लड़की खोजे ल निकले रहेन
हमन ह एक ठिन गाँव म|
चार सियान ह बैठे रिहिस,
पिकरी पेड़ के छाँव म||
मेंहा कहेंव भतीजा चल,
इहि बबा मन ल पूछथन|
बड़े जबर गाँव हे चल,
काकरो घर म खुसरथन||
में कहेंव तुंहर गाँव के चेतलग,
कोनो नोनी हमला बता देतेस|
कदे पारा म वोकर घर हे,
बबा चल न तेहा देखा देतेस||
सगा घर गेन ताहन जी,
नोनी लोटा म दिस हे पानी|
चहा पियत-पियत बबा पुछीस,
लड़का के जम्मो राम कहानी||
तै का बुता करथस बाबू,
अउ पढ़े हस कोन क्लास|
हमर बेटी एम.ए.करे हे,
नौकरी वाला के हावय आस||
अजी कोन तोर कुल,गोत्र हे,
अऊ कईसन के तोर जात हे|
हमन गाड़ा भर खेती वाला,
बता तोर कतेक औकात हे||
अईसन सगा हमला नी चाहि,
जेन ह रहे फकत कंगला|
हमर बेटी उहि घर म जाहि,
जेकर कर रहि मोटर,बंगला||
बने चीज बस हावय त,
जम्मो गुण ल मिला लो|
लड़का ह बने दिखत हे,
अपन घर देखे ल बला लो||
बबा के गोठ सुन के संगवारी,
मोर तरवा ह ठाड़ सुखागे|
लड़का के जगा म लड़की के,
बाप ह खुलेआम दहेज मांगे||
झट ले महू बोल परेंव,
अरे जबर के नाड़ी दोष हे|
इकर गुण ह कहाँ मिलही,
अमीरी अऊ गरीबी के नाड़ी दोष हे||
गरीबहा अउ मण्डल के,
जोड़ी नी बन सके यार|
कोनो गरीबीन ल खोज लेबो,
तै अपन बेटी ल घर में बैठार||
दुनिया भर ह पूछे मोला,
पैसा,बंगला अऊ कार ल|
फेर कोनो काबर नी पुछिस,
हमर घर के सुघर संस्कार ल||
रचनाकार:--श्रवण कुमार साहू "प्रखर"
शिक्षक/साहित्यकार, राजिम, गरियाबंद (छ.ग.)
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