मैं
इंसान हूं
किसी भीड़ की आवाज नहीं
किसी स्लोगन का पक्षधर नहीं
हूं
मैं इंसान ही
उसी भीड़ का
उसी स्लोगन का
तुम्हें तो पता है
मुझे तोड़ा गया
हर बार स्लोगन से
और बनाया गया
हर बार भीड़ का अंग
हां
इंसान हूं मैं
बिना इंसानियत का.
उनका प्रकट होना
तुम्हारे विचारों में
फिर जाग गया प्रहरियों सी नींद
और खो गया
रंग त्योहारों से
आरज़ू भाषाओं से
प्रेम घरों से
तुम्हारे बाजुओं में
प्रकट हुआ गुरिल्ला
लाव लश्कर के साथ
और चमकने लगा भय
हमारे खलिहानों में
यहां अनुराग के आंच में
बेड़ियों में बंधा उत्सव
और चिरागों की आभाएँ
बीमार पड़े हैं गांव में
कि आंसुओं में तब्दील
हर दिल की आरजू
भूखा प्यासा भटका है यहीं कहीं
हां तुम्हारे रास्तों में
कोई नदी प्रकट नहीं होती
ना ही कोई फूल मुस्कुराता है
निकलता है एक बम
जो फूटता है किसी बस में
किसी चौराहे पर
और हम तब्दील हो जाते हैं
एक टूटे आईने के शक्ल में.
मोतीलाल दास
डोंगाकाटा, नंदपुर
मनोहरपुर - 833104, झारखंड
मो.9931346271/7978537176
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