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गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

रक्तिम अधरों के पंकज उर

संतोष कुमार श्रीवास
 
रक्तिम अधरों के पंकज उर,मृदु सुमन सुवासित होते हैं।
मरंद के झरते हैं निर्झर,मधुकर लालायित होते हैं।।
नित सजल नेह की सरिता मे।
मृदु कुमुद नीड़ की कविता मे।
उस छंद बद्ध की ड़गर सुघड़।
मन सुमन सुवासित होते हैं।
रक्तिम अधरों के पंकज उर,मृदु सुमन सुवासित होते हैं।
मरंद के झरते हैं निर्झर,मधुकर लालायित होते हैं।।
करुणा की केशर क्यारी मे।
अरुणिमा अधर फुलवारी मे।
उरतल की निश्छल गात महा।
हृद् मुकुर आह्लादित होते हैं।
रक्तिम अधरों के पंकज उर,मृदु सुमन सुवासित होते हैं।
मरंद के झरते हैं निर्झर,मधुकर लालायित होते हैं।।
नयनों की शीतल छाया मे।
आंसु की गहनतम माया मे।
पलकों की निर्मल कुंज मृदुल।
नित नेह सुभाषित होते हैं।
रक्तिम अधरों के पंकज उर,मृदु सुमन सुवासित होते हैं।
मरंद के झरते हैं निर्झर,मधुकर लालायित होते हैं।।
नित-नित चरणों के पावन रज।
मुकलित,प्रमुदित,रक्तिम नीरज।
लालायित नयनन की आभा।
अश्रु सिंधु समाहित होते हैं।
रक्तिम अधरों के पंकज उर,मृदु सुमन सुवासित होते हैं।
मरंद के झरते हैं निर्झर,मधुकर लालायित होते हैं।।


कोरबा (छत्तीसगढ़)

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