आज के रचना

उहो,अब की पास कर गया ( कहानी ), तमस और साम्‍प्रदायिकता ( आलेख ),समाज सुधारक गुरु संत घासीदास ( आलेख)

सोमवार, 3 मार्च 2025

छत्तीसगढ़ी गजल

कभू एती  चले लगथे  कभू ओती  चले लगथे।
हवा गँदला सियासत के सबो कोती चले लगथे।
लहर जेकर चलत हे वो उड़ाके चल गइन दिल्ली।
गिरे हे  पाँव  मा  ते मन  उँकर  होती चले लगथे।
जिही डारा ल काटत हे उही मा झूल जा कहिथें।
चले  आरी  हुकूमत  के सबो  रोती  चले लगथे।
चुनावी धुंध ले आँखी करू चिपहा करइया मन।
धथूरा  बीज  नफरत के  इहाँ  बोती चले  लगथे।
धरिन हे जेन  अँगरी अब नरी मा हाथ हे "रौना"।
चपकहीं घेँच कोनो दिन बदन खोती चले लगथे।
राजकुमार चौधरी "रौना"
टेड़ेसरा राजनांदगांव।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें