आज के रचना

उहो,अब की पास कर गया ( कहानी ), तमस और साम्‍प्रदायिकता ( आलेख ),समाज सुधारक गुरु संत घासीदास ( आलेख)

शनिवार, 20 सितंबर 2025

कांग्रेस पार्टी अपने ही फजीहत करा रही है -श्रीवास

 कांग्रेस पार्टी अपने ही फजीहत करा रही है -श्रीवास
राजनांदगांव- जिला भाजपा प्रवक्ता पिछड़ा वर्ग मोर्चा राजनांदगांव चंद्रेश श्रीवास ने कहा कि कांग्रेस पार्टी अपने आप को सबसे पुराना राजनीति पार्टी मानती है और देश में पचास साल राज कर चुकी हैं लेकिन  कांग्रेस पार्टी के नेता कार्यकर्ता द्वारा एक ही परिवार ,गांधी परिवार को सत्ता के राज सिंहासन पर बैठे देखने के चलते गांधी परिवार कुछ भी बोले कुछ भी करे कुछ भी प्रचार प्रसार करें सब कुछ आंख मूंद कर जिन्दा बाद मुर्दा बाद के नारे लगाते रहती हैं  जिससे प्रदेश ही नहीं अपितु देश विदेश के बीच आम जनता में भी कांग्रेस पार्टी अपना फजीहत स्वयं करा रही हैं 
पिछड़ा वर्ग मोर्चा प्रवक्ता श्री श्रीवास ने आगे कहा है कि भारतीय लोकतंत्र में देश के विकास में योगदान सत्ता पक्ष और विपक्ष की भूमिका अति महत्वपूर्ण है लेकिन विपक्ष है कहकर   सभी विषयों, कार्यों,विचारो का  विरोध नहीं करना चाहिए यदि विरोध करना है तो पुरे सबूतों तथ्यो को सामने रखकर कार्य का विरोध किया जाना चाहिए जबकि कांग्रेस नेतृत्व द्वारा आज भी राहुल गांधी सोनिया गांधी गांधी परिवार को अपने पार्टी से उपर भगवान  अल्लाह ईशु मसीह मानकर कार्य कर रहे हैं जिससे कांग्रेस पार्टी देशहित में विपक्ष न हो कर  राष्ट्र विकास विरोधी पार्टी बन गई है 
श्री श्रीवास ने आगे कहा कि क्या कांग्रेस पार्टी देश में एक तरफा पचास साल राज किये है वह वोट चोरी कर राज किया है जो आये दिनों देश के विकास विस्तार की विषय छोड़ कैसे देश में अशांति हो आंताकी उपद्रवी व्यक्ति या संगठन हावी होकर देश में आपदा आफत लाकर आम जनता के ध्यान को भटकाने का कार्य करे  ताकि देश के जनता के बीच तोड़ मरोड़कर बातें करके देश की सत्ता में वापसी कर सके
श्री श्रीवास ने आगे कहा है कि एक समय ऐसा था कि कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार में भारतीय प्रधानमंत्री को अनेकों बार विदेशी ताकतों के समक्ष सर झुकाना पड़ता था लेकिन जब जब भाजपा नेतृत्व वाली सरकार रही है तब तब हमारे भारत माता भारत देश एक सशक्त समृद्ध सामर्थ वान धार्मिक समाजिक समरसता सूरक्षित विकास शील भारत के रूप में विश्व प्रसिद्ध हुआ है  वर्तमान समय में 2014से लगातार आदरणीय श्रद्धेय श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत एक ऐसा देश साबित हो रहा है कि देश के किसी भी व्यक्ति या समाज धर्म के प्रति दुजाभाव नहीं रखा जा रहा है मोदी जी के राज में सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास भाव जागृत कर देश विकास में योगदान दिया जा रहा है

सोमवार, 1 सितंबर 2025

कॉफ़ी कैफ़े

नीलमणि
 
     लगभग बीस साल बाद तीन पुरानी सहेलियाँ— नीलू, रेखा और कविता कॉफ़ी कैफ़े में मिलीं। कॉलेज के दिनों की मस्ती याद करते-करते बात अचानक पतियों पर आ गई। नीलू हँसते हुए बोली, “मैंने अपने पति को शादी से पहले आठ साल तक जाना, सोचा अब सब समझ लिया। लेकिन शादी के बाद पता चला कि मैं तो उन्हें सिर्फ़ 8% ही जानती थी। नए-नए  रंग रोज़ सामने आते रहे।”
     रेखा ने भी ठंडी साँस भरते हुए कहा, “अरे! मेरे तो सिर्फ़ दो साल की जान-पहचान थी। तब  लगा बहुत कुछ जान लिया है, लेकिन शादी के बाद समझ आया, असल में मैं उन्हें मुश्किल से 2% ही समझ पाई थी।”
      दोनों हँसते-हँसते कविता की ओर देखने लगीं। कविता शांति से कॉफ़ी का घूँट भरते हुए बोली, “तुम दोनों भाग्यशाली हो, कम-से-कम प्रेम का स्वाद तो चखा। मैंने तो अब तक वो स्वाद भी नहीं चखा। हाँ, पति की रोज़-रोज़ एक जैसी आदतों का ‘धैर्य-रस’ ज़रूर पी रही हूँ। बाइस साल से एक ही स्वाद— बिना शक्कर की कॉफ़ी जैसा।”
     तीनों ज़ोर से हँस पड़ीं। नीलू ने मज़ाक में कहा, “लगता है हमारी ज़िंदगी की कॉफ़ी में सबसे अलग स्वाद कविता के पास ही है।”

परिचय –   नीलमणि
निवासी - मवाना रोड, मेरठ (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल नंबर -9412708345

बुधवार, 20 अगस्त 2025

लुकलुकी " फोटू छपवाय के ......

रोशन साहू 'मोखला'                        

