भेजा है , नहीं गया तो मेंरी पूरे महीने की पेमेंट फंस जाएगी। बस थोड़ी देर की ही बात है और बाबू भी तो साथ में जा रहा है मैरे। चिंता मत कर में यो गया और यू आया।
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राजू और बाबू दोनो ग्रेंड पर्ल बेंक्वट आनन-फानन में आ पंहुचे बिल्लू सिंह ओर टिल्लू सिंह और केयर टेकर राहुल भी वहां खड़े थे । देखो राजू आज की आज ही इस सेप्टिक टेंक को क्लीयर करो षाम को मुझे इसमें कोई भसड़ नहीं चाहिए। मालिक साहब कोई भसड़ नहीं होगी चिन्ता मत करो हम इसे बिल्कुल क्लीन कर देंगें पर आप भी हमारी पेमेंट आज फाइनल कर देना । ओ तुम पेमेंट की चिन्ता मत करो, बिल्लू सिंह ने कभी किसी के पेस्से नही मारे पुत्तर । राजू और बाबू ने काम तो ले लिया पर उन दोनो की ही इस काम का अनुभव नहीं था। बाबू यार डर लग रहा है
अबे डरता क्यूं हैं।
अबे डरू नही ंतो क्या यार ये काम मैनें कभी नहीं किया है ।
अच्छा साले डर लग रहा है , चल अभी तेरा डर निकालता हूं , बाबू ने अध्धा निकाला संतरा ब्रांड का था और गटागट आधा एक ही सांस में गटक गया। ले यह रहा डर भगाउ टॉनिक।
राजू ने बाबू के हाथ से डर भगाउ टॉनिक ले लिया और दो तीन बार में बड़ी मुष्किल से अंदर उतारा । हां अब चल क्या करना है ? अरे वॉह मेरे चीेता तू भी पीता है। कहते हैं अंधेरा और उजाला एक ही सिक्के के दो पहलू है , अगर अंधेरा है तो उजाला भी होगा और उजाला है तो अंधेरो के लिए भी तेयार रहना चाहिए मगर ऐसा क्यों होता है कि यह कहावत हमेषा सच क्यों नहीं होती । कुछ लोगो की जिन्दगीं इस देष में उजालों के साथ षुरू होती है और उजालों में ही खत्म होती है और ज्यादातर लोगो की जिन्दगी अंधेरों से षुरू और अंधेरों में ही खत्म हो जाती है । तो क्या ये कहावते इन मासूम लोगो का दिल रखने के लिए होती है । धर्म-कर्म, भाग्य दुर्भाग्य गरीब , मजलूमों को ही क्यों सताते है । अगर इनसान को सजा मिल सकती है तो इन भगवानों को क्यों नही । दोनो यार आज जान पर बाजी लगाकर सेप्टिक टेंक में उतर तो गए मगर ये क्या बाहर आने में इन्हे इतनी देर क्यों हो रही है और कुछ बोल भी नहीं रहे । अब बिल्लू सिंह की फटने लगी और टिल्लू जरा आवाज तो लगा इनको । अबे राजू क्या हुआ ओ बाबू ....... एक लंबी आवाज दी टिल्लू ने मगर नीचे से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई । सभी एक दूसरे के चेहरे देख रहे थे । बिल्लू और टिल्लू वहां से खिसक लिए किसी ने 100 नंबर पर फोन कर दिया। पुलिस की गाड़ी पिकू पिकू पिकू करती हुई आ गयी ।
100 नम्बर वालों ने लोकल पुलिस को कॉल किया और एंबुलेेंस और डिजास्टर टीम को भी मौके से इत्ला चली गई । धीरे-धीेरे मीडिया की टीमें भी वहां पंहुचने लगी। मीडिया वाले अपनी-अपनी तरह अपने चेनलों के लिए रिर्पोटिंग कर रहे थे । काफी मषक्कत के बाद दोनों के षवो को सेप्टी टेंक से निकाला गया और लाल बहादुर अस्पताल की मोरचरी में पंहुचा दिया गया।
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जिस घर में बारात आने वाली थी उसमें मातम पसरा था , किसी को भी इसका अंदेषा नहीं था। कहां तो माहोल जगमग था कहां चीख-पुकार मची हुई थी । दो नहीं कई जिन्दगींया बर्बाद हुई थी। आस-पड़ोस के सयाने आदमियों ने सलाह दी की षादी तो हो जाने दो अब जो हो गया सो हो गया। पूजा और उसकी मां का रो-रोकर बुरा हाल था। खेर जैसे तैसे विवाह सम्पन्न करा दिया गया ।
पूजा ने सोचा भी नहीं था उसकी जिंदगी इस तरह करवट ले लेगी। प्रीतम और पूजा को इस सदमें से उबरने में काफी समय लगा। अब किया भी क्या जा सकता था जिंदगी किसी के लिए नहीं रूकती । जिसे जाना था वो जा चुका था अब तो इन्हे अपनी आगे की जिन्न्दगीं काटनी थी। प्रीतम की जिन्दगी फिर से उसी ढर्रे पर चल पड़ी जिस पर चल रही थी। ये जिन्दगी भी कम से कम ऐवजीदार की जिन्दगी से तो काफी हद तक सुकून वाली थी । इसके लिए वह निगम पार्शद अंचना पवार का अहसान मानता जिसने बड़ी जोड़-तोड़कर 21 पोस्टे संेक्सन कराई थी। उन 21 पोस्टों में से एक में प्रीतम भी फिट हुआ था। क्योंकि प्रीतम पार्शद अंजना पवार का खासम खास हो गया था। दोपहर तक अपनी ड्यूटी करने के बाद प्रीतम अंजना पवार के आफिस आ जाता फिर जंहा मेडम जाती वहां प्रीतम भी साये की तरह मेडम के साथ रहता । मेडम ने इस मुकाम पर आने के लिए क्या-क्या पापड नहीं बेले । बड़े नेताओं को अपनी लाचारी की कहानी सुनासुनाकर उसने एक तरह की सिमपेथी हासिल कर रखी थी । षुरू-षुरू में उसने छोटी छोटी कहानियां लोगो को सुनाई बाद में एक्पर्टाई आने पर कहानीयां भी बड़ी होने लगी और पवार मेडम की स्थिति भी बड़ी होने लगी। आरम्भ में उसने मजबूरी में कहानियां गडी लेकिन बाद में इस खेल में उसे मजा आने लगा। और लगभग जिन्दगी के हर पहलू पर उसकी कहानियां पार्टी कार्यकर्ताओं से लेकर नेताओं तक पंहुच गयी और आखिरकार पार्टी का टिकट पा गई । इस समय कांग्रेस की स्थिति ऐसी थी कि वो किसी कुत्ते को भी खड़ा कर दे तो वो जीत जाता । मेडम पवार चुन कर आ गई थी। सांवले रंग की मेंडम पवार अपने परिधानों का विषेश ध्यान रखती । कॉटन साडी उनकी पसंदीदा परिधानों में से थी जिसे वो काफी सलीके से पहना करती । मेडम ने 21 पोस्टे सेंक्सन क्या कराई जैसे अकाल पड़़े हुए गांव में अनाज आ गया हो। सभी अपने अपने जुगाड फिट करने लगे । लेकिन जुगाड तो उसका फिट होना था जिनको मेडम पवार कहे। सुरजन बड़ा कांडी था मेडम पवार जानती थी । सुरजन और मेडम ने मिलकर लिस्ट बनाई सुरजन ने मेडम को समझाया कि मेडम सारे लोग फर्जी नहीं लगा सकते , अगर सारे फर्जी लगा दिए तो हम फंस सकते है । ऐसा करो की आधे लोग इमानदारी वाले लगा दो और बाकी के आधो पर फर्जी लोग चल जाएगें। मेंडम को बात जंच गई । जो आधे इमानदारी वाले थे उस लिस्ट में प्रीतम सबसे उपर था मेंडम की वजह भी थी फिर उसका पंद्रह साल का रिर्काड भी था। उधर मेडम पवार का कार चालक था सत्ते जिनवाल उसकी बांछे भी खिली हुई थी । वह खुद तो परामानेंट कर्मचारी था लेकिन वह अपनी घरवाली को भी फिट करवाना चाह रहा था। मेडम खुद धर्म संकट में फंसी थी । ड्राईवर तो देखा जाए पर घर में जो महाभारत थी उसको कैसे निपटे । चाचा, ताउ, मौसा , मोसी, फूफा जीता कोई ऐसा रिष्तेदार नहीं था जिसकी अर्जी नहीं लगी हो इन इक्कीस पोस्टो के लिए। एक एक नाम पर अंतरराश्टीय सम्स्या जैसा गंभीर चिंतन चल रहा था। सबसे पहले तो पवार मेंडम ने अपने खुद के लडके का नाम लिखाया, फिर उसने अपने देवर की बहू का नाम लिखाया , ऐसे करते करते वो मुष्किल से सभी रिष्तेदारों को खुष करने की कोषिष की लेकिन वो कोषिष पूरी नहीं हो पाई । फिर भी उसके अपने 10 रिष्तेदार फिट हो रहे थे ये कोई कम बात नहीं थी । सत्ते जिनवाल की बहू का नाम कैसे आ जाता। जीनवाल बहुत उदास था। मेडम के लिए उसके दिल में बड़ा रोस आ रहा थां। अब मेडम उसे कैसे बताए की तेरी बीबी को अगर रखती तो उसका एक रिष्तेदार बाहर
