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सोमवार, 3 मार्च 2025

मैंने एक गरीब देखा

मैंने एक गरीब देखा, 
जो गरीबी रेखा की, 
राशन कॉर्ड से राशन ले, 
जिंदगी जीता है किंतु, 
दस लाख का चुनाव, 
बड़े ही शान से लड़ता है|
फिर भी गरीबी रेखा का, 
मुफ्त आवास का लाभ, 
बड़े ही निर्लज्जता से लेता है--
मैंने एक गरीब देखा---
जो मॉल में पाँच रुपये, 
का समोसा पचास में, 
बड़े शान से खरीदता है, 
ये जताने के लिए की, 
वो कैसी हैसियत वाले हैं|
लेकिन दो रुपये की, 
भाजी के लिए बाजार में, 
एक दिहाड़ी मजदूर से, 
भारी मोल भाव करता है---
मैंने एक गरीब देखा---
जो कर्मकांड पूर्वक, 
एक पत्थर की पूजा, 
करके छप्पन भोग, 
ऐसा लगाता है जैसा
वही सबसे बड़ा भक्त है|
लेकिन अपने ही घर में  , 
बूढ़े माँ बाप को भोजन, 
कुछ इस प्रकार से देता है
जैसा माँ-बाप कोई नौकर हो--
मैंने एक गरीब देखा--
जो घर में आए भिखारी को, 
मुट्ठी भर चावल देने के बजाय, 
उसे ऐसे दुत्कारता है जैसे, 
कोई कोरोना की बीमारी हो, 
और दान करता है उस ट्रस्ट को, 
जो देश का आयकर खा जाता है--
मैंने एक गरीब देखा---
जो मंदिर के बाहर, 
प्लेटफॉर्म के इर्द-गिर्द, 
दिन रात भूखा प्यासा रहकर, 
पापी पेट के लिए दामन फैला, 
भीख मांगता है ताकि, 
जरूरत मंदों के लिए भंडारा, 
करा सके इस गरज से, 
ताकि कोई तो अमीरजादा, 
कभी इस जगह आकर देख सके, 
कि गरीब और गरीबी रेखा, 
की जरूरत किसे होती है----
सोचता हूँ क्या मेरा देश, 
अब भी  इतना गरीब है, 
कि गरीबी रेखा का कार्ड, 
बनवाना बहुत जरूरी है? 
 यदि,हाँ तो किसके लिए? 
मॉल वाले उस अति गरीब
भाई साहब के लिए या, 
भीख मांग कर भंडारा, 
कराने वाले उस अकिन्चन के लिए, 
फैसला आप कीजियेगा-----
रचनाकार:-श्रवण कुमार साहू, "प्रखर"
शिक्षक/साहित्यकार, राजिम गरियाबंद (छ.ग.)

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