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शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

मोह -गँधी गीत बन

कृष्ण मोहन प्रसाद 'मोहन '
 
मोह -गँधी गीत बन,
क्यों छेड़ती हो?
मैं जहाँ चूका सृजन हूँ,
और तुम बीती कहानी,
इस अगन्धी मरु -निशा की,
उष्ण-शुष्क वयार में भी,
खनखनाती तुम ---
तुम्हारी चूड़ियों की लय,
एक आदिम -बोध की,
मादक -ऋचा-सी,
अलस नयनों में,
शब्द रूपाकार होती,
क्यों अजानी राह पर,
तुम घेरती हो?
मोह -गंधी गीत बन,
क्यों छेड़ती हो?
रात की चूनर सितारों से टंकी हैं,
बे -खबर -सा भोर ज़ब सोया हुआ हैं,
तुम सजी -सी आरती करपूर -गंधी,
क्यों अचानक ही जली हो?
छीन कर फिर बाँसुरी उस कृष्ण की,
क्यों टेरती हो?
मोह गंधी गीत बन, क्यों छेड़ती हो?
जनम -जनम की रूठी राधा,
मनुहारों में सुर ज़ब साधा,
मौन -मुखर मुस्कान दिखा कर
छिपी -छिपी जाने किस तल में ---
छोड़ कृष्ण को आधा -आधा,
फिर गीतों में, उमड़ -घुमड़ कर,
असमय, कुसमय, चुपके, छिपके,
क्यों पेरती हो?
मोह -गन्धी गीत बन क्यों छेड़ती हो?
मोह गंधी गीत बन क्यों छेड़ती हो?


मुजफ्फरपुर (बिहार )

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