छिड़ी आपस में लड़ाई
करते अपने श्री मुख़ से
अपनी ही प्रभुताई.
तान कर सीना स्वेटर बोला
मैं सबका तन ढंकता हूं
कितनी सी हो ठंड कड़कती
ध्यान सभी का रख़ता हूं.
सीना पेट पीठ सब ढाकूं
गरमी तन पर ले आऊं
अमीर ग़रीब बच्चे बुढ़े
सबके काम मैं आऊं.
ऊनी टोपी खिलखिला पड़ी
ओ अपने मुंह मियां मिट्ठू
बिना कान औ सिर ढकें
जाएं ना बाहर दादाजी बिट्टू
ठंडी हवा से मैं ही बचाती
छोटे बड़े सयानों को
सुंदर सुंदर टोपियां सजती
छैल छबीले जवानों को.
मोजा बोला, ग़ौर से देख़ो
पैरों तले ज़मी नापो
ठंडी सीधे पैरों से आती
जुराबें इसीलिए पहिनी जाती
शांत भाव से बोली दुशाला
बंद करो अपनी पाठशाला
हर वर्ग को मेरी ज़रूरत
अफ़सर श्रमिक या कलेक्टर.
तन पर सुंदर लपेटी जाऊं
नन्हा बच्चा या हो ताऊ
बाद ठंड के काम भी आती
मान सम्मान प्रतीक बन जाती.
ओढ़ शाल जब तन पर सजती
कद छोटा बढ़ जाती हस्ती
नेता अभिनेता या हो फनकार
शाल से ही होता सत्कार.
सबने शाल को दी बधाई
बहना तेरी बड़ी प्रभुताई
सचमुच उसका मान बढ़ाती
भरी सभा जब पहिनाई जाती.
प्रमदा ठाकुर अमलेश्वर रायपुर छत्तीसगढ़.
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