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बुधवार, 11 दिसंबर 2024

संग हंसिनी


संग हंसिनी जाही कौआ, 

रिही नौकरी जब सरकारी।

जगमग-जगमग किसमत बरही, 

मीठ लागही दुनियादारी।।


चाँद घटा मा सुग्घर दिखथे, 

चाँद घटा ले दिल हर दुखथे।

चाँद-चाँद के अंतर देखा, 

सुग्घर दिखथे सुग्घर ढँकथे।।

चाँद लुकाएँ चाँद दिखाएँ, 

मनखे खेलें अपनो पारी।

जगमग-जगमग किसमत बरही, 

मीठ लागही दुनियादारी।।


रतिहा झक अँधियारी धकधक, 

रात अँजोरी सबला भाए।

रिहा गरीबी रात तीर मा, 

उल्टा किसमत सबला ढाए।।

अहम् पालिहा जे अपनो ले, 

उनला जीवन लागे भारी।

जगमग-जगमग किसमत बरही, 

मीठ लागही दुनियादारी।।


मरमर-मरमर कर-कर पीपर, 

जीवनदायी हमला देथे।

तुलसी रानी अँगना मंदिर, 

भवसागर के डोंगा खेथे।।

बहत नदी के नीर मिठाए, 

सागर पानी नुनछुर कारी।

जगमग-जगमग किसमत बरही, 

मीठ लागही दुनियादारी।।


-सीताराम पटेल

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