आज के रचना

उहो,अब की पास कर गया ( कहानी ), तमस और साम्‍प्रदायिकता ( आलेख ),समाज सुधारक गुरु संत घासीदास ( आलेख)

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

चाहता वो हमें इस दिल में बसाना शायद

 

चाहता वो हमें इस दिल में बसाना शायद।
बात ये भूल गया हम को बताना शायद।
झूठ को सच की तरह मान रहे थे सारे।
जो असल सच वो किसी ने भी न जाना शायद।
प्यार की राह में कुरबान हुए कितने ही।
शेष दुनिया में रहा उन का फसाना शायद।
वास्ते देश के जो जान गँवाए अपनी।
याद उन को ही रखेगा ये जमाना शायद।
खार ही खार नजर आ रहे हैं गुलशान में।
बागबां भूल गया फूल खिलाना शायद।
प्यार में हो गया पागल जो अगर मैं उस के।
वो भी तो चाह रहा मुझ को ही पाना शायद।
शाम को लौट के कश्यप न परिंदा आया।
फँस गया जाल में वो देख के दाना शायद।
****
रचनाकार
प्रदीप कश्यप


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें