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बुधवार, 11 दिसंबर 2024

अड़बड़ बाढ़ें जाड़े हे


पड़पड़ावत हे गोड़ हाथ ह,

अउ गोड़ हाथ के रुंवा ठाड़ हे।

अघ्घन महीना म पानी गिरगे,

त अड़बड़ बाढ़े जाड़ हे।

तरिया के पानी कन-कन ले हे,

साहस नई होवथे नहाय के।

दिल ह करथे बिना नहाय,

मिल जातिस अब खाय के।

ओकलत चाय के कप ह घलो,

ओठ ल घलो नई जनावत हे।

गरम गरम अंगाकर रोटी के,

लालच ह रही-रही आवत हे।

जी करथे पल पला भरे गोरसी ल,

धरे राहव दिनरात पोटार के।

कमरा के बिछौना खटिया म,

अउ कमरा ल ओढ़े हव लाद के।

तभो संगवारी जाड़ के मारे,

जुड़ाय जुड़ाय कस हाड़ हे।

अड़बड़ बाढ़े जाड़ हे।

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रचना:-जीवन चन्द्राकर"लाल''

      बोरसी 52 दुर्ग (छत्तीसगढ़)

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