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शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

तीन नवगीत

डॉ मृदुल शर्मा

  1.

दिन कटे
नैराश्य-भय से लड़खड़ाते।

रात-दिन थे कैद घर में
सिर झुकाये।
भूत भय का
अभय हो आंखें दिखाये।

कर्म-सैंधव 
देह  में थे छटपटाते।।

हो रहा था
काल का अनवरत तांडव।
गीत गूंगे हो गये थे
मौन कलरव।

पास आते
स्वजन भी थे थरथराते।।

मुश्किलों के पांव
अब पीछे मुड़े हैं।
फिर पखेरू जीत के,
नभ में उड़े हैं।

आ गये दिन फिर
हंसी से खनखनाते।।

       2.


किसे खबर थी,
ऐसे दिन भी आएंगे।।

स्वर गूंजेंगे,
मै-मेरा, तू-तेरा के।
सुबह-शाम
संबंधों के होंगे फांके।

मुर्दे खुद ही, 
अपना बोझ उठायेंगे।।
किसे खबर थी,
ऐसे दिन भी आएंगे।।

जाति-धर्म के बाड़ों में
रहना होगा।
देख हवा के रुख को ही
बहना होगा।

राम-कृष्ण तक
बाड़ों में बंट जाएंगे।।
किसे खबर थी,
ऐसे दिन भी आएंगे।।

सूरज की किरणें 
गोदामों में होंगी।
सत्य-न्याय की
ध्वजा उठायेंगे ढोंगी।

बलिदानों को
हाट दिखाये  जाएंगे।
किसे खबर थी,
ऐसे  दिन भी आएंगे।।

      3.

पंछी यहां गीत मत गाना।।

तुम हो बियाबान के वासी।
इस बस्ती के लिए प्रवासी।
ठकुरसुहाती को कहने में,
अगर हो गयी चूक जरा सी।

बहुत पड़ेगा फिर पछताना।।
पंछी यहां गीत मत गाना।।

यहां व्यवस्था घुटनों चलती।
खादी है जनता को छलती।
पैसों की खातिर खाकी भी,
कठपुतली की तरह मचलती।

रीति यहां की है बिक जाना।।
पंछी यहां गीत मत गाना।।

जोड़-जुगाड़ अगर कर पाओ।
तो फिर तुम भी मौज उड़ाओ।
इसमें अगर नहीं हो माहिर,
तो प्राणों की खैर मनाओ।

कौन काट दे कब परवाना।।
पंछी यहां गीत मत गाना।।

569क/108/2, स्नेह नगर,
आलमबाग, लखनऊ-226005
मो.9956846197

परिचय - जन्म -01-05-1952, शिक्षा-एम.ए., पीएच.डी. ,  गद्य-पद्य की तेईस पुस्तकें प्रकाशित। दो कृतिया उ.प्र.हिंदी संस्थान और तीन कृतियां अन्य साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत। विगत चार दशकों में शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में पांच सौ से अधिक रचनाएं प्रकाशित। उ.प्र.हिंदी संस्थान  द्वारा साहित्य भूषण सम्मान,         
वर्तमान में छंद बद्ध कविता की त्रैमासिक पत्रिका "चेतना स्रोत"का अवैतनिक संपादन ।

मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित  नवगीत
प्रकाशनार्थ प्रेषित।


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