हो हाता। लेकिन जीनवाल ने भी कसम खा ली थी कि वो किसी को भी चैन से जीने नहीं देगा। एक गाना है न ये सहारा ही बहुत है मेरे जीने के लिए, तुम अगर मेरी नहीं तो पराई भी नहीं । आदमी की एक फितरत है अगर वह खुद फेल हो जाए तो उसे इतना दुख नहीं होता जितना दुख दोस्त के फर्स्ट आ जाने पर होता है। सत्ते जीनवाल अब इस मिसन पर लग गया कि कैसे ये इक्कीस पोस्ट पर लगे हुए लोगो को हटवाए ,हटवा भी सकता था क्योंकि ग्यारह अगर ठीक लगे थे तो दस में घपला था। दस लोगों में से किसी का भी एमसीडी में एवजीदार के रूप में कोई पुराना रिर्काड नहीं था।
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प्रीतम और मंगली अपनी हाजिरी पर आज समय से आ गये थे ये हाजिरी वो जगह होती है जहां दरोगा और अन्य कर्मचारी इक्टठा होते है । बाहर उन्हे कमली मिल गई जो दोनों का ही इंतजार कर रही थी। उसने दोनो को देखा और अपनी तरफ बुलाने का इषारा किया । प्रीतम और मंगली को कुछ षंका हुई आखिर आज से पहले कभी कमली ने उन्हे इस तरह नहीं बुलाया था। कमली के चेहरे पर कुछ चिंता की रेखाएं नजर आ रही थी। प्रीतम ने दबी आवाज में पूछा कि क्या हुआ है इतनी परेषान क्यंू लग रही है। सुनों दरोगा के पास दो लेटेर आए है तुम दोनो को पूछ रहा था। दोनो दरोगा के सामने हाजिर हो गए दोनो के पेट में तितलियां उड़ रही थी। दोनो को कुछ अनिश्ट की आंषका हो रही थी। दरोगा ने दोनों को देखा और कहा ओ आ गए तुम । भाई देखो ये तुम दोनो के नाम के पत्तर आए है ये लो और इस रजिस्स्टर में रिसिविंग दे दो। दोनो ने प्रष्नसूचक नजरो से दरोगां को देखा मानों ये पूछ रहे हो कि आखिर इन पत्तरों में लिखा क्या है। साब इसमें क्या लिखा है दोनों ने एक साथ ही पूछा ? अब दोनों पत्तरों को तो एक साथ नहीं पढ़ सकता पर हां चल पहले तेरा पत्तर बता देता हूं प्रीतम। तो सुन भाई ये पत्र कमिष्नर की तरफ से आया है और इसका लब्बोलुआब ये है कि तुझे कल से काम पर आने की कोई जरूरत नहीं । मतलब क्या मेरा टांसफर कर दिया गया है ? नहीं भाई टांसफर नहीं किया गया है बल्कि आपको नौकरी से हटाया जा रहा है क्योंकि जो इक्कीस पोस्टे सेक्षन हुई थी विभागीय जांच के दोरान उन्हे फर्जी पाया गया हैं । फर्जी कैसे पांच साल से तो काम कर रहा हूं फिर आज अचानक फर्जी कैसे हो गयी। अब भाई ये तो मंे नहीं बता सकता इसका जवाब तो कमिष्नर साब ही दे सकते है जिन्होनें ये पत्तर जारी किया है। प्रीतम को अचानक ऐसे लगा जैसे आसमान से गिरा हो और खाई नहीं बल्कि किसी गहरे संमदर में गिर गया हो। छह फुट उंचे प्रीतम को चक्कर आ गया, गले का थूक तक सूख गया । बड़ी मुष्किल से साथी कर्मचारीयों ने ढांढस बंधाया। अब बारी थी मंगली के पत्तर की और साब मेरा पत्तर किस लिए आया है ? बताता हूं बताता हूं जल्दी क्या है। तो भई ये जो तेरा प्रेम पत्तर आया है ये आया है बेंक से