1
लाख आँसू हमारे ढ़लते हैं।
लोग पत्थर कहाँ पिघलते हैं।
जान पायेंगे हम उन्हें कैसे,
शक़्ल पे शक़्ल जो बदलते हैं।
शूल महफ़ूज रहते शाखों पर,
फूल पेरों तले कुचलते हैं।
ये ज़माना है अज़नबी उनसे,
जो घड़ी भर कहीं निकलते हैं।
बात हो आपकी असर कैसे,
आप कहते जिसे फिसलते हैं।
2
अगर मेरी कही वो मान लेगा।
सभी मर्ज़ी मेरी पहचान लेगा।
लगाकर और इक इल्ज़ाम मुझपर,
कहाँ मुझसे मेरा ईमान लेगा।
चुकाएगा सभी बदले पुराने,
सज़ा देगा कि मेरी जान लेगा।
कभी रहता नही अपनी रज़ा पर,
कहाँ तक और का फ़रमान लेगा।
चला है कारवाँ जिस रास्ते पर,
नज़र उस ओर अपनी तान लेगा।
ज़रूरत या वज़ह के काम सब वो,
करेगा तब उसे जब ठान लेगा।
3
ख़ुशी देखी नहीं जाती।
हँसी रोकी नहीं जाती।
लबों की चुप्पियाँ मुश्क़िल,
जुबाँ भी सी नहीं जाती।
रिवाज़ों, क़ायदों से डर,
वफ़ा तोड़ी नहीं जाती।
सभी कुछ पा लिया लेक़िन,
कमी अपनी नहीं जाती।
ज़ुदा है मामला दिल का,
लगी इसकी की नहीं जाती।
4
तीर लगते नहीं निशाने तक।
पाँव उठते नहीं ठिकाने तक।
अश्क़ पलकों में आ ठहरते हैं,
वो छलकते नहीं रुलाने तक।
डूबते तो सभी ने देखा था,
कोई आया नहीं बचाने तक।
ताश के घर-महल बनाते हो,
ये संभलते नहीं जमाने तक।।
हाल है इन तमाम रिश्तों का,
साथ चलते नहीं निभाने तक।
आग अंदर है अलग बाहर से,
ये सुलगती नहीं बुझाने तक ।
5
अश्क़ सारे बहा लिए जाएँ।
राज़ दिल के जता लिए जाएँ।
आज़ ग़फ़लत नहीं रहे कोई,
दर्द सब आज़मा लिए जाएँ।
काम आसान हो सभी अपनें,
हाथ सबसे बँटा लिए जाएँ।
उन रिवाज़ों से इन रिवाज़ों के,
बीच रस्ते बना लिए जाएँ।
मेज़बानी के हाल -मौके पर,
सब बिखेरे जमा लिए जाएँ।
दूसरों से ज़रा सबक लेकर,
हाथ अपने बचा लिए जाएँ।
अमझेरा धार मप्र
पिन 454441 मो 9893119724
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