जम्मों रुखराई ठुड़गा अब,
हरियर पेड़ कटावत हे।
सुख दे दिन अब सपना संगी,
जग ले सरग नँदावत हे।।
पेड़ लगाबो मिल के हम सब,
पर्यावरण बचाबो अब।
लइका जइसे सेवा करबो,
तभे सुखी रह पाबो अब।।
बरसा कइसे होही भइया,
बादर घलो सुखावत हे।
जम्मों रुखराई ठुड़गा अब,.............
बर-पीपर अउ आमा-अमली,
गहना हावय भुइयाँ बर।
सुरताये बर इही ठिकाना,
जाँगर के पेरइया बर।।
बिन रुखवा के सबो डोंगरी,
बंजर बन चिकनावत हे।
जम्मों रुखराई ठुड़गा अब,..............
जीव जन्तु के आज बसेरा,
मनखे दिन-दिन टोरत हे।
जघा-जघा मा पर्वत घाटी,
ढेला पथरा फोरत हे।।
कुआँ बावली नरवा तरिया,
बँधिया घलो अँटावत हे।
जम्मों रुखराई ठुड़गा अब,..............
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रचनाकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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