छत के ऊपर छत
न जाने कितने छत
बना गए......।
हर किसी के लिए
अब अलग से कमरा बना गए
और कमरों में कैद
तन्हाइयों को जीवन में सजा गए
जैसे मुसाफिर हो
राह का
आज अपनों से ही दूरियां बना
गए
क्योंकि कमरों में
बाहरी दुनिया के
चकाचौंध तो आ गए
पर अंदर से हम खाली रह गए....।
जैसे यहां छत के ऊपर छत
बन गए
वैसे ही एक- दूसरे से
जुड़कर भी
मुसाफिर हो गए
माधुरी मारकंडे
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