ग़ज़लें
1
यूँ सलीक़ा लिए पैगाम दिया जाता है।
नाम जो रोज़ सुबह शाम लिया जाता है।
काम वह क़ाबिले तारीफ़ हुआ करता है,
जो सही वक़्त पर अंजाम दिया जाता है।
चाँद ही वक़्त-बेवक़्त निकलता है मग़र,
बेवज़ह रात को बदनाम किया जाता है।
जी रहें हैं जताकर लोग सब हस्ती अपनी,
इक भला शख़्श क्यों गुमनाम जिया जाता है।
आप भर जायेंगे वो ज़ख़्म सारे चोटों के,
हाल ही क्यों इन्हें मुद्दाम सिया जाता है।
2
हो गई कौन सी गल्तियाँ।
लग गई आप पर सख़्तियाँ।
कुछ हवाएँ चली और फिर,
सब कहाँ खो गई कश्तियाँ।
रास्ता जब हुआ घूमकर,
कट गई राह से बस्तियाँ।
इक ज़रा सी हुई भूल क्या,
लोग कसने लगे फब्तियाँ ।
आप-अपनें कभी भूलकर,
रास आई नहीं मस्तियाँ ।
3
रोज़ से कुछ आज़ थोड़ा है अलग।
रात का अंदाज़ थोड़ा है अलग।
है सफ़ेदी आसमाँ पर दूध सी,
चाँद का एजाज़ थोड़ा है अलग।
है शरद की रात इतनी ख़ुशनुमा,
जश्न का आगाज़ थोड़ा है अलग।
कौन ,कितना देखकर समझा करे,
आज इसमें राज़ थोड़ा है अलग ।
इस ज़मीं के साथ चलता - घूमता,
एक ये हमराज़ थोड़ा है अलग।
लाख होंगे ख़ूबसूरत और पर ,
आज इसपर नाज़ थोड़ा है अलग,
4
कभी जब बात नीयत की रहेगी ।
ज़रूरत आदमीयत की रहेगी।
रहेगा भाईचारा जब घरों में,
नहीं मुश्क़िल वसीयत की रहेगी।
हमेशा जीत लेगी दिल सभी का,
शराफ़त जो तबीयत की रहेगी।
निभाई जाएगी अक़्सर वही तो,
रिवायत जो जमीयत की रहेगी।
5
तन्हाइयों को दर्द से फ़ुरसत नहीं मिली।
शहनाइयों को सोज की क़ीमत नहीं मिली।
सच की लड़ाई जब चली उन पैतरों के साथ,
अंज़ाम को जज़्बात से हिम्मत नहीं मिली।
उसका सभी के साथ था अच्छा गुज़र-बसर,
लेक़िन उसे इस बात की इज्ज़त नहीं मिली।
कहता रहा है ताज वो इक बात आज तक,
सबको यहाँ मुमताज़ सी चाहत नहीं मिली।
कैसे करेगा पास वो फाईल यूँ आपकी,
अफ़सर जिसे उस काम की रिश्वत नहीं मिली।
बारात में शामिल हुए जितने सगे यहाँ,
नाराज़ हैं वो सब जिन्हें ख़िदमत नहीं मिली।
कसरत नहीं, योगा नहीं , डर खान-पान का,,
पैसा कमाया लाख पर सेहत नहीं मिली।
इतना इसे, उतना उसे, जितना लिखा मिला,
सबको जहाँ में एक सी क़िस्मत नहीं मिली।
------------नवीन माथुर पंचोली
अमझेरा धार मप्र
मो 9893119724
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