रिकवरी का । रिकीविरी का किस चीज की रिकीविरी दरोगा जी ये रिकीविरी क्या होती है ? रिकीविरी नहीं रिकवरी , इसका मतलब यह है कि अगर आप बेंक से लोन लेते हो और किस्त नहीं चुकाते तो यह लेटर आता है । लेकिन दरोगा जी हमणे तो बेंक से अभी तक कोई लोण नहीं लिया ? लिया है या नहीं लिया ये में नही जानता, बेंक के नोटिस के अनुसार तुमने बेंक से पांच लाख का लोन लिया है और उसकी किस्त तुम चुका नहीं रहे हो , अब तेरे पति और तेरी तनख्वाह से से वो पैसा लिया जाएगा। प्रीतम तो संभल गया था लेकिन मंगली तो बेहोष होकर गिर गयी। आनन फानन में उसे लाल बहादुरा षास्त्री हॉसपिटल ले जाया गया। आंख खुली तो उसकी सास , ससुर पति और बड्डे बॉय गणेषी खड़े थे । सभी
जानना चाह रहे थे कि आखिर अचानक कैसे बेहोष हो गयी। के बात है भागमाण केस्से चक्कर आगा तुझझे? मंगली की अभी भी समझ मंेे नहीं आ रहा था उसने पति षंकर से कहा कि देखो जी बेंक की रिकीवीरी का पत्तर आया है । दरोगा सससाब कह रहये थे कि थारी और म्हारी तनखा में से बेेंक को रूपए जमा कराने होगें वो भी हर महीने , कह रहये थे कि हमणे पांच लाख का लोण लिया है । अरी भागमाण कद लिया हमणे लोण अभी विजय कह रहा था कि कुछ और समया लगेगा लोण पास होणे में । खेर जैसे तैसे मंगली को छुट्टी मिल गयी तो पूरा परिवार पंहुचा डाक्टर के0पी0 के पास , डाक्टर के0पी0 वैसे तो ऐडवोकेट के मुंषी थे पर लोग उन्हे डाक्टर के0पी0 ही कहते थे क्योंकि एक समय उनकी नीम हकीम वाली दुकान थी । पर डाक्टर के0पी0 ने वो धंधा बंद कर दिया था क्योंकि एक बार एक औरत को गलत इंजेक्षन लगा दिया था और औरत चल बसी। तो डाक्टर केपी की डाक्टरी भी चल बसी। दो साल जैल में रहे वहीं से एलएलबी का फार्म भर दिया और आज एडवोकेट हो गए और आज कड़कड़डूमा कोर्ट में मुंषीगिरी कर रहे है। समझ गये है कि ये पेषा ही एक ऐसा पेषा है जिसमें जेल नहीं हो सकती। डाक्टर केपी ने नोटिस पढा और पढ़ते ही समझ गये कि किसी ने इनका चूतिया काट दिया है। देखो भाई इसमें अब कुछ नहीं हो सकता तुम्हारे नाम से बेंक ने पांच लाख का लोण दिया है जिसकी मंथली रिकवरी अब तुम दोनों की तनखा से होगी और इसे कोई नहीं रोक सकता है। अब केवल ये हो सकता है कि जिसने भी तुम्हारे नाम से लोन का ये घपला किया है उससे तुम हाथ पांव जोड़कर अपने पैसे निकलवा लो, जो वो देना चाहे। अब तक दोनों को समझ आ गया था कि असली कांड विज्जू ने किया है ।
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प्रीतम को ऐसा लग रहा था कि जैसा उसका किसी ने बलात्कार कर दिया हो । पूजा घर पर ही थी क्योंकि आज उसे डयूटी नहीं मिली थी। उसने आते ही प्रीतम पर सवाल दाग दिया क्यों जी क्या हूआ, आज इतनी जल्दी कैसे आ आ गए? प्रीतम गुम सुम था हाथ में लेटर था दिमाग एक-दम भश्ट हो गया था। चैहरा ऐसा हो गया था मानों पत्थर , भाव विहीन चैहरा उसे देखकर ऐसा लगता था मानों वो जिन्दा भी है या नहीं। प्रीतम ने जिस नौकरी को 20 साल पाल कर बड़ा किया था वो आज अचानक एक 10 पैसे के कागज से खत्म हो गई थी , इस बात का प्रीतम को विष्वास ही नहीं हो रहा था। उसे तो लग रहा था कि अब कुछ दिन की बात और है इस बार षायद उसके पक्के होने की बारी आ जाए। सीनियरटी लिस्ट में भी उसका नाम