मिले थे यक़ - ब - यक़ क्या वो ज़माने याद आएंगे,
किये फिर तर्क़ रिश्ते, क्या बहाने याद आएंगे।
हमारी तंग -दस्ती और ख़ुद्दारी का वो आलम,
मिले ,कितने ज़माने- भर के ताने याद आएंगे।
समय की चाल से चलते न जाने हम कहाँ होते,मिले ,कितने ज़माने- भर के ताने याद आएंगे।
कभी हालात की उलझन, फ़साने याद आएंगे ।
सफ़र की ठोकरों ने रहगुजर में हौसला बख़्शा,
कभी तनहाइयों मे वो ठिकाने याद आएंगे।
तुम्हीं जिनका सबब थे औ तुम्हीं थे दर्द आलूदा,कभी तनहाइयों मे वो ठिकाने याद आएंगे।
पड़े थे ज़ख़्म वो सारे छिपाने, याद आएंगे।
न कोई फ़िक्र-फ़ाक़ा औ न कोई काम की उलझन,
लड़कपन के, गये वो दिन सुहाने याद आएंगे ।
वही पगड॔डियाँ,पनघट,पनारे, गाँव की पोखर,लड़कपन के, गये वो दिन सुहाने याद आएंगे ।
हमें बेइन्तहा , वो दिन सुहाने याद आएंगे ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें