अच्छा होता है...
चिंतन, मनन और फिर सृजन
अच्छा होता है
हृदय में उद्गार उठे, मन में जो भाव उठे
उसे लिख देना सच्चा होता है
अपनों से मिलना-जुलना, बातें करना
उनको सद-सलाह देना अच्छा होता है
बिना अपनी आँख से देखे हुए,
या बिना अपने कान से सुने हुए
केवल दूजे से सुनकर ही
किसी बात पर अमल करना
निःसंदेह कच्चा होता है...
जो भी लिखें, जो भी करें
सोच-समझकर करना ही अच्छा होता है
कभी-कभी अपनों के साथ घूमना-टहलना
सच में हमें अच्छा लगता है
वर्तमान में पारिवारिक जीवन में हम
अपने पत्नी और बच्चों का
बहुत ख्याल रखते हैं
ऐसे ही अपने माता-पिता बड़ों-बुजुर्गों की
सेवा करना और सम्मान देना अच्छा होता है...
खाली वक्त मिले तो पेड़-पौधों, नदियों, पहाड़ों,
झरनों, प्रकृति से बातें करना अच्छा होता है
अपनों के सुख में, शादी-ब्याह, कार्यक्रम
पार्टियों आदि में हम जाते ही हैं
अपनों के दुःख में, संकट में
या कोई मुसीबत आने पर
झट शामिल होना अच्छा होता है...
बड़ी-बड़ी गाड़ियों में, हम चलते हैं प्रतिदिन
कभी-कभार पैदल चलना अच्छा होता है
आजकल स्टेटस देखकर
हम करते हैं दोस्ती-यारी
मुफलिसी में जी रहे दोस्तों का
कभी-कभार हाल-चाल पूछना
अपने पास-पड़ोस में रह रहे
बेसहारा-गरीब जनों का
भरसक मदद करना अच्छा होता है...
माना कि हमें फुरसत न मिले अपने कामों से
उन्हीं व्यस्तता से कुछ पल चुराकर
बच्चों को माल, सिनेमा हॉल, चिड़ियाघर घुमाना
कितना अच्छा होता है
माना कि बच्चे फास्टफूड के आदी हो चुके हैं
पर होटल या रेस्टोरेंट में कभी-कभार
कुछ चटपटा खिलाना अच्छा होता है...
जीवन में कभी गलतियाँ भी हो जाती हैं
उन्हें सुधार कर आगे बढ़ना अच्छा होता है
माना कि मेरे पास धन-दौलत बहुत नहीं है
अपनों के साथ रहना, अपनों का साथ होना
हीरे-जवाहरात से कम नहीं है
अपनों की छोटी-छोटी खुशियों में
जी भर, मन भर, खुश हो जाना
सच में मुझे बहुत अच्छा लगता है...
★★★★★★★★★★★★★
सबसे प्यारा शब्द है माँ...
'माँ' इस सृष्टि का सबसे पवित्र और प्यारा शब्द है
माँ का प्यार सबसे निर्मल और विमल होता है
माँ और माँ के प्यार पर लिखी रचनाएँ
सबके मन को खूब भाती हैं
सच में इन दोनों पर सबसे अधिक
कविताएँ कहानियाँ आदि लिखी जाती हैं...
माँ ही इस अनोखे सृष्टि में हमें ले आती है
पुचकारती है, दुलराती है, प्यार और लाड़ जताती है
जब हम अबोध होते हैं, भूखे होते हैं
रात-रात जग कर माँ दूध पिलाती है
गीले बिस्तर में सोकर हमें सूखे में सुलाती है
जरा-सा ज्वर होने पर माँ की आँखों में आँसू बहते हैं
मेरे लिए मंदिर, मस्जिद, मजार पर दुआएं मांगती है
सच में माँ हर रिश्तें में सबसे अलग होती है...
माँ हमेशा अपने बच्चों का भला ही चाहती है
बचपन में अच्छी शिक्षा और संस्कार सिखाती है
एक माँ अपने बच्चों को सुखी और संपन्न बनाती है
कितने भी बच्चे बड़े हो जाए, वह चिंतित रहती है
अपना भी निवाला देकर खुद भूखी सो जाती है
कर्ज लेकर बच्चों को पढ़ाती-लिखाती है
वही माँ बूढ़ी हो जाने पर दुत्कारी जाती है
कुछ कपूतों द्वारा जन्म देने वाली माँ
वृद्धाश्रम पहुँचाई जाती है
सच में माँ दुःख सहकर सुखदायी होती है
माँ का प्यार स्वार्थ भावना से मुक्त होता है
माँ का प्यार पावस, निश्छल, ममता और करूणा युक्त होता है
इसीलिए जब बच्चा रोता है
माँ का दिल द्रवित हो उठता है
माँ अपने बच्चों के लिए दुनिया से टकराती है
सच में माँ का रिश्ता और माँ का प्यार
इस सृष्टि में सबसे सच्चा होता है...
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आज का अभिभावक...
कितना कुछ बदलता जा रहा है
आज का अभिभावक कितना जिम्मेदार
बनता जा रहा है
बच्चों के भविष्य की चिंता में
अभिभावक अब सजग है
बच्चों के जन्म लेने के पहले ही
नामकरण व स्कूलीकरण हो रहा है।
तीन वर्ष बच्चों के पूरे होने के पूर्व ही
अच्छे स्कूल की हो जा रही पहचान...
नामी गिरामी पब्लिक स्कूल में
एडमिशन के लिए दौड़धूप
तीन साल के बच्चे का नाम लिखने के लिए
हो रही जबरदस्त परीक्षा
माता पिता का भी हो रहा इंटरव्यू
शायद इसलिए कि स्कूल की महंगी फीस
क्या माँ बाप भर पाएँगे
तभी तो अपने बच्चे को पढ़ाएंगे
कॉपी किताब, यूनिफॉर्म व जूता मोजा लेने के लिए
अभिभावक का स्कूल द्वारा चिन्हित दुकान से लाना
उस पर कवर चढ़ाना व स्टिकर चिपकाना
बॉटल खरीदना और कई काम
बेटा पढ़ेगा तो ही होगा हमारा नाम
सुबह से दौड़ते दौड़ते हो जा रही शाम
महीनों न मिल रहा आराम
स्कूल लाने जाने के लिए
बस या ऑटो का इंतज़ाम...
कभी ऑटो न आए खुद ही ले जाना
सड़कों पर भीषण लग रहा जाम
अभिभावक के माथे पर चू रहा पसीना
शाम को ऑफिस से लौटते ही
बच्चे का होमवर्क पूरा कराने की जिम्मेदारी
इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाने की बीमारी
तीन साल के वजन से अधिक भारी बैग
बच्चे के पीठ पर लद जाता है
बच्चे का बचपन गुम हो रहा है
हर अभिभावक का सपना
डॉक्टर इंजीनियर कलेक्टर बड़ा ऑफिसर
बन जाए बच्चा अपना...
घंटों बैठकर तीन साल के बच्चे को
अभिभावक रात में पढ़ाता है
घर पर ट्यूशन भी लगवाता है
सचमुच आज बच्चे का अभिभावक
कितना जिम्मेदार हो गया है
पर बच्चे का बचपन वास्तव में खो गया है...
★★★★★★★★★★★★★★★★
सिर्फ एक शब्द...
कभी कभी हमारे जीवन में सिर्फ एक शब्द का प्रभाव
कर देता है ऐसा अप्रत्याशित चमत्कार
हमारे मन मस्तिष्क में वो शब्द व्यापक असर डालता है
जीवन में वो शब्द धीरे धीरे लेना लगता है एक आकार
उसकी आभा और प्रभाव से जीवन हो जाता साकार
हमारी सोच जो संकीर्णता में निहित होती है
उससे निकल कर हमारे मस्तिष्क का होता है परिष्कार
फिर हमारे विचार से छंट जाते हैं अविकार
हमें कितना सुंदर लगने लगता है यह संसार
फिर वही शब्द हमारे जीवन के लिए होता है अविष्कार...
न जाने कितने शब्दों से हमारा नित होता है सामना
उन्हीं में से छिटक कर एकाध शब्द हमें दिखाते हैं आईना
और उसी शब्द के पीछे हम चल पड़ते हैं
जीवन अपना दाँव पर लगा देते हैं
उसी शब्द को अपनी ताकत और हिम्मत बना लेते हैं
कभी तो हम हार जाते हैं
पर कभी उसी शब्द रूपी घोड़े पर सवार हो तेज दौड़ते हैं
उस शब्द को पकड़ कर दिल दिमाग में बिठाए रखते हैं
बार बार गिरते हैं, उठते हैं, फिर साहस बटोरते हैं
अंत में विजय पाकर ही रुकते हैं...
एक शब्द से देश और समाज में आ जाती है क्रांति
मिट जाती हैं अनगिनत भ्रांति
एक शब्द के लिए सिद्धार्थ ने छोड़ दिया था घर बार
ऐश्वर्य और विलासिता से युक्त संसार
एक शब्द के संचरण से जीवन हो गया था शुद्ध
और फिर... सिद्धार्थ बन गए महात्मा बुद्ध...
एक शब्द 'गुलामी' को एक दूसरे शब्द
'आज़ादी' में बदलने के लिए
बापू ने अपना पूरा जीवन किया समर्पण
तन मन धन सब कुछ किया अर्पण
देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराया
भारतवर्ष को आज़ादी दिलाया
एक शब्द ने बापू का नाम
इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज कराया...
क्या पता ? हमारे जीवन में ऐसा कोई शब्द ले आकर
ईर्ष्या, द्वैष, विषता व अहंकार का हो जाए तिरस्कार
हमारा वास्तव में बदल जाए व्यवहार
हमें भी बुद्ध महावीर गाँधी आदि के शिक्षा का हो ज्ञान
धन दौलत पद का खत्म हो जाए अभिमान
ऐसे किसी शब्द का हमें भी है इंतज़ार
ऐसे शब्द का हमारे मन मस्तिष्क पर हो तीव्र प्रहार
जो हमारी सफलता का खोले द्वार
हमें भी जीवन में ख़ुशियाँ मिले अपार...
★★★★★★★★★★★★★★★★
औरतें रिश्ते प्यार से निभाती हैं...
गेहूँ काटती और धान रोपते हुए गाना गाती
औरतें कितनी सुंदर लगती हैं...
किचेन में खाना बनाती, बच्चों का टिफिन बनाती,
बच्चों को तैयार करती औरतें कितनी अच्छी होती हैं...
मकान को सजाकर घर बनाती औरतें
कितनी अच्छी लगती हैं...
सास, ससुर, ननद, पति, बेटे के लिए दिन भर
काम करने वाली औरतें कितनी सहनशील होती हैं...
घर का काम निपटा कर समय से नौकरी करने जाने वाली औरतें कितनी जिम्मेदार होती हैं...
सुबह चाय, बच्चों का टिफिन, खाना बनाना,
कपड़ा सफाना, बिस्तर लगाना,
बच्चों को खाकर सुलाना फिर देर रात से सोना
औरतें रोजाना कर जाती हैं...
यहीं नहीं बात खत्म हो जाती है बल्कि...
औरतें घर का सामान, सब्जी, दवाई और
आवश्यक सामान भी खरीद कर लाती हैं...
अनपढ़ जाहिल पुरुषों से औरतें गाली, मार
और दुत्कार भी पाती हैं...
फिर भी औरतें रिश्तों को प्यार से निभाती हैं...
संबंधों को कितने करीने से सजाती हैं..
आजकल औरतें घर के साथ-साथ
अन्य सामाजिक दायित्वों को भी निभाती हैं...
अंतरिक्ष से लेकर पहलवानी में दांव आजमाती हैं...
सांसद से लेकर गाँव की प्रधान तक बन जाती हैं..
महादेवी वर्मा, सुभद्राकुमारी और महाश्वेता जैसी
प्रतिष्ठित साहित्यकार हो जाती हैं...
पी टी उषा, शाइना नेहवाल, पी वी सिंधू, मीराबाई चानू
लवलीना आदि खेलों में पताका फहराती हैं...
नारियाँ हर क्षेत्र में परचम लहराती हैं...
घर, समाज और देश का नाम और शान बढ़ाती हैं...
सोचता हूँ, विचारता हूँ कि यदि नारियाँ न होती?
पुरुषों के लिए जीवन कितना मुश्किल होता
जीवन कितना अस्तव्यस्त रहता
सच में नारी ही एक माँ, बहन, जीवनसाथी
और दोस्त का निःस्वार्थ किरदार निभाती हैं...
अपने संतान को संस्कार देकर एक इंसान बनाती हैं...
हमारा संसार कितना खूबसूरत बनाती हैं...
हम कितने भी लैंगिक समानता की बातें करते हैं
आज भी औरतें अपना उचित अधिकार न पाती हैं...
घर और समाज में उचित स्थान नहीं पाती हैं...
★★★★★★★★★★★★★★★★★
लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
ग्राम- कैतहा, पोस्ट- भवानीपुर
जिला- बस्ती 272124 (उ. प्र.)
मोबाइल : 7355309428
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