कहिनी // *खोरी काकी* //
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कका महेतरु जबर सीधवा मनखे रहय ओकर संगे-संग ईमानदार अऊ सुवाभिमानी के गुन ओकर हिरदे भितरी कोंच-कोंच के भराय हे।' कका अपन पूरती पोठ रहे।दू डेंटरा गरीब, दुखिया मन ल देहे-लेहे के पाछू खाय-पीये बर पीग के पीग पूर जात रहिस '। कका महेतरु ईमान अऊ सुवाभिमान के संगे-संग बड़ धर्मात्मा के चद्दर ओढ़े रहिस...।ओहर कभु रमायन त कभु आल्हा अऊ कभु सुखसागर जइसन धरम गरंथ ल अपन के आंट म निकाल के पढ़बेच करय।
कका के गोसाईंन थोरिक खोरावत लवठी धर के रेंगय ते पाय के ओला सबोझन खोरी काकी कहें।' काकी कभू स्कूल के मुहूँ तक नि देखे रहय।' *करिया आखर भइंसा बरोबर*, पढ़े नि रहिस फेर कढ़े जरुर रिहिस। जिनगी जीये के सबो गुन भराये रहिस।घर के बूता काम ल बने संकेरहा कर डारे घर ल गोबर म सुग्घर लीप के छुही म बढ़िया खुंटियाय रहय घर ल देखते त कोनों मेर नानमून कचरा खोजे म नि मिलतिस येतका सुग्घर अपन घर दुवार ल राखे रहय।गोबर कचरा ल घुरवा म फेंक के असनान ध्यान करके कका ल संकेरहा खाय ल देवय अऊ अपनो खाय...।
कका अऊ काकी के जांवर-जोड़ी अतका सुग्घर फभे रहय फेर भगवान ह ओमन ल नि चिन्हिस,काकी के कोरा सुन्ना रहिस।एतकेच के ओमन ल दुख रहिस।दुख कोन ल नि होय फेर दुख सबो ल भोगे परथे।लइका नि होय म मनखे के मुंहूँ ले बपरी ल कई किसिम के गोठ सुने बर परे।कतको झन बकठी,ठड़गी अऊ बांझ घलो कहि देवंय।येहर काय जानही लोग-लइका के पीरा...। तभो ले सबो ल सहय। हांड़ी के मुहूँ म परई ल तोपथें अऊ आदमी के मुहूँ काला तोपे..कहइया मन ल कहन दे मोला कुछू फरक नी परे मसकरी करत..खोरी काकी कहिस ! खोरी काकी सबो के गोठ एक कान ले सुने अऊ दूसर कान ले निकाल देवय।कभु-कभु अनसुना घलो कर देवय।भगवान सबो ल देखत हे येमा कोनों किसिम के दुख होय के जरुरत नी हे अपन गोसाईंन ल समझावत ..महेतरु कहिस !
काकी के गोड़ थोरिक खोराय जरुर फेर सबो बूता ल कर डारय।खोरी गोड़ कभु काम-बुता म अड़गा नि होइस।खेती-किसानी के जम्मो बूता कर डारय।निंदई-कोड़ई,लुआई-मिसाई कुछू बुता नि बांचत रहिस।खेती-किसानी के दिन म खेत-खार कोती खोरी काकी के सालहो,ददरिया,सुआ,करमा के सुग्घर गीत कान म मंधरस अवस के घोरय अऊ अपन गीत म सबो के मन मोह लेवय।ओकर सालहो,ददरिया के गीत सुनके दूरिहा ले जान डारय के खोरी काकी कोन खार कोती हावय।ओकर सालहो ददरिया,सुआ,करमा के गीत डाहर चलइया मन थोरिक रुक के सुनबेच करें।ओकर गीत सबो के मन मोह डारय।
खोरी काकी के भलेकुन लोग-लईका नि रहिस फेर लोग -लईका के पीरा ल जरुर जानय अऊ समझे ते पाय के पारा-परोस के लईका मन ल जबर मया करय।कोनों मेर खाई-खजेना पातिस त लईका मन ल अवस करके देवय अऊ लईका मन खोरी काकी के अगोरा घलो करत रहंय।खोरी काकी के लवठी के ठुक-ठुक अवाज ल लइका मन दुरिहा ले ओरख दारें।कभु-कभु मया के चोन्हा देखावत ओकर पाछु-पाछु चल देवंय।
खोरी काकी जबर मिहनती रहिस।पढ़े लिखे नी रहिस त का होइस भारी गुनिक रहय। छेवरिहा मन ल हरु-गरु करवाय के गुन के संगे-संग जिनगी जिये के सबो गुन भरे रहय।कोनों माईलोगन के छेवरिहा पीरा उसले के शुरू होय त खोरी काकी ल अवस के बलावंय।खोरी काकी के हाथ म जस रहिस अइसे लागथे के ओकर हरु-गरु करवाय म एकोझन लइका के आज तक फउत नी होईस लइका अऊ महतारी दूनोझन सही सलामत रहंय।घरेच म हरु-गरु हो जावंय कभू अस्पताल जाय के जरुरत नी परय ते पाय के खोरी काकी ल सबोझन अवस के बलाबेच करंय।
खोरी काकी ल कभु-कभु छेवरिहा घर म रात-रात जागे बर पर जावय तभो ले नि असकटावे,जबर सेवा करइया रहिस।निसुवारथ सेवा के भाव ले सेवा करय।जभे छेवरिहा हरु-गरु हो जातिस तभे घर आवय।घर गोसाईंयाँ मन हरु-गरु के चिन्हा के सेथी लुगरा चउर दार दे देवैं अऊ थोर-थार रुपिया पइसा घलो देवंय।कोनों बुलