ग़ज़लें
1
बात नहीं हैरानी की।
अक़्सर जीत जवानी की।
सीधे दिखने वालों की,
आदत है शैतानी की।
जब तक बचपन ठहरा है,
फ़ितरत है नादानी की।
दिल का हर जज़्बा अपना,
ताकत है आसानी की।
चिंता जतला देती है,
सलवट इक पेशानी की।
रखती हैं थोथे मतलब,
रस्में सब बेमानी की।
2
जब कभी भी लगाम दूँगा तुझे।
चाल अपनी तमाम दूँगा तुझे।
मैं लड़ूँगा यहाँ अर्जुन की तरह,
जीत का एहतराम दूँगा तुझे।
देखकर दिल ख़ुशी से झूम उठे,
कोई ऐसा ईनाम दूँगा तुझे ।
जब मिलेगा कहीं सफ़र में मुझे,
पास रुककर सलाम दूँगा तुझे ।
और पहले कभी मिला न सुना,
एक ऐसा पयाम दूँगा तुझे।
3
आसमाँ को झुकाना चाहते हैं।
इल्म अपना जताना चाहते हैं।
धूप ,पानी, हवा से दूर जाकर,
चाँद पर घर बनाना चाहते हैं।
इस जहाँ से अलग और अपनी,
एक दुनियाँ बसाना चाहते हैं।
हो इरादे सभी पूरे उन्हीं के,
बात अपनी मनाना चाहते हैं।
ओढ़कर भाव नकली, चेहरे पर,
रौब अपना जमाना चाहते हैं।
4
सवालों के जवाब चाहिए थे।
कहाँ हमको हिसाब चाहिए थे।
रही थी साथ जब ख़ुशियाँ हमारी,
कहाँ फिर वो ख़िताब चाहिए थे।
चरागों से हुआ मकान रोशन,
हमें कब माहताब चाहिए थे।
रिवायत रात की बता-जताकर,
कहाँ नींदों को ख़ाब चाहिए थे।
सजाया था हसीं चेहरा अग़र तो,
हमें थोड़ी नक़ाब चाहिए थे।
5
वक़्त मिला है जितना कम।
उतनी फुर्सत रक्खे हम।
हारे भी डरकर ख़ुद से,
जीते भी हम ख़ुद के दम।
आवाजें इन साँसों की,
जैसे पायल की छम छम।
जैसी मन की मस्ती है,
वैसा है तन का आलम।
ख़ुशियाँ देखी जब सबकी,
भूल गए हम अपना ग़म।
छलकी उतनी ही आँखें ,
जितनी है भीतर से नम।
दीपक की लाचारी है,
अपने ही नीचे का तम।
6
बाहर है हामी-मानी।
अंदर से आना-कानी।
पहचानी है आँखें पर,
नज़रें लगती अंजानी।
जीत ज़ुबानी बातों की,
जतलाती है हैरानी ।
भटकायेगी थोड़ा तो,
राह चले जब बेगानी।
भूल बड़ी बन जाती है,
इक छोटी सी नादानी।
जिनका है आना अक़्सर,
उनकी कैसी अगवानी।
कहकर सारी दिखलादी,
जो थी उनको समझानी।
--नवीन माथुर पंचोली-
अमझेरा जिला धार मप्र
पिन 454441
मो ,98993119724i
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