संस्मरण:15 नवम्बर जन्मदिवस विशेष
*छत्तीसगढ़ी लोक मंचों के 'दीपक' शिवकुमार*
छत्तीसगढ़ को लोककलाओं का गढ़ भी कहा जाता है।इस प्रदेश का दुर्ग जिला अन्य जिलों की तुलना में कलाओं का किला ही रहा है। जहां छत्तीसगढ़ के बेहतरीन कलाकारों का जमावड़ा सर्वप्रथम दाऊ रामचंद्र देशमुख ने दुर्ग शहर के निकट स्थित ग्राम बघेरा में चंदैनी गोंदा संस्था का सृजन करके किया था।यह सांस्कृतिक क्रांति का ओ शंखनाद था जो अजर अमर हो गया। वर्ष 1971 में सृजित छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा कालजयी लोकमंच 'चंदैनी गोंदा' में 'हरित क्रांति माई' की महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करके शिवकुमार 'दीपक' अमिट छाप छोड़ गए।
चंदैनी गोंदा की भांति छत्तीसगढ़ी कला जगत के उत्थान तथा छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक यात्रा को आगे बढाने के लिए दाऊ महासिंग चंद्राकर ने दुर्ग के मिल पारा स्थिति समर्पण भवन में लोकमंच 'सोनहा बिहान' को सृजित किया। इस संस्था में भी शिव कुमार दीपक अपने हास-परिहास अभिनय से एक तरफा छाप छोड़ते थे।
छत्तीसगढ़ के सुपरस्टार कॉमेडी किंग के नाम से विख्यात दीपक छत्तीसगढ़ी फिल्मों के साथ ही हिंदी भोजपुरी मालवी और अफगानी फिल्मों में भी अभिनय का अनूठा रंग बिखेर कर प्रसिद्ध हुए। 1965 में मनु नायक कृत छत्तीसगढ़ी के पहली फिल्म कहि देबे संदेस ' के बाद घर-द्वार और छत्तीसगढ़ गठनोपरांत निर्मित पहली फिल्म मोर छइंया भुइयां, सहित परदेशी के मया,मया देदे मया लेले, मयारू भौजी, जैसे अनेक फिल्मों में अपनी अभिनय क्षमता का लोहा मनवाया।
खैरागढ़ के सिद्धहस्त कलाकार रमाकांत बक्शी जी को वे अपना अभिनय गुरु,मार्गदर्शक मानते थे।
अस्सी के दशक में हास्य प्रहसन 'नेता बटोरन लाल 'और 'छत्तीसगढ़ रेजीमेंट' 'सउत झगड़ा' 'छत्तीसगढ़ महतारी' से भी उनकी अमिट पहचान बनी। महिला पात्र की एकल भूमिका निभाने में उनकी बहुत अधिक रुचि रही जो कि उनकी विशेष पहचान बनी।
दाऊ देशमुख के लोकनाट्य कारी में सरपंच, सूत्रधार और दाऊ चंद्राकर की संस्था सोनहा बिहान में बतौर लोक नर्तक, हास्य अभिनेता ,उद्घोषक तथा लोकनाट्य 'लोरिक चंदा' में राजा मेहर जैसे प्रमुख किरदारों का अभिनय मैंने किया।इन्हीं लोक मंचों में मुझे हास्य अभिनेता शिवकुमार का साथ मिला।
*अभिनय के हेडमास्टर दीपक*
वे अभिनय में तो 'हेडमास्टर' थे, पर संवाद बोलते समय अकसर लेखक के लिखित संवाद से हटकर स्वरचित संवाद बोलते थे। इससे हास्य तो बना रहता था किन्तु यदा-कदा सहयोगी पात्र को अपनी लाईन जोड़ने में पसीना छूट जाता था। ऐसी स्थिति बनने पर दीपक जी परिस्थितियों को भांपकर तत्काल क्लू देने में भी दक्ष थे।
*जीवंत अभिनय के धनी*
