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गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

आज गुजरा समय याद आने लगा है,

आज गुजरा समय याद आने लगा है,

वो बचपन की यादें सजाने लगा है।
समय लोरियां गुनगुनाने लगा है।
वही माँ के हाथों की प्यारी थपकियाँ,
मेरे पीठ को थपथपाने लगा है।
कहीं खो न जाऊं, कही गिर न जाऊं,
कभी माँ की आँखों से,ओझल हो जाऊं,
वही खोजना, दौड़ना, हर तरफ देखना,
नाम लेकर बड़े जोर से बोलना।
आज फिर सब, हमें याद आने लगा है।
समय लोरियां, गुनगुनाने लगा है।
वो बचपन की यादें, सजाने लगा है।
कभी क्रोध मे आ के चाटाँ लगाना,
फिर रोते हुए देख,आशूँ बहानाँ
वो माता के हाथों का एक-एक निवालाँ,
मुझे आज फिर याद आने लगा है।
समय लोरियां गुनगुनाने लगा है।
वो बचपन की यादे, सजाने लगा है।
वहीं रूठना, भागना, दौड़ना,
क्रोध मे आ के, कुछ भी मेरा बोलना,
फिर भी माँ का मुझे, प्यार से देखना।
आज फिर मुझको, सब याद आने लगा है।
समय लोरियां गुनगुनाने लगा है।
वो बचपन की यादें सजाने लगा है।
माँ तो ममता की देवी है,
उसकी छाया मे पल बढ़ के,
तुमनें यह मंजिल पाई है।
माँ की खुशियों का ध्यान रखो,
जो जीवन तुम पर वारी है।
जिसनें तुमको है, रक्त पिलाकर,
पाला ,पोसा, बड़ा किया।
उस माँ को थोड़ा दर्द हुआ,
सब अच्छे कर्म गवाँ दोगे,
इस भवसागर मे सदा-सदा,
फसने का मार्ग बना लोगे।
✍️रत्नेश कुमार राय

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