उपर ही था । इस बार जो लिस्ट आनी थी उसमें उसका नाम आना एक तरह से तय था। मगर ये क्या पक्का तो छोड़ो वो तो अब कच्चा भी न रहा । पूजा ने प्रीतम को आज तक एैसे टूटा हुआ नहीं देखा, प्रीतम को इस तरह टूटा हुआ देखकर उसकी आंखों से आंसुओ की धारा बह चली। पूजा ने प्रीतम को अपने अंक में छुपा लिया जैसे कोई अपने बच्चे को छुपा लेता है । प्रीतम भी पूजा से चिपटकर जी भरकर रोया । पूजा हम बरबाद हो गए , सबकुछ बरबाद हो गया । क्या हुआ कुछ बोलोगे भी ? क्या बोलू यार आज गया था दरोगा ने लेटर दिया है कह रहे है कल से आने की जरूरत नहीं । 21 पोस्ट फर्जी थी , जो लगे थे स बको हटा दिया है । एैसे कैसे हटा देगें कोई घर की खेती है उनकी? हम वकील करेगें , लड़ेगें कोर्ट में । इतने साल की तुम्हारी तपस्या क्या एैसे ही हटा देगें तुम्ह? पूजा कहां जानती थी कि व्यवस्था के आगे कोई तपस्या कोई मानवीयता नहीं चलती , वयवस्था हूक्मरानों के हुक्मों से चलती है। कानून तो अंधा होता है लेकिन व्यवस्था अंधे होने के साथ बहरी भी होती है। हर रोज कितनी जिन्दगीया इस व्यवस्था की भेंट चढ़ जाती है लेकिन व्यवस्था है कि उसकी रक्त पिपाषा का अंत होने का नाम नहीं । खेर प्रीतम अकेला नहीं था उसके
साथ 20 ओर लोग थे जो बर्खास्त हुए थे । 21 तो नहीं पर 11 लोग तो बिल्कुल ऐसे थे जिनकी कोई गलती नहीं थी मगर फिर भी वो आज अपनी नौकरी से हाथ धो चुके थे। सभी अपने अपने स्तर पर कारवाई करने में लगे थे जिसको जो समझ में आ रहा था वो वो कर रहा था। फिर भी बीमारी एक ही थी तो इलाज भी एक ही होना था ये बात उन्हे समझ में आ गयी और सभी ने मिलकर एक दिन मीटिंग बुलाई। प्रीतम चुकि पहले से नेतागिरी में था तो स्वाभाविक रूप से वो ही इस मुहिम का लीडर भी हो गया। मींिटंग में सभी को अपने अपने सुझाव रखने का मोका दिया गया। सबसे पहले बात निकल कर आई की क्यों न वर्तमान निगम पार्शद से चलकर बात की जाए और उनसे सारे मामले को कमिष्नर के सामने रखने का दवाब डाला जाए। अंजना पवार का कार्यकाल पूरा हो चुका था उनकी जगह अब नए निगम पार्शद रामचरण गोयल चुनकर आ गए थे। सभी गोयल जी के दरबार में पंहुच गए , गोयल जी ने सभी को बड़े सम्मान के साथ बिठाया और अपनी संवेदनाए भी उनके लिए प्रकट की। देखों भाई आप लोगो के साथ बहुत बुरा हुआ , ऐसा तो किसी दुष्मन के साथ न हों , मैनें आपकी 21 पोस्टों के बारे में काफी सुना है , मेरी बात भी हुई थी कमिष्नर साब से , लेकिन देखो इसमें अब बात कमिष्नर के हाथ में भी नहीं है। आपकी 21 पोस्टों को हाई पावर कमिटी की सिफारिष पर समाप्त किया गया है। अब तो कमिष्नर क्या कमिष्नरा का बाप भी आ जाए तो इसमें कुछ नही ंकर सकता । मेरी समझ से तो इस मेटेर में अब कुछ रखा नहीं है बेकार में धक्के खाने है तो भाई खा सकते हो , देखों मेरी बात का बुरा मत मानना में जो कहता हूं सच कहता हूं चाहे किसी को बुरी लग जाए। सभी एक दूसरे की तरफ देख रहे थे ,वे समझ गए थे कि इस दरवाजे से उनका कोई भी भला होने वाला नहीं है । गोयल साहब तो पहले से ही सारे सवालों के जवाब तैयार करके बैठे थे । सभी ने वहां से चलने में ही अपनी गनीमत समझी। जब सारे रास्ते बंद हो जाए तो एक ही रास्ता बचता है वो है कोर्ट का जो संविधान ने सबको दिया है। अब सभी ने एक साथ पिटिषन डालने की बात सोची लेकिन ऐन वक्त पर कई मुचत्कों ने काम बिगाड़ दिया और ये जो एषोषिएसन बना था ज्यादा दिन तक टिक नहीं सका और टूट गया। अब सभी ने अपने अपने हिसाब से वकील कर लिए और सभी के मामले कोर्ट में पंहुच गए।
