सर गिराए मैंने इतने !
तुमने काँटे कितने?
सरहदों में बस बात यही।
टूट पडूँगा कल देखना
भले यह अंतिम रात सही।
सीने में निशान तिल का है,
गर बम के ज़द में आ जाऊँ।
और निशानियाँ याद रहे
सुन यारा ! गर मिल पाऊँ।
पता क्षत-विक्षत अंगों को,
पन्नियों में समेटा जाता ।
कभी सिर न मिल पाते तो
पाँव कभी न मिल पाता।
खंदक में कईयों दिन तो
दलदल में कई -कई रातें।
बनती अंत में वर्दी कफ़न ,
हिमखण्डों में जिंदा दफन।
राष्ट्र प्रथम , घर अंतिम
बस ऐसी ही कुछ बातें।
जूनून जज़्बा तब आता,
जीने की आरजू मारा जाता।
आँसू लेने जन-जन खड़ा ,
तब महान वह देश बड़ा।
तूने कहा यही यकीनन
आखिर अन्तिम बात यही।
रोशन साहू "मोखला" राजनांदगांव
7999840942
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