     रोटी,कपड़ा अउ मकान हा मनखे के मूल जरूरत आय फेर मनखेपन के सुग्घर मान बर स्वास्थ्य,शिक्षा,सुरक्षा घलो मिंझरे हवय। अउ संगे-संग मनोरंजन घलो। अब के समे मा ये मनोरंजन हा हमर जिनगी मा अइसे समागे हावय जइसे रिश्वतखोर मन के सगुरिया रूपी जेब मा खुरचन पानी अइसे समा जाथे कि कतकोन नदिया नरवा मन उलेन्डा पूरा मारत खुसर जथे कि ई.डी,सी.बी.आई,जइसन जांच एजेंसी मन के हाल हा अर्जुन कस हो जाथे जेन हा लड़ई-भिड़ई नइ करँव काहत अपन हथियार डार देय रिहिस। फेर घूसखोरी के लहरा ले घर परिवार लोग लईका बर आनी-बानी के जिनिस आवत रहिथे। जेकर ले घर वाली के मुस्की मुस्कान अइसे जनाथे जइसे माधुरी दीक्षित प्रियंका चोपड़ा हा लोटा भर पानी मढ़ा के सुवागत करत हें।अईसन सुख ल अध्यात्मवादी मन क्षणिक सुख कहिथें। परम सुख तो वो आय जेकर ले इहलोक अउ परलोक दूनों सुधर जाथे। इहि बात के उदिम मा लगथे फोटो खिंचवई के नवा संस्कार जनम धरे होही। छट्ठी-बरही,बर-बिहाव होय चाहे गोष्ठी संगोष्ठी। कोन्हो भी कार्यक्रम मा फोटू खिंचवाके सोशल मीडिया मा डारे ले अलौकिक सुख जनाथे।
     आस्था,संस्कार,सत्संग अउ आने-आने चैनल मा अवइया बड़े-बड़े मुनि महात्मा मन ला ये विषय ला अपन सत्संग मा जरूर जघा देना चाही ? फेर अइसे लगथे वहू मन इही परम सुख ला भोगत फोटू खिंचवऊ फोटू छपवउ संस्कृति सागर मा उबुक-चुबुक होवत हें। फेर आस लगे रहिथे कि कभू फोटू खिंचवउ के विषय म ग्यान अमरित मिल पातिस त हमर जईसन नान्हे मति मन ला पराज्ञान लब्ध होय ले चौरासी लाख योनि के चक्कर ले मुक्ति थोरिक सरल हो पातिस।काबर येकर वोकर रेख ला छोट करे के उदिम मा हरि भजन तो अइसे नंदागे हे जइसे " राजनीति मा परमारथ भाव अउ जन सेवा। कतको परयास करव "ढूंढते रह जाओगे।"
गोसाई तुलसीदास जी लिखिन-
बारि मथें घृत होइ बरु, सिकता ते बरु तेल।
बिनु हरि भजन न भव तरिअ यह सिद्धांत अपेल॥
फेर फोटू खिंचाऊ सोशल मीडिया डारू मनखे मन के एकेच सिद्धांत हावय-
सबो के बीच आय बर, जहू- तहू ल ढकेल।
फोटू देखत मगन हिय,फेसबुक ट्विटर मेल।।
     सामूहिक फोटू खिंचवाय के बेरा अपन ले जादा गुनी अनुभवी मनखे ला धकियावत तिरियावत बीचों-बीच जघा बनाय बर पुरखन ले मिले संस्कार,यम,नियम,संयम ला छर्री-दर्री कर पाना सबो मनखे के वश मा कहाँ हे? ये उदिम ला जियत मनखे कभू नइ कर सकय। खुद कतको फोसवा रहँय फेर खुद ला सबले बड़े 'माननीय' मनई बड़ जबर 'विल पावर' इच्छाशक्ति के पहिचान आय। खुद कतेक पानी मा हावन,खुद जतेक जानबो कोई दूसर मनखे नइ जान सकँय,भीतरौंधी बइठे आत्मा सदा जनवात रहिथे रे बाबू! काबर मटमटावत हस? लाज बीज नइ लागे का रे तोला? बड़े-छोटे के खयाल हवय कि नइहे रे तोला? फेर अईसन भाव पैदा नइ होवन देना,कोन्हो होई गे त ओकर टोंटा ला मसक देना येहा सबो मनखे के वश मा कहाँ होथे? फोटू खिंचवा के अखबार मा छपवाय के लुकलुकी के समानता नवा बहुरिया के शुरुआती प्रयास ले कभू कम नइ हो सकय,जे घेरी-घाँव अपन सास-ससुर के पूछ-परख बर चाय बनाव का मम्मी ? सब्जी अउ लाँव का पापा जी? प्याज निमऊ ठण्डा पानी लागही का पापा जी? समय मा टिफ़िन ले लेबे जी? काहत अपन गोसईया ला काम मा जावत बेरा घेरी-बेरी टाटा बाय-बाय करत रहिथे।''दिल वाले दुल्हनिया ले जायेंगे" फिलिम कस चलत दृश्य ला घर भर के सदस्य मन देख-देख लजावत रहिथें। दाई-ददा मन मने-मन सोंचथे राम जाने! येकर आय ले पहिली हमर बेटा सदा भूख-दुख मरत रिहिस होही का भगवान ? अईसन किसम के मनखे मन हा लोगन के तारीफ पाय बर अतेक पुचपूचावत रहिथे जइसे नारद मुनि हा बेंदरा मुँह धरे विश्व मोहिनी संग बिहाव करे बर आघू-पाछू मटमटावत रिहिन। भविष्य मा कोनो किसम के पुरुस्कार,इनाम,सनमान, चुनाव टिकिट के जुगाड़ बर अपन प्रोफाइल के वजन बढ़ाय बर मनखे पांच रूपिया पाकिट म मिलईया हल्के-फुल्के ले हल्का हो जाथें। राम जाने!
फोटू छपवऊ मनखे मन अउ एक ठन बात ल सोच-सोच के सण्डेवा काड़ी कस दुबरावत सुखावत रहिथंय कि मरे के बाद उँकर मरे के समाचार हा कतेक ट्रेंड करही? ये समस्या के समाधान बर ब्रम्हा जी ला अपन सिरजन के नियम मा अपडेशन जरूर करना चाही। मनखे के मरे के चार-छह घण्टा बाद कम से कम एक घण्टा 'टाइम आउट' के समे मिलना चाही, तेकर ले देख सकँय कि वोकर मरनी के समाचार सोशल मीडिया मा कतेक कोस के यात्रा करिस? उँकर जिनगी के महत्तम के बखान मा कोन काय लिखिन?
     कोन-कोन उन ला श्रद्धाजंलि देइन?दू चार बछर पुण्यतिथि मनाहीं का नइ मनाहीं? उँकर नांव मा चौंक, चौराहा,गली सड़क के नामकरण हो पाही के नहीं? यहू बात के अंदाजा मरघट मा बइठे लोगन के बातचीत ले हो जाही। काबर यहू संसो के कारन अईसन मनखे जियत-जियत मा राहेर काड़ी कस होत रहिथें? ये सब के समाधान इही अतिरिक्त 'टाइम आउट' के बेरा मा हो सकत हावय। मरईया मनखे खुद अपन आँखी ले लोगन के भाव ला देखत अपन आत्मा ला शांत कर सकत हें। मरघट्टी मा जुरियाय सकलाय मनखे मन ला आखरी राम रमुउवा करत अउ अपन जिनगी के बारे में दू शब्द गोठियाय के मौका मिले ले अपन फोटूछपिया आदत के महत्तम माटी देवईया मन ला 'दू टप्पा' मा बतावत, भगवान ले मिले परमानेंट डेथ सर्टिफिकेट देखत, सुख चैन पावत, अपन आँखी ला मूंद सकत हें। वोला मिले 'टाइम आउट' ले एक फायदा जरूर होही कि भटकत आत्मा बर गरुड़ पुरान करवाय साँकर दाहरा,राजिम, प्रयागराज,काशी जवई-अवई के खरचा अऊ समे बाँच जाही।
     फेर जेन मनखे के आत्मा ला जियत-जियत शांति नइ मिल पाय हवय त मरे बाद शांति मिल पाही ?अईसन सोचना दूर के कौड़ी कस जनाथे? जइसे ये बियंग लेख ला छपवाय के लुकलुकी मा मेल करई ...?
रोशन साहू 'मोखला'(राजनांदगांव)
7999840942

