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सोमवार, 23 दिसंबर 2024

ददा ए देवता ए


सबो दुःख ल सह के सुख ला बहाटथे,

अपन घर परिवार ल एक म तो सांटथे।

रोवत रहथे ओहर मन म भीतरे-भीतर,

पर आघू मा देखाय बर ओ हर हांसथे।।


लइकामन के गोड म नई गढ़े दे कांटा,

बरसत पानी मा बन जाथे हमर छाता।

जेला पता रह थे भाव दार आउ आंटा,

आजकल के लइकामन कहथे ग पापा।।


ददा हर ग हमर ब सबों दुःख ल सहथे,

रुपिया पैइसा कमाय ब बाहर म रहथे।

अक्केला घर, परिवार के पालन करथे,

अपन लोग लइकामन ब सब ले लड़थे।।


हमन ला पढ़ा, लिखा के इंसान बनाथे,

अपन जिनगी भर के कमाई ल लुटाथे।

अपन बुढ़ापा बर कुछु ल नई बचात हे,

सिरिफ हमर भविष्य ल तो सजावत हे।।


भले अपन ह पहिरे रहथे चिथरा,फटहा,

पर लइकामन बर पैंठ,कुरथा सिलवाथे।

भले अपन हर खाथे दिन मा एकेच बार,

पर लइका मन ला भर-भर पेट खवाथे।।


पता ही नई चलिस कब आइस बुढ़ापा,

आऊ निकल गे दिन उकर सब जवानी।

अइसन हो थे हमर 'ददा' के जिन्दगानी,

लिखत लिखत थक जाबो उकर कहानी।।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

✍️ ईश्वर "भास्कर"/ग्राम-किरारी  

जिला-जांजगीर चांपा छत्तीसगढ़।

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