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शनिवार, 22 नवंबर 2025

चलों मनाते दीवाली


दीप जलाएँ प्रीत निभाएँ, चलो मनाएँ दीवाली।
ले अक्षत रोली कुमकुम,सजाएँ आरती की थाली।।

जगमग-जगमग दीपों से, सदा ही हारा अँधियारा।
माटी के दीयों ने ही तो, सबल किया है जग सारा।।

प्राकृत सदा ही सुलझायी, कृत्रिम सदा उलझाया।
स्वयं दीप जो बने जले, उजास उनसे मिल पाया।।

पंच दिवस का दीपपर्व, पंच देवों तत्वों को भाता।
भाव धरे जो शुद्धता शुचिता,प्रकृति वही लौटाता।।

द्वार-द्वार सजे गेंदे तोरन, कलश सजे धानों बाली।
बिटियाँ सजातीं घर-आँगन, रंगोली रंग निराली।।

देख जिसे हरि हरिप्रिया, पग धर- धर मुस्काएँगी।
सुख, शान्ति, समृद्धि देकर, देवाशीष बरसाएँगी।।

रिद्धि-सिद्धि सँग विनायक,आते हैं निश्चय आयेंगे।
जब हम उनके अगवानी में,खुद को दीप बनायेंगे।।

रोशन साहू 'मोखला'(राजनांदगांव)
7999840942