नवीन माथुर पंचोली

 


1
लाख  आँसू  हमारे  ढ़लते हैं।
लोग पत्थर कहाँ  पिघलते हैं।

जान  पायेंगे  हम  उन्हें  कैसे,
शक़्ल पे शक़्ल जो बदलते हैं।

शूल महफ़ूज रहते शाखों पर,
फूल  पेरों  तले  कुचलते  हैं।

ये ज़माना है अज़नबी  उनसे,
जो घड़ी भर कहीं निकलते हैं।

बात  हो आपकी असर कैसे,
आप कहते जिसे फिसलते हैं।
2
अगर  मेरी कही  वो मान लेगा।
सभी मर्ज़ी  मेरी  पहचान लेगा।

लगाकर और इक इल्ज़ाम मुझपर,
कहाँ  मुझसे  मेरा  ईमान लेगा।

चुकाएगा  सभी   बदले   पुराने, 
सज़ा देगा  कि  मेरी  जान लेगा।

कभी  रहता नही अपनी रज़ा पर,
कहाँ  तक और का फ़रमान लेगा।

चला  है  कारवाँ  जिस रास्ते  पर,
नज़र  उस ओर अपनी तान लेगा।

ज़रूरत या वज़ह के काम सब वो,
करेगा  तब  उसे  जब  ठान लेगा।
3
ख़ुशी  देखी  नहीं जाती।
हँसी   रोकी  नहीं जाती।

लबों की चुप्पियाँ मुश्क़िल,
जुबाँ भी  सी  नहीं जाती।

रिवाज़ों,  क़ायदों  से   डर,
वफ़ा   तोड़ी  नहीं  जाती।

सभी कुछ पा लिया लेक़िन,
कमी अपनी  नहीं जाती।

ज़ुदा   है मामला  दिल का,
लगी इसकी की नहीं जाती।
4
तीर लगते नहीं निशाने तक।
पाँव उठते नहीं ठिकाने तक।

अश्क़ पलकों में आ ठहरते हैं,
वो छलकते नहीं रुलाने तक।

डूबते  तो  सभी ने  देखा था,
कोई आया  नहीं बचाने तक।

ताश के घर-महल  बनाते  हो,
ये संभलते नहीं  जमाने तक।।  

हाल  है  इन तमाम रिश्तों का,
साथ चलते नहीं  निभाने तक।

आग अंदर है अलग बाहर से,
ये  सुलगती नहीं बुझाने तक ।
5
अश्क़  सारे  बहा लिए जाएँ।
राज़ दिल के जता लिए जाएँ।

आज़  ग़फ़लत  नहीं रहे कोई,
दर्द सब आज़मा  लिए  जाएँ।

काम  आसान हो सभी अपनें,
हाथ  सबसे  बँटा  लिए जाएँ।

उन रिवाज़ों से इन रिवाज़ों के,
बीच  रस्ते  बना  लिए  जाएँ।

मेज़बानी  के  हाल -मौके  पर,
सब बिखेरे  जमा  लिए जाएँ।

दूसरों  से  ज़रा  सबक लेकर,
हाथ  अपने  बचा  लिए जाएँ।
           अमझेरा धार मप्र
पिन 454441 मो 9893119724


अन्तर्वेदना

प्रिया देवांगन "प्रियू"
 
 "मुझे अपनी शरण में ले लो राम...... ले लो राम"
 "मुझे अपनी शरण में ले लो राम................!!"
रानो तुम ये उदासी भरा भजन क्यों गा रही हो और ये क्या तुम्हारी आँखें सरोवर की तरह डबडबा गई हैं? प्यारे ने अपनी पत्नी रानो के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा।
प्यारे! अब जीवन अंतिम पड़ाव पर है, भगवान भजन ही हमें मोक्ष की ओर ले कर जाएगा। रानो प्यारे के हाथ पर हाथ रखती हुई बोली। 
                         धत् पगली! हमने कौन सा पाप किया। पाप ही तो.....रानो आगे कुछ बोलती उससे पहले ही प्यारे ने उनको चुप करा दिया।
अच्छा सुनो रानो! हाँ प्यारे कहो; पता है न इस बार हमारी वैवाहिक वर्षगांठ के दिन कौन आने वाला है।
अरे हाँ.....! मैं कैसे भूल सकती हूँ। रानो मुस्काती हुई बोली। क्या रानो तुम भी न! 
                  प्यारे!..... न जाने क्यों मेरा हृदय उनसे मिलने को इतना आतुर है, और दूसरी तरफ कोने में छिपा भय बार–बार संकेत कर रहा है, लेकिन क्या? 
मुझे समझ नहीं आ रहा है। तभी! रानो और प्यारे की बातें उनके खास मित्र लखन लाल जी ने सुन लिया और बोले– "क्या बहन जी; आपको हमने कितनी बार समझाया कि ज्यादा मत सोचिए आप लोगों को बहुत अच्छा तोहफा मिलने वाला है; खास मैनेजर साहब ने इंतजाम किया है। भई....मैनेजर साहब से हम बहुत बार मिल चुके हैं अब आप लोगों की बारी है।"
                    थोड़ी देर बाद...... दूर खड़ी प्यारे और रानो की केयर टेकर आई  और बोली- "सुनो....सुनो....सुनो! सभी एक जगह इकट्ठा हो जाइए। आप लोगों को जिस पल का इंतज़ार था वह ख़त्म हुआ।" सभी के चेहरों पर मुस्कान की लालिमा दस्तक देने लगी।
         
             चलो....चलो रानो जल्दी चलो; वे आ गए हैं। दोनों एक–दूसरे का हाथ पकड़ कर तेज चलने लगे। प्यारे की खुशी का ठिकाना ही नहीं था मानो कोई अपना आया हो। हाँ प्यारे अब चलो भी!
ओह! इतनी अच्छी सजावट मैंने आज तक नहीं देखी। रानो अपने दोनों गालों पर हाथ रखती हुई हैरानी से बोली। सच....आखिर मैनेजर साहब कौन और कहाँ हैं? चलिए न प्यारे...! सबसे पहले उनको आशीर्वाद देकर धन्यवाद करते हैं। 
                    अरे! शायद वे रहे मैनेजर साहब। पीछे मुँह करके खड़े हैं, जैसे ही  प्यारे ने उनके कंधे पर हाथ रखा मैनेजर साहब उनकी तरफ मुड़े। 
   
