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गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

मिले थे यक़ - ब - यक़ क्या वो ज़माने याद आएंगे

किसन स्‍वरुप

मिले थे यक़ - ब - यक़ क्या वो ज़माने याद आएंगे,
किये फिर तर्क़ रिश्ते, क्या बहाने याद आएंगे।
हमारी तंग -दस्ती और ख़ुद्दारी का वो आलम,
मिले ,कितने ज़माने- भर के ताने याद आएंगे।
समय की चाल से चलते न जाने हम कहाँ होते,
कभी हालात की उलझन, फ़साने याद आएंगे ।
सफ़र की ठोकरों ने रहगुजर में हौसला बख़्शा,
कभी तनहाइयों मे वो ठिकाने याद आएंगे।
तुम्हीं जिनका सबब थे औ तुम्हीं थे दर्द आलूदा,
पड़े थे ज़ख़्म वो सारे छिपाने, याद आएंगे।
न कोई फ़िक्र-फ़ाक़ा औ न कोई काम की उलझन,
लड़कपन के, गये वो दिन सुहाने याद आएंगे ।
वही पगड॔डियाँ,पनघट,पनारे, गाँव की पोखर,
हमें बेइन्तहा , वो दिन सुहाने याद आएंगे ।

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