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रविवार, 1 दिसंबर 2024

सरहद की बात


सर गिराए मैंने इतने !
तुमने काँटे  कितने?
सरहदों में बस बात यही।
टूट पडूँगा कल देखना
भले यह अंतिम रात सही।
सीने में निशान तिल का है,
गर बम के ज़द में आ जाऊँ।
और निशानियाँ याद रहे
सुन यारा ! गर मिल पाऊँ।
पता क्षत-विक्षत अंगों को,
पन्नियों में समेटा जाता ।
कभी सिर न मिल पाते तो 
पाँव कभी न मिल पाता।
खंदक में कईयों दिन तो
दलदल में कई -कई रातें।
बनती अंत में वर्दी कफ़न ,
हिमखण्डों में जिंदा दफन।
राष्ट्र प्रथम , घर अंतिम
बस ऐसी ही कुछ बातें।
जूनून जज़्बा तब आता,
जीने की आरजू मारा जाता।
आँसू लेने जन-जन खड़ा ,
तब महान वह देश बड़ा।
तूने कहा यही यकीनन
आखिर अन्तिम बात यही।

          रोशन साहू "मोखला" राजनांदगांव
                   7999840942


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