             ये क्या!... प्यारे ये तो तुम्हारा भतीजा है। जो विदेश में रहता है।  हाँ रानो! कुछ सेकेंड तक तीनों एक–दूसरे की तरफ टकटकी लगाए देखते रहे। प्यारे की लड़खड़ाती जुबान बोली– "आपने तो हमें सरप्राइज़ ही कर दिया।" मैनेजर साहब! सही कह रहे थे लोग; धन्य हैं तुम्हारे माता–पिता धन्य हैं; जो तुम्हें जन्म दिए हैं। बोलती हुई रानो मैनेजर साहब के दोनों हाथों को पकड़ कर रोने लगी। देर से ही सही तुम्हें अक्ल तो आई।

            जो बेटा अपने माँ–बाप के जीते जी सेवा न कर सका। आज उनके गुजर जाने के बाद इतने बड़े वृद्धाश्रम में दूसरों के माँ–बाप को संभालने और खुश रखने की जिम्मेदारी उठा रहा है। ये पश्चाताप का अच्छा अवसर ढूँढ रखा है बेटा। प्यारे ऊँची आवाज में बोले। अपनी नाराज़गी जताते हुए प्यारे, रानो का हाथ पकड़ उल्टे पाँव कमरे की तरफ लौट गए। वृद्धाश्रम में खड़े बुजु़र्गों की आँखें भर आईं। दूसरी तरफ मैनेजर साहब सर झुकाए फफक कर रो पड़े। रानो और प्यारे को उनकी इकसठवीं वर्षगांठ के तोहफ़े ने हृदय की गहराई तक झकझोर दिया।
 



राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़


शनिवार, 8 मार्च 2025

"कल्याण पथ प्रदर्शक : तीर्थंकर महावीर" एक अनुपम कृति

                    सुभाष सेठिया,

कृति- कल्याण पथ प्रदर्शक : तीर्थंकर महावीर
लेखक- अभिनन्दन गोइल
समीक्षक- सुभाष सेठिया
     शतरंग प्रकाशन, लखनऊ से प्रकाशित वरिष्ठ साहित्यिकार श्री अभिनंदन गोइल जी की पुस्तक "कल्याण पथ प्रदर्शक : तीर्थंकर महावीर" एक अनुपम कृति है।
     वर्तमान समय में भाव विशुद्धि जैसे पुरुषार्थ सिद्ध कार्य पर लेखक ने गहनता से प्रकाश डाला है। भगवान महावीर के जन्म से निर्वाण तक के जीवन को आचार्य के संदर्भों और वैज्ञानिक विश्लेषण के साथ प्रस्तुत करना, निःसंदेह कृतिकार की विद्वत्ता और गहन शोध को दर्शाता है।
   इस पुस्तक में श्री रामधारी सिंह दिनकर, आचार्य श्री विद्यानंद जी, श्री धर्मानंद कौशम्बी जी, डॉ. एस. एम.पहाड़िया जी, मुनि श्री प्रमाण सागर जी, आचार्यश्री महाप्रज्ञ जैसे श्रेष्ठ जनों के संदर्भों का समावेश, इसकी प्रामाणिकता और विश्वसनीयता को और भी बढ़ा देता है
   जिनागम के सिद्धांतों, धर्म के दस लक्षणों, छह द्रव्यों के वैज्ञानिक विश्लेषण, सात तत्वों के विवेचन, आठ कर्मों के क्षय, रत्नत्रय (निश्चय और व्यवहार सहित) और मोक्ष मार्ग का विस्तृत वर्णन अत्यंत सराहनीय है। पुस्तक में विशेष रूप से, अनेकांत के सिद्धांत को जिस प्रकार जैन धर्म से जोड़कर प्रस्तुत किया है, वह वास्तव में अद्वितीय है। कर्म निर्जरा के लिए ध्यान की श्रेष्ठता पर बल, आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर होने वाले जीवों के लिए अत्यंत प्रेरणादायक है।
   यह आशा ही नहीं, अपितु पूर्ण विश्वास है कि यह मंगलकारी कृति अनेक भव्य जीवों को संयम और सम्यकत्व की ओर अग्रसर करने में सहायक सिद्ध होगी। इस लेखन से निश्चित रूप से समाज में नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों का संवर्धन होगा। इस अद्भुत साहित्यिक प्रयास के लिए लेखक और प्रकाशक को हार्दिक बधाई।

सुभाष सेठिया,
संपादक बघेरवाल दर्पण
61 गुमास्ता नगर, इंदौर



सोमवार, 3 मार्च 2025

साय सरकार का बजट निराशाजनक- विभा साहू


साय सरकार का बजट निराशाजनक- विभा साहू

साय सरकार का बजट निराशाजनक- विभा साहू

राजनांदगांव। कांग्रेस नेत्री एवं जिला पंचायत सदस्य श्रीमती विभा साहू ने छत्तीसगढ़ सरकार के आम बजट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे निराशाजनक बजट बताया है।

उन्होंने कहा कि मोदी की गारंटी का हवाला देकर महिलाओं को 500 रूपए में गैस सिलेंडर देने की योजना हेतु कोई प्रावधान नहीं किया गया है। रानी दुर्गावती योजना के अंतर्गत बीपीएल परिवार में बालिका के जन्म पर डेढ़ लाख रुपए का आश्वासन प्रमाण पत्र का प्रावधान बजट से गायब है। दीनदयाल उपाध्याय कृषि मजदूर कल्याण योजना सहित छात्रों को कॉलेज आनेजाने के लिए डीबीटी के माध्यम से मासिक ट्रैवल एलाउंस की भी प्रावधान इस बजट में नहीं है। शक्तिपीठ योजना का जिक्र इस बजट से गायब है। सरकार तुम्हर द्वार अंतर्गत डेढ़ लाख बेरोजगार युवकों को रोजगार देने की बात करने वाली भाजपा सरकार ने इस बजट में यह प्रावधान भी नहीं रखाी है। प्रत्येक ग्राम पंचायत में मुक्तिधाम एवं दशगात्र घाट निर्माण करने की मोदी की गारंटी में बात कही गई थी, उसका भी प्रावधान इस बजट में नहीं है। गरीब श्रेणी के छात्र इंजीनियरिंग, चिकित्सा, कानून व सीए, प्रोफेशनल शिक्षा के लिए 50 प्रतिशत छात्रवृत्ति का भी बजट प्रावधान नहीं किया गया है

श्रीमती साहू ने कहा है कि साय सरकार के वित्तमंत्री ओपी चौधरी द्वारा दूसरी बार प्रस्तुत बजट बेहद निराशाजनक है। इस बजट में किसानों और बेरोजगारों के लिए कोई योजना नहीं है और न ही महंगाई कम करने के लिए कोई कार्य योजना है। उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि शिक्षा और स्वास्थ्य पर फोकस कर इसे और सरल बनाया जाए। भूपेश सरकार के दौरान शराबबंदी की मांग को लेकर हो-हल्ला करने वाली भाजपा सरकार शराब के दाम में कटौती कर प्रदेश में शराबखोरी को बढ़ावा देने पर तुली है

SKTIWARI

सरपंच के झटका

 एक दिन के गोठ आय कका ह घर म बैठे-बैठे लाल चाहा पियत रहय,उहि बेरा म वोकर छोटे भतीजा ह आके कहीथे कका मेहा ये बच्छर चुनाव लड़े के बारे म सोचत हों अऊ तोर आशीर्वाद लेय के खातिर आए हों,अतका गोठ ल सुनके कका ह बात काटत बोलिस,अरे बेटा तेहा चुनाव उनाव के चक्कर म काबर पड़त हस,कलेचुप कमा अऊ खा|भतीजा ह कथे कका ये बच्छर सहिच म चुनाव लड़हूं चाहे जो भी हो जाय|
          भतीजा के नशा ल देख के कका ह कहीथे कस रे दस बीस लाख रुपया  रखे हस? जेन चुनाव लड़े के हिम्मत करत हस, कहाँ ले वोतका पैसा पाबे बेटा? भतीजा कहीथे कका काँहचो के उधार बाढ़ी करहूं,या नहीं ते मोर हिस्सा के एक दु एकड़ खेत ल बेचहूँ,फेर सरपंच के चुनाव जरूर लड़हूँ|
           लइका के जोश ल देख सुन के कका ह कहीथे अरे बेटा खेत खार ल बेच के या करजा करके चुनाव लड़े के अक्कल ते कहाँ ले पाएस? देख बेटा बड़े-बड़े राजा ह फकीर होगे रे ये बुता म जी,त तोला कोन पुछही? अऊ अतेक करजा करके चुनाव जीत डरबे त का कर डरबे? अऊ फेर करजा ल कईसे छुटबे? अऊ सबले बड़े गोठ ये हरे कि तेहा अंचइत पंचइत के बुता कईसे करके करबे? 
       भतीजा ह कका के गोठ ल सुन के हाँसत-2 कहीथे,तेहा नइ जानस कका आजकल के सरपंची ल, आज कोनो ह नेता पर हितवा करे बर नी बने गो, सब अपन के देखईया हे | महू ह एक दांव सरपंच बन जहूं न त जम्मो करजा ह ऐसने छुटा जाहि|
         बबा कथे कि, के रूपया तनखा हावय रे सरपंच के? जेन तेहा महल बना डरबे,भतीजा कथे ये कका,तै निचट भोला हस गो,अजी एक दांव सरपंच बनना याने कि कोनो कुबेर के लाॅटरी लगे के बरोबर होथे,कका कहीथे का लाॅटरी रे,, भतीजा कहे,झटका कका झटका, तै नी जानस गो,नदिया के रेती म झटका,दारू अऊ खदान के ठेका म झटका,नाली नरवा के पाछु म झटका,करोड़ो के  विकास कार्य के बजट म लाखों के सरकारी झटका,रोजगार गारंटी म झटका,गाँव के तरिया नरवा के मछरी अऊ रुख राई म झटका,का बताबे बबा भाषण से राशन,अऊ आवास से ले के आखिरी सांस म झटका, अब का बतांव कका,गरीबी रेखा अऊ कोला बारी तक म झटका हावय गो,, तभे तो ते नि जानस का आज जेन देखबे तेन मटमटाय हावय चुनाव लड़े खातिर|तभे तो जेकर औकात नी राहे वहू मनखे ह पाँच बच्छर म बड़े बड़े मोटर कार अऊ बंगला बना डरथे जी|वोकर संगे -संग गांव म दिखावटी शान अलग मिलथे|
                अतेक जबर झटका ल का सुनिस कका के अंतस ल जोर के झटका लागिस,कका कथे बेटा ये तो पाप हरे न अपन गाँव घर अऊ धरती दाई के संग म गद्दारी करना ह, कहाँ  के धरम आय,बेटा वो पंच परमेश्वर के गोठ कहाँ गे, जिन्हा मनखे के ईमान ल सबले बड़े धरम माने जाय,कका ह समझाय बेटा मेहनत के कमई ह सबले बड़ा पुण्य होथे रे,चल कुदारी ल धर अऊ धरती दाई के सेवा कर, बड़ पुण्य मिलही रे???
                कुछ सोचत कका ह कहीथे,अरे हाँ कोनो चुनाव हार गेस त का होहि रे? ,भतीजा ह जानू मानु  मजाक करत कहीथे  अऊ का होहि,कका 
" फोकट के चाउर मिले,फोकट म नून,
में गावत हो ददरिया तै कान दे के सुन|
राशन कार्ड म चाऊर मिलही,
श्रम कार्ड म मिलही बुता|
मुड़ कान पिराय त,पी खा के सुता||
तबियत खराब होहि त,
आयुष्मान ह माढ़े हे,
करजा दे बर,बैंक के लोन ह ठाढ़े हे||
     अइसन दिल्लगी करत मैं जावत हों बबा पर्चा भरे बर कहिके  हाँसत-2 भाग गिस,,,, बबा मुड़ धर के सोच म पड़गे,,, का सच म आज चुनाव सिरिफ झटका के खातिर होथे---
श्रवण कुमार साहू, "प्रखर"
राजिम गरियाबंद,( छ. ग.)

छत्तीसगढ़ी गजल

कभू एती  चले लगथे  कभू ओती  चले लगथे।
हवा गँदला सियासत के सबो कोती चले लगथे।
लहर जेकर चलत हे वो उड़ाके चल गइन दिल्ली।
गिरे हे  पाँव  मा  ते मन  उँकर  होती चले लगथे।
जिही डारा ल काटत हे उही मा झूल जा कहिथें।
चले  आरी  हुकूमत  के सबो  रोती  चले लगथे।
चुनावी धुंध ले आँखी करू चिपहा करइया मन।
धथूरा  बीज  नफरत के  इहाँ  बोती चले  लगथे।
धरिन हे जेन  अँगरी अब नरी मा हाथ हे "रौना"।
चपकहीं घेँच कोनो दिन बदन खोती चले लगथे।
राजकुमार चौधरी "रौना"
टेड़ेसरा राजनांदगांव।

मैंने एक गरीब देखा

मैंने एक गरीब देखा, 
जो गरीबी रेखा की, 
राशन कॉर्ड से राशन ले, 
जिंदगी जीता है किंतु, 
दस लाख का चुनाव, 
बड़े ही शान से लड़ता है|
फिर भी गरीबी रेखा का, 
मुफ्त आवास का लाभ, 
बड़े ही निर्लज्जता से लेता है--
मैंने एक गरीब देखा---
जो मॉल में पाँच रुपये, 
का समोसा पचास में, 
बड़े शान से खरीदता है, 
ये जताने के लिए की, 
वो कैसी हैसियत वाले हैं|
लेकिन दो रुपये की, 
भाजी के लिए बाजार में, 
एक दिहाड़ी मजदूर से, 
भारी मोल भाव करता है---
मैंने एक गरीब देखा---
जो कर्मकांड पूर्वक, 
एक पत्थर की पूजा, 
करके छप्पन भोग, 
ऐसा लगाता है जैसा
वही सबसे बड़ा भक्त है|
लेकिन अपने ही घर में  , 
बूढ़े माँ बाप को भोजन, 
कुछ इस प्रकार से देता है
जैसा माँ-बाप कोई नौकर हो--
मैंने एक गरीब देखा--
जो घर में आए भिखारी को, 
मुट्ठी भर चावल देने के बजाय, 
उसे ऐसे दुत्कारता है जैसे, 
कोई कोरोना की बीमारी हो, 
और दान करता है उस ट्रस्ट को, 
जो देश का आयकर खा जाता है--
मैंने एक गरीब देखा---
जो मंदिर के बाहर, 
प्लेटफॉर्म के इर्द-गिर्द, 
दिन रात भूखा प्यासा रहकर, 
पापी पेट के लिए दामन फैला, 
भीख मांगता है ताकि, 
जरूरत मंदों के लिए भंडारा, 
करा सके इस गरज से, 
ताकि कोई तो अमीरजादा, 
कभी इस जगह आकर देख सके, 
कि गरीब और गरीबी रेखा, 
की जरूरत किसे होती है----
सोचता हूँ क्या मेरा देश, 
अब भी  इतना गरीब है, 
कि गरीबी रेखा का कार्ड, 
बनवाना बहुत जरूरी है? 
 यदि,हाँ तो किसके लिए? 
मॉल वाले उस अति गरीब
भाई साहब के लिए या, 
भीख मांग कर भंडारा, 
कराने वाले उस अकिन्चन के लिए, 
फैसला आप कीजियेगा-----
रचनाकार:-श्रवण कुमार साहू, "प्रखर"
शिक्षक/साहित्यकार, राजिम गरियाबंद (छ.ग.)

कुकुर सहराय अपन पुछी

कुछ लोगन होथे जिद्दी मुफट
ककरो कहे बरजे नी मानय
कोनो ल अपन नी जानय
घातेच देखा ले अपनापन
कतको परछो दे गन-गन
फेर अपन आदत नी छोड़य
ककरो तिर हाथ-पाँ नी जोड़य
खुद ला मानथे निचट ऊपर
बाखा निकले हे,चाहे कूबर
अपन खामी नी देखय
बोल-बानी मा अब्बड़ सरेखय
जेला नही तेला परेड़य
नाम ले-लेके गिनय
जेकर नही तेकर ला छिनय
सकलाय नदिया कमतर पानी
पुरा आवय छीन भर जुवानी
तेसने बुद्धु लोगन होथे
दुसरा पर परिया दोस थोपे
जइसे कुकुर सहराय अपन पुछी
घात लगाइ अउ अहिंसक सुझी
एसना कभु नी होवय,
जेन पतियाही तेन रोवय।।
चन्द्रकांत खुंटे 'क्रांति'
जांजगीर-चाम्पा (छत्तीसगढ़)