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भारत में कोर्ट कचहरी की स्थिति से हम सभी अवगत है सालो-साल मुकदमा चलता है , लोगो की उम्र बीत जाती है इंसाफ लेने में यहा भी ऐसे ही कुछ हो रहा था। छह फुट के लंबे चोडे प्रीतम के बाल पक गए है , चेहरे पर भी झुर्रीया आ गई है , प्रीतम अब 501 नम्बर की बीड़ी पीता है , मां और बाप दोनो गुजर चुके है मुहल्ले के लोंडे अब उसे चाचा कहने लगे है। प्रीतम ने अपने लोंडे साजन को आवाज लगायी साजन ओ साजन हां पिताजी साजन अब अठारह साल का नोजवान हो गया है । हां पिताजी क्या हुआ ? अबे होना क्या है कोर्ट में तारिख है तैयार होजा चलना है । अरे पिताजी हर बर तारीख ये तारीख न हुई कोई मुसीबत हो गई । होना हवाना कुछ नहीं है बस तारीख भुगतते रहो इतने साल गुजर गए तुम्हे कुछ हुआ भी है । जज को जब देखो तब बस तारीख ही दे देता है कोई आडर-वाडर सुनाता नहीं । पता नहीं कब फेसला देगा । फेसला तो आपको मिला नहीं पर हां कोर्ट जाकर आपको लंगडापन जरूर मिल गया है। हुआ यू एक दिन भुगतने तो गए थे तारीख मगर कोर्ट के सामने ही मोटर साईकिल वालों ने ऐसी टक्कर मारी की वो दिन का दिन है आज तक प्रीतम लंगड़ा कर चलता है। साला ये तो वही बात हुई की नमाज अदा करने गए थे और रोजे गले पड़ गए। दोनों बाप बेटा आज फिर जा रहे है कोर्ट आज तारीख है । पूजा भी ढल गई है कुछ गरीबी ने ढला दिया कुछ उम्र ने उसने पीछे से पुकार अजी सुनते
हो ? हां बोल तुझे भी अभी बोलना है कितनी बार कहा है पीछे से मत टोका कर। थोड़ा फुसफुसाकर बोली... अरे इधर आओं में ये कह रही थी में पंडित जी के पास गई थी उन्होनें ये नींबू दिया है मंत्र फूंक कर । कह रहे थे जब भी जज के सामने जाए जज की तरफ देखकर जोर से सात बार दबा दे और वापस आते हुए किसी नाले में बहा दे, फेंसला हमारे ही हक में आएगा। कह रहे थे बड़े-बड़े केस जितवा दिये है उन्होनें ये तो छोटा मोटा केस है यूंही जीत जाओगें । प्रीतम इस बात पर कोई बहस नहीं चाहता था चुपचाप नीबंूू रख लिया और टोटका पूरा करने का विष्वास दिलाया। अच्छा सुनों ये हरी षर्ट भी उतारों । अरे अच्छी तो लग रही है अब इसमें क्या खराबी आ गई है । खराबी इसमें नहीं इस हरे रंग में आज ही आज तक वाले पंडित ने बोला है कि आज तुम्हारा षुभ रंग आज लाल रहेगा। ये लो ये लाल रंग वाली षर्ट ही पहनों। और हां सुनों आज आते वक्त तुम और साजन बाहर से ही छोले भटूरें खा लेना आज में सत्संग में जा रही हूं और षाम को कलष यात्रा भी है ,बापू जी आजकल दिल्ली में है । हमारी सारी संगत सत्संग में जा रही है , बस यहीं चांद सिनेमा से जाएगी और षाम को यहीं छोड़ देगी। दस बजे का समय दिया है वकील चौरंगी लाल सक्सेना आजकल मुषींगिरी कर रहे डा.के.पी.सिंह के ही जान पहचान का है। थ्रीव्हीलर वालों ने आवष्यक जिरह करने के बाद कोर्ट जाने के लिए सौ रूपए में हां कर दी। साजन को गुस्सा आ रहा था जब मीटर लगा है तो फिर मीटर से क्यों नहीं चलता? बाबू जी चलना है तो चलो हमारा बोनी का टाईम है क्यों टोक डाल रहे हो। डा.