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शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

करव‌ अन्न के मोल


- मनीराम साहू 'मितान'
 
करव‌ अन्न‌ के मोल‌ जी, काम हरय ये नेक।
लगय बछर उपजाय मा, देथव छिन मा फेंक।
सहिके घाम किसान मन, करथें खेत तियार।
घेरी बेरी जोंतथें, खातू माटी डार।
बोये बर दिन रात उँन, कर दथें जी एक।
लगय बछर उपजाय मा, देथव छिन मा फेंक।
नींद कोड़ चत्वारथें, पानी खूब पलाँय।
बरसा झड़ी धुँकान मा, भींजत ठुठर कमाँय।
करथें उँन‌ जी प्रान‌ दे, रइथे बुता जतेक।
लगय बछर उपजाय मा, देथव छिन मा फेंक।
फसल‌ कहूँ अब पाकगे, लुवई मिँजई काम।
खँटथे नित दिन जाड़ मा, मिलय नही आराम।
समझव गुनव किसान सब, सहिथें दरद कतेक।
लगय बछर उपजाय मा, देथव छिन मा फेंक।

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