गुरुवार, 2 जनवरी 2025

रिश्तेदारी



‘पंखा तको अबड़ दिन होगे, पोंछावत नइहे।’ सोनिया चाऊँरधोवा गंजी म नल ले पानी झोंकत कहिस। सुनिस धुन नहीं ते योगेश अपन सुर म गाड़ी धोते रिहिस। 
‘डेना मन म भारी गरदा माड़ गेहे, पोंछ देते। बने ढंग के हवा आबेच नइ करय ...ऊपराहा म ये गर्मी लाहो लेवत हे।’
‘अरे ! पहिली एक ठिन बूता ल सिरजावन दे, ताहेन उहू ल कर देहूँ। तोर तो बस... एक सिध नइ परे राहय दूसर तियार रहिथे। मशीन नोहवँ भई मनखे औं। दू ले चार हाथ थोरे कर डारवँ।’
‘बतावत भर हौं जी, तोला अभीच करदे नइ काहत हौं।’ योगेश के भोगावत मइन्ता म झाड़ू पोंछा करत सोनिया सफई मारिस।
‘एकात ठिन अउ बूता होही, तेनो ल सुरता करके राखे रही। आज इतवार ये न, छुट्टी के दिन ल कइसे काटहूँ।’ - कंझावत कहिस अउ गुने लगिस योगेश - ’उल्टा के उल्टा छुट्टी के दिन अउ जादा बूता रहिथे बूजा हँ।‘
‘तोला तो कुछु कहना भी बेकार हे’ -सोनिया तरमरागे, चनचनाए लगिस अब - ‘दू मिनट नइ लगय, अतेक बेर ले घोरत हस घोरनहा मन बरोबर। एक घंटा ले जादा होगे, कोन जनि अउ कतेक नवा कर डरबे ते।’
’अरे ! तैं नइ समझस पगली ! मनखे बने बने पहिरे ओढ़े भर ले बने नइ होवय। लोगन सब ल देखथे। चेहरा बने हे त कपड़ा-लत्ता बने पहिरे हे कि नहीं। बने बने कपड़ा-लत्ता पहिरे त, गाड़ी बने साफ सुग्घर हे कि नहीं। गाड़ी साफ सुग्घर हे, त मुड़ कान म बने तेल-फूल लगे हे कि नहीं। तेल-फूल लगे हे, त कंघी-उँघी कोराए हे कि नहीं..... वोकर लमई ल सुनके सोनिया मुँह ल फारके गुने लगिस- ‘का होगे ये बैसुरहा ल आज।’
योगेश रेल के डब्बा कस लमाते रिहिस - ‘सुघराई सबो डाहर ले देखे जाथे। चिक्कन चिक्कन खाए अउ गोठियाए भर ले सुघरई नइ होवय। चिक्कन चिक्कन रेहे, खाए अउ गोठियाए भर ल दिखत के श्याम सुन्दर उड़ाए म ढमक्का कहिथे’ - अइसे काहत जोर से खलखलाके हाँस तको भरिस।
‘बात म तो ...... तोर ले कोनो नइ जीते सकय। गोठियाबे ते गदहा ल जर आ जही।’ सोनिया के मुँह थोरिक फूलगे।
मनाए के मुड म योगेश कहिस - ’कोन जनि हमरेच घर म अतेक कहाँ ले गरदा आथे, चीन्हे जाने अस।’ सोनिया ओकर गोठ ल सुनके कलेचुप रंधनीखोली कोति रेंग दिस।
योगेश जब गाड़ी धोथे त एक-डेढ़ घंटा लगि जथे। तरी-ऊपर, इतरी-भीतरी फरिया-अंगरी डार-डारके धोथे। सबले पहिली सादा पानी मारके धुर्रा-माटी ल भिंजोथे। फेर वोला शैम्पू पानी लगे फरिया म रगड़थे। तेकर पीछु साफ पानी म फेर कपड़ा मारके धोथे। तभे तो देखइया मन कहिथे -‘भारी जतन के रखे हस गा अपन गाड़ी ल ?’ 
कोनो कहिथे - ’अतेक दिन ले बऊरे तभो अभीन ले नवा के नवच हे जी।‘ 
अइसन सब सुनके योगेश ल गरब नइ होवय भलकुन कहइया मन ल वो खुदे कहिथे- ’गाड़ी हमर हाथ गोड़ होथे, एकर देखभाल बने करबोन त ये हली-भली हमर संग देही। इहीच ल बने नइ रखबोन त कतेक संग देही।’ बने तको ल कहिथे।
‘फरी पानी मारके बस तीरियावत रिहिसे। ओतके बेरा दुवार कोति ले सिटकिनी के आरो आइस। योगेश देखथे - बनवारी अउ सुनीता दुवार म खड़े हे। 
बनवारी भीतर आवत हाँसत पूछिस -’अंदर आ सकथन नहीं वकील साहब।‘ 
’अरे ! आवव आवव‘ - योगेश आत्मीयता के पानी ओरछत कहिस - ‘अपने घर म तको पूछे बर लगथे ?’
बनवारी अउ सुनीता पहिली पइत योगेश घर आवत हे। योगेश जब गाँव म राहत रिहिसे त उहाँ इन्कर आना जाना होते रिहिसे। बनवारी के आए ले योगेश के मन म आसरा के बिरवा फूटगे -‘कहूँ इन केस के पइसा चुकाए बर तो नइ आवत हे।’ 
बनवारी के दसों ठिन केस चार सौ बीसी के। जेन बेरोजगार ओकर नजर म आइस उही ल चिमोटके पकड़िस। 
‘मंत्रालय म मोर अबड़ जोरदरहा पकड़ हावय।’ 
‘तोला नौकरी लगा देहूँ।’ 
‘तैं तो घर के आदमी अस, तोर ले का पइसा लेहूँ। हाँ, साहब सुधा मन ल खवाए-पियाए बर परथे। जादा नहीं एक लाख दे देबे।’
आखरी म सब चुकुम, बिन डकारे सब्बो हजम। कतको झिन जिद्दी मनखे मन धरके कूट तको दीन। सबो केस ल योगेश ह निपटाइस। सबो म बाइज्जत बरी। तबले बनवारी योगेश तीरन आए जाए लगे हे। एक दू पइत फोन म तगादा करिस योगेश ह त कहि दे रिहिसे-‘तैं पइसा के टेंशन झन ले, मिंजई होवइया हे, बस पइसा हाथ आइस अउ मैं लेके आतेच हौं।’
एक पइत कहि दे रिहिस -‘चना मिंजा कूटागे हे भइया, दू चार दिन म बेंचके तोर जम्मो फीस ल चुकता कर देथौं।’
योगेश अब वकीली के पइसा म शहरे म घर बना डारे हावय। तीज-तिहार म गाँव आना जाना होथे। सुनीता -बनवारी वोकर दीदी भाँटो हरे। तीर के न, दुरिहा के। अतेक तीर तको नहीं जिन्कर बर कुकरी-बोकरा के पार्टी मनावय अउ अतेक दुरिहा तको नहीं जिन ल भाजी-भात तको नइ खवाए जा सकय।
फेर मया, जुराव अउ लगाव हँ रिश्ता नता के बीच के दूरी ल नइ नापय। अपन अउ बिरान ल नइ चिन्हय।
‘अइ ... घर कोति ले आवत हौ कि कोनो डाहर ले घूमत-फिरत आवत हौ’ - सोनिया पानी देके पैलगी करत पूछिस। 
’घरे ले आवत हावन भाभी‘-सुनीता जवाब दिस। ननद भौजाई घर म निंग गे। योगेश अउ बनवारी अपन गोठियाए लगिन। उन्कर नहावत, जेवन करत ले मंझनिया अइसेनेहे निकल गे। संझा सारा-भाटो बाजार जाए बर निकल गे। 
घरे तीरन नानकुल हटरी लगथे। योगेश उही मेरन घर के जम्मो जरूरत के समान बिसा लेथे। साग-भाजी, किराना, कपड़ा-लत्ता तको। घूमे फिरे के मन करथे, तभे बाहिर जाथे। नइते इही मेरन दूनों प्राणी संघरा घूम लेथे। तीर तखार म उन्कर बने मान सम्मान तको हवय। सब कोनो वकील-वकीलीन कहिथे।
किराना के दूकान म डायरी चलथे। साग भाजी ल हाल बिसा लेथे। सबो झिन चिन्हथे जानथे तेकर सेति चिल्हर नइ रेहे या कुछू कमी बेसी म साग भाजी तको उधार दे देथे। योगेश घलो काकरो हरे खंगे म संग निभा देथे। अपन अउ बिरान के लगाव-दुराव व्यवहार ले बनथे, रिश्ता -नता के जुराव भर ले नइ होवय।
’पाला भाजी का भाव लगाए हस पटैलीन ?’ -योगेश पूछिस।
’चालीस रूपिया ताय ले ले ... के किलो देववँ ?’ पटैलीन एक हाथ म तराजू बाट ल सोझिवत अउ दूसर हाथ म भाजी के जुरी ल उठावत कहिस। 
’आधा किलो दे दे।’ 
’भाजी मन बने ताजा हावय।’ - बनवारी मुचमुचावत कहिस।