दीपक अभिनय करते समय बड़े ही सहज और जीवंत अभिनय किया करते थे।उनके साथ सोनहा बिहान मंच पर मैं 'महाराज के पेंदा ले तेल टपकत हे' प्रहसन करता था। इसमें वे महाराज और मैं उनका बुद्धू नौकर बनता था।उस प्रहसन में बुद्धु नौकर बार बार गलती किया करता था। जिसे समझाने सुधारने हेतु महाराज मारते पीटते थे। जीवंत अभिनय के चक्कर में दीपक जी के मार से मेरे गाल -कान लाल लाल हो जाते थे।
*केले का बना कचुमर*
छत्तीसगढ़ी लोक मंचों में दीपक और कमल नारायण सिन्हा की जोड़ी सुपरहिट रहती थी ।इनके साथ बैठने से हंसते-हंसते पेट में बल पड़ जाता था।वर्ष 1982 की बात है। दाऊ महासिंह चंद्राकर के नेतृत्व में लोरिक चंदा की शूटिंग हेतु हम लोग दूरदर्शन केंद्र दिल्ली गए हुए थे। वहां सांसद चंदूलाल चंद्राकर जी के आवास परिसर में हम पैंतीस कलाकारों को ठहराया गया था।तभी एक दिन दाऊ महासिंह जी केला लेकर आए और झोले में रखकर कहीं चले गए।उसमें से चार केला कमल और दीपक खा गए।
दाऊजी को जब इस बारे में जानकारी हुई तो गुस्से में आकर उन्होंने केला को आंगन में फेक दिया।इसे देखकर कमल और दीपक केला को उठाकर लाए और हाथ जोड़ते दाऊजी के चरणों में रख दिए ।दाऊजी गुस्से में थे। उन्होंने फिर से केला को जोर से फेक दिया। वे दोनों फिर उठा लाए। ऐसा क्रम कई बार चला तो केलों का कचूमर बन गया।उन दोनों की ऐसी शरारत से दाऊजी भी हंस पड़े थे।
*दिल्ली में खुला दीपक का राज*
दिल्ली में लोरिक चंदा की शूटिंग(1982 )के उपरांत दुर्ग वापसी हेतु रेल्वे स्टेशन पर बैठे थे। तभी मैंने उनके नाम के साथ दीपक जुड़ने का किस्सा पूछा था।तब जानकारी हुई।1958 में दुर्गा कॉलेज रायपुर में अध्ययन के दौरान नागपुर महाराष्ट्र में आयोजित अंतर्राज्यीय युवा उत्सव में शिवकुमार द्वारा प्रस्तुत एकल अभिनय 'जीवन पुष्प' को देखकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने उनके अभिनय को सराहा और 'दीपक' नाम दिया,जो कि आजीवन उनके नाम के साथ जुड़ा रहा।अधिकांश जनमन इस बात से अनजान है कि उपनाम 'दीपक'से ख्याति प्राप्त कलाकार का असल नाम शिव कुमार (साहू )साव था।
बेहतरीन हास्य कलाकार, छत्तीसगढ़ी एवं हिंदी फिल्मों के दिग्गज अभिनेता शिव कुमार का जन्म 15 नवंबर 1933 को दुर्ग से सटे ग्राम पोटियाकला में हुआ था।91 वर्ष की उम्र में 25 जुलाई 2024 को उन्होंने अपने कलाग्राम पोटियाकला में अंतिम सांसे लीं। जीवन के अंतिम पड़ाव में उन्हें छत्तीसगढ़ शासन द्वारा लोक कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान हेतु दाऊ मंदराजी सम्मान से अलंकृत किया गया । भिलाई इस्पात संयंत्र से सेवानिवृत्त हुए स्व. दीपक एक व्यक्ति नहीं अपितु एक संस्था थे। अभिनय की दुनिया का ये दैदीप्यमान दीपक सदा आलोकित करता रहेगा।
*विजय मिश्रा 'अमित'*
हिंदी- लोक रंगकर्मी अग्रोहा कॉलोनी रायपुर(छग)492013 9893123310
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