केपी ने बीचबचाव किया अच्छा अच्छा चलों यार ले लेना सौ रूपए अब क्यों जान दे रहो हो? थ्रीव्हीलर अपने गंत्वय पर था थ्री व्हीलर वाला बोला भाई साहब एक बात बोलूं बुरा नहीं मानियेगा। अब बोल लगेगा तो लगेगा लेकिन बोल लोकतंत्र है बोलने की आजादी तो बाबा साहब सब को देके ही गए है कैपी ने चुटकी लेते हुए कहा। इ देखिए कर दिये न रजनीति आप डाईवर हंसते हुए बोला। अबे इसमें राजनीति क्या है बोल जा तुझे बोलना है । देखिए भाई साहब हमकों बहुते दिन हो गया इ थ्रीवीलर चलाते-चलाते जो, हम देखते है कि बड़ा बडा बाबू साब सब हम छोटै आदमियों से दुई दुई रूपया बचाने को घंटा बहस कर लेगा लेकिन जब उही साब या मेमसाब किसी माल में जाएगा न तो जो ससुर माल वाला मांगेगा तुरत ही दे देगा। ए लो बातो बातो में इ कोटवा आ गया ।
लाओ जी जल्दी करो .... केपी गाड़ी रूकते ही उतर गया और अपनी फाईले उल्टा पल्टी करने लगा। प्रीतम ने पचास ,बीस और दौ नोट दस के और बाकि के सिक्के मिलाकर रिक्षा वाले का भाड़ा चुकता किया। रिक्षा वाले के एक बार तो मन में आया होगा यार इसके बीस तीस रूपए वापस कर दे , लेकिन रख लिए और अपने रास्ते चल पड़ा। कोर्ट का विषाल दरवाजा और प्रांगण सामने था जहां देखो वहां भीड़ ही भीड़ । खैर जैसे तैसे बचते बचाते प्रीतम , साजन और केपी कमरा न0 25 पर पंहुच गए । कमरे के बाहर सब जज साहब के आने की प्रतीक्षा कर रहै । कमरे के बाहर एक दीवार पर ए 4 साईज पेपर पर उन कैसों के नाम सीरीयल वाइज लिखे हुए थे जिनकी आज सुनवाई होनी है। कमरे के बाहर लोगो की भीड़ जमा है । प्रीतम ने केपी से पूछा क्या हुआ वकील साहब अभी तक आए नहीं ? अरे आ ही रहे होगें , तुम भी न प्रीतम कुछ ज्यादा ही जल्दी में रहते हो। तैयारी भी तो करनी होती है सबकी, एक तुम्हारा ही तो कैस नही होता वकील साहब के पास। मुषीं केपी की आदत थी बात बनाने की और भाई तुम इतने सारे लोग कैसे आए हुए हो क्या एक ही कैस में हों ? हां जी कैस तो एक ही है क्या बताए लड़के-लड़की में बनी नहीं । बहू लड़ाई कर चली गई कुछ दिन बाद दहेज का मुकदमा डाल दिया। एक बच्चे तक को नहीं छोड़ा , चार बहने - चारों जीजा, दो बुआ दो फूफा, पांचों भाई उनकी पत्नीयां । भाईयों के बालिग बच्चे यहां तक की लड़के के दोस्तों तक को नहीं छोड़ा है । अब जब भी तारीख पड़ती है 50 लोगो को आना पड़ता है। नहीं आओ तो जज सम्मन निकाल
देता है। हां भाई कहानी तो बड़ी दुखभरी है तुम्हारी बायदवे ये मेरा कार्ड है किसी भी तरह का कैस हो मुझे जरूर फोन करे । कसंलटेंसी मुफत है आपको डिसकाउंट भी दिला दूगा। न्यायालय का रूम कोर्ट कम कबाड़खाना ज्यादा लग रहा है , कुर्सिया टूटी हुई , जज की कुर्सी सबसे बड़ी है आगे दाए बांए जज के सहायक अपनी अपनी जगह ले चुके है। प्रीतम ने साजन को कहा ... बेटा जरा देखियों अपना नम्बर कोन सा है? साजन देख ही रहा था इतने में केपी बोल पडा अरे बेटा आज ग्यारवा नम्बर है अपना चिन्ता मत करो जल्दी आ जाएगा। जल्दी आता भी तो क्यों न जज ने कोन सा फेसला सुनाना होता है , वर्शो से न जाने कितने ही मामले लटके हुए है होना क्या है आपको अगली तारीख मिल जाएगी। लोग अदालत में इसांफ लेने जाते है , और तारीख लेकर लोटते है । कितने तो एैसे होते है जो इंसाफ के इंतजार मे ं पूरी जिन्दगी लगा देते हैं और जब इंसाफ मिलता भी है तो उस इंसाफ का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। प्रीतम का कैस जाने-माने जज धर्मेष षर्मा जी के यहां लगा था जिन्होनें एक दंपती जो मात्र 20 दिन तक साथ रहे थे लेकिन तलाक लेने में उन्हे 20 साल लग गए। जज साहब की साख बहुत अच्छी है न्याय बेषक देर से देते है लेकिन अन्याय नहीं होने देते। प्रीतम का कैस बहुत मुष्किल से जिरह तक पंहुचा है लेकिन जिरह है कि षुरू होने का नाम नहीं लेती । कभी जज साहब का मन नहीं होता , तो कभी विरोधी पक्ष का वकील तारीख ले लेता है तो कभी प्रीतम के वकील को ही समय नहीं मिलता तो वो मुषीं को भेजकर तारीख ले लेता है। आज भी चौरंगी लाल सक्सैना नहीं आ रहे है अभी अभी उन्होनें केपी को खबर भिजवाई है कि अगली तारीख ले ले। आते भी तो क्या कर लेते , वहीं हुआ जिसका डर था जज साहब आए एक एक कर के उन्होनें सभी को अगली तारीख दे दी। क्योंकि आज जज साहब को भी जल्दी जाना था उनकी पत्नी के मायके में कोई फंक्षन था। प्रीतम को भी छह महीने बाद की तारीख दे दी गई । जाते-जाते केपी ने प्रीतम से 200 रूपए निकलवा लिए प्रीतम ने अनमने मन से केपी को दौ सो रूपए दे दिए। हांलाकी प्रीतम का कैस 30 परसेंट के हिसाब से वकील चौरंगी लाल ने तय किया हुआ है । वकील इस तरह के कैस परसेंट पर ले लिया करते है । यानि प्रीतम को जितना भी मुआवजा सरकार की तरफ से मिलेगा उसका तीस परसेंट प्रीतम वकील को दे देगा । लेकिन फिर भी वकील और मुंषी कहां मुवक्किल को छोड़ते है । कोर्ट, थाना और हसपताल ऐसी जगहे है जहां अगर कोई पंहुच जाए तो देकर ही आना होगा । इसके बिना कोई चारा नहीं। तारीख पर तारीखे पड़ती जा रही थी । प्रीतम भी यह सोचकर की जल्दी ही उसको न्याय मिल जाएगा साहूकारों से कर्जा लिए जा रहा था। घर तक उसका गिरवी हो गया था। हर तारीख को लगता की आज कोई न कोई फेसला आ जाएगा। आपको क्या लगता है की प्रीतम का क्या हुआ होगा? क्या प्रीतम को उसकी नौकरी वापस मिल गई होगी ? क्या इतने दिन जो वह नौकरी से बाहर रहा उसका उसे कोई हर्जाना कोर्ट दिला पाएगा? कोर्ट आखिर कब उसे इंसाफ देगा? इक्कीस पोस्ट वालों का क्या हुआ? इस सब सवालों के जवाब अभी तक नहीं मिले है । प्रीतम आज भी इस इंतजार में है कि उसकी नौकरी उसे वापस मिल जाएगी और षायद उसको एरियर भी मिल जाएगा। लेकिन कब ये भविश्य के गर्भ में है फिलहाल तो प्रीतम हर तारीख पर कोर्ट चला जाता है । प्रीतम की दो बेटियां हुई थी जिनकी षादी उसने जैसे तैसे कर्ज लेकर कर दी थी । साजन और राजन दौ बेटें है जो जवान हो चुके है और फिलहाल प्राईवेट छोटी मोटी नौकरी कर प्रीतम को सहारा दे रहे है। मंगली और षंकर की बात तो रह ही गई वो आज भी ऐसे लोन की किस्त अपनी तनख्वाह से चुका रहे है जो उन्होनें कभी लिया नहीं। विज्जू के बारे में सुनते है कि इस तरह धोखा धडी करके उसने अच्छा खासा पैसा बना लिया है और आज कहीं का निगम पार्शद भी हो गया है। प्रीतम के अलावा तीन अन्य लोग जिन्होनें अपनी नौकरी पाने के लिए कैस
किया हुआ था आज बिना न्याय के मृत्यु को प्राप्त हो चुके है। इक्कीस पोस्ट वालो का फेंसला आना अभी बाकी है ।