’हौ ..... मैं सरीदिन ताजा लानथौं .... पूछ ले वकील साहब ल ..... न वकील साहब’ - पटैलीन भाजी तऊलत योगेश ल हुँकारू बर संग जोरिस। 
’इन्कर बहुत बड़े बारी हावय। आठो काल बारा महीना इमन इही बूते करथे।‘ योगेश, बनवारी ल बताए लगिस।
बाजू म बइठे बिसौहा कहिस - ’खीरा नइ लेवस वकील साहब !’
’पहिली फर आय तइसे लगथे, बने केंवची-केंवची दीखत हे‘ - बनवारी कहिस।
योगेश के मन तो नइ रिहिसे। बनवारी ल खीरा के बड़ई करत देख माँगी लिस -’ले आधा किलो दे दे।‘
’एक दे देथौं न .....‘ बनवारी के बड़ई ले बिसौहा के आसरा बाढ़गे रिहिस। योगेश इन्कार नइ करे सकिस -’कइसे किलो  लगाए हस ?‘
’तोर बर तीस रूपिया हे, दूसर बर चालिस रूपिया लगाथौं‘.........बिसौहा खुश होवत कहिस - तैं तो जानते हस ... तोर बर कमतीच लगाथौं।’ अउ हें हें हें करत हाँसे लगिस।
एकात दू ठिन अउ साग भाजी लेके दूनों घर लहुट गे। सुनीता नान्हे लइका ल सेंक-चुपरके वोकर हाथ गोड़ ल मालिस करत रहय। वकील घर ठऊँका नान्हे लइका आए हवय। वोकरे अगोरा अउ सुवागत के तियारी के चलते गजब दिन होगे रिहिस सोनिया मइके नइ गे पाए रिहिसे। एक तो एकसरूवा मनखे उपराहा म नान्हे लइका के देखभाल, उहू फीफियागे रिहिसे। मन होवत रिहिसे दू चार दिन बर मइके जाए के। उन्कर आए ले वोकर बनौती बनगे। 
‘दीदी मन आए हे त इन्कर राहत ले मइके होके आ जातेवँ कहिथौं।’ - रतिहा बियारी करे के पीछु सोनिया पूछिस। 
’सगा-सोदर के सेवा सत्कार ल छोड़के, इन्करे मुड़ म घर के बोझा ल डारके मइके जवई नइ फभय भई।‘ -योगेश कहिस।
‘जावन दे न भैया, मैं तो हाववँ। कतेक मार बूता हे इहाँ, घर के देखरेख ल मैं कर डारहूँ।’
’हौ...बने तो काहत हे, सुनीता सबो ल कर डारही, नइ लगय।‘ बनवारी सुनीता ल पंदौली दीस।
बिहान भर सोनिया मइके गै। रहिगे तीन परानी - वकील, बनवारी अउ सुनीता। योगेश आन दफे कछेरी ले आवय त हटरी जाए के, कभू राशन के, त कभू अहू काँही लगेच राहय। सोनिया के जाए ले उल्टा दिन हली भली कटे लगिस। होवत बिहनिया नाश्ता पानी तियार करके सुनीता घर के जम्मो बूता ल सिरजा डारय। योगेश के कपड़ा लत्ता ल तको धो डारय। वोकर कछेरी के आवत ले बनवारी नवा-नवा, ताजा-ताजा साग भाजी लान डारय। जेवन बेरा म तियार मिल जाय गरमागरम। सुनीता रहय त कभू बाँचे भात के अंगाकर बना देवय, त कोनो दिन ओकरे फरा बना देवय।
योगेश कहय -‘तैं काबर तकलीफ करथस, मैं आतेवँ त साग भाजी ल ले लानतेवँ।’ 
’का होही जी, आखिर हमीच मन ल तो खाना हे।’ बनवारी टोंक देवय।
’एकेच तो आवय भैया ! तैं लानस कि इही लानय।’ सुनीता के गोठ सुनके योगेश के मुँह बँधा जाय। 
हफ्ता भर कइसे कटिस पतेच नइ चलिस। शनिच्चर के दिन रतिहा सोनिया के फोन आगे -‘कालि लेहे बर आबे का ?’
‘नइ अवावय, सगा सोदर ल छोड़के मैं कइसे आहूँ तँही बता ? तोर भाई एक कनक छोड़ देही .... त नइ  बनही।’
सुनीता कहिस -’चल देबे न भइया, हमूमन कालि घर जाबोन, अइसे तइसे पन्द्रही निकलगे, हमरो घर म काम बूता परे हावय।‘
‘तैं ओति चल देबे हमन गाँव कोति निकल जबो।’ बनवारी एक सीढ़ी अउ चढ़ गिस।
बिहान भर संझा योगेश सोनिया ल लेके लहुट आइस। चहा पानी पीके झोला धरके हटरी निकल गै। 
‘अबड़ दिन बाद आवत हस वकील साहब, का देवौं बता ?’ पसरा लमाए बिसौहा कहिस।
‘ससुरार चल दे रेहेंव, उहाँ अबड़ अकन साग-भाजी जोर दे हावय, पताल, मिर्चा अउ धनिया भर दे।’
ओतके ल झोला म झोंका के पूछिस -’के पइसा ?‘ 
’अढ़ई सौ।‘
’अढ़ई सौ ?‘ योगेश मजाक समझ हाँसत चेंधिस।
बिसौहा फोरियाके बताइस -‘बीच म दमांद बाबू आवत रिहिसे न, ओकरे हाथ के तीन किलो खीरा, दू किलो करेला अउ भाँटा के पइसा बाँचे रिहिस।’ 
योगेश कुछु नइ बोलिस, बिसौहा के पइसा ल जमा करके रेंगे लगिस। बाजू म बइठे पटैलीन ओतेक बेर ल चुप रिहिसे। वोला रेंगत देखिस त चिचियाइस -‘मोरो ल देवत हस का वकील साहेब !’
‘तोर कतेक असन आवत हे ?’
‘जादा नइहे ... अस्सी रूपिया ताय।’
योगेश ओकरो चुकारा ल करिस। घर आके पूछिस -‘राशन दूकान थोरे जाए बर लगही। लगही त दे, ले लानथौ।’ सोनिया अपन काम म लगे रिहिस। कुछु आरो नइ मिलिस। वोह अपन गाहना गुरिया, चुरी चाकी  ल हेरे-धरे, सहेजे-सिरजाए म लगे रहय। माईलोगन मन कतको दुरिहा ले आए रहय, कतकोन थके हन कहत रहय, फेर अपन घर दुवार के साफ सफई, गहना गुरिया के हेरई तिरियई करे बर थोरको थकास नइ मरय, न कभू बिट्टावय। योगेश वोकर परवाह करे बिगर झाँकत-ताकत रंधनी कुरिया म गइस अउ सब समान ल तलाशे-तवाले लगिस। ओला बड़ ताज्जुब होइस। रसोई के सबो समान उपराहा उपराहा रिहिस। काँहीच के कमी नइ रिहिसे। सूजी रवा, साबुनदाना अउ शक्कर तको पर्याप्त रिहिस। जबकि सुनीता बीच बीच म सूजी के हलवा, साबूनदाना के बड़ा अउ एक दिन खीर तको बनाए रिहिस। योगेश राशन दूकान के डायरी ल निकालिस।
डायरी ल देखिस त ओमा हफ्ता भर म तीन पइत ले समान आए रिहिसे। वो तीन पइत म कम से कम हजार भर के समान आए रिहिसे।
‘अतेक अकन समान कइसे अउ काबर आए रिहिस’ - योगेश इही गुणा भाग लगाते रिहिसे, ओतके म सोनिया के आरो आइस - ’कस जी ..... सुनत हस ?‘
‘हाँ, बता।’-योगेश मनढेरहा जवाब दिस।
‘मोर कान के झुमका, दूनो नवा पैरी अउ सोन के अँगूठी मन नइ दीखत हे, कहूँ तिरिया के रखे हस का ?’
’का ? मैंहँ तो गोदरेज ल तोर गए के बाद खोल के देखेच नइ हौं।‘ योगेश के मन म कुछ-कुछ शंका उभरे लगिस। वोकर समझ म हफ्ता भर के सबो घटना रहि-रहिके आए जाए लगिस। छाती के धुकधुकी बाढ़े लगिस।
’त सबो गहना मन गै कहाँ ?‘ अब सोनिया के बिफड़े के बेरा रिहिसे।
’पहिन के तो गे रेहेस न ..... अउ चाबी तको तोरे तीरन रहिथे।‘
योगेश के बात सुनके सोनिया के जी धक्क ले होगे -’सबो गाहना ल थोरे पहिनके गे रेहेंव..... अउ चाबी ल तको इहेंचे छोड़ दे रेहेंव, ........गोदरेज के ऊपर म .......।‘ वो रोवाँसू होवत चिचियाइस।
अब मुड़ धरे के बारी योगेश के रिहिसे- 
‘निभगे रिश्तेदारी हँ।’
धर्मेन्द्र निर्मल
9406096346