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रविवार, 26 दिसंबर 2021

कविताएँ केशव शरण

एक जुगनू
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वह सूरज को बतायेगा
वह उसका मित्र है
वह चांद को बतायेगा
वह उसका दोस्त है
वह सितारों को बतायेगा
वे उसके चेले हैं

पत्ते-पत्ते से
बूटे-बूटे से

और उड़ेगा
टिमटिमा-टिमटिमा कर
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वह बहुत घबराया है
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एक को
सर देना है
एक को रक्त
एक को पसीना
एक को
घर देना है
फूंक अपना

वह बहुत घबराया है
जिसके हिस्से आया है
सिर्फ़ एक रोयें का
बलिदान

वह कहीं मुख़बिर न बन जाय !
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ध्यान
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मैंने जल लिया
आसमान लिया
जल में आसमान
और एक पेड़ का अक्स लिया
जल में मछलियां लीं
जल ऊपर पत्थर की सीढ़ियां लीं
और ध्यान किया
मुंह लटकाये औंधा

मुझे कुछ न कौंधा
प्रिये तेरे सिवा !
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भोगेच्छुक 
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भोगेच्छुक दृष्टि
विज्ञापन पर फैली है
लेकिन असल चीज़ थैली है
जिसकी कमी मजबूर कर देती है
भोग से 
दूर कर देती है

पर भोगेच्छुक दृष्टि वाला 
योगेच्छुक नहीं हो जाता
वह वंचना के दुख उठाता 
लेकिन भोगेच्छुक दृष्टि छोड़ नहीं पाता 
और दृष्टियों से भी होता हुआ अंध
करने में लग जाता 
थैली का प्रबंध 
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अंत तक 
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अभी मेरे पास समय है
ख़याल यही था मेरा
अंत तक 
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एस 2/564 सिकरौल 
वाराणसी 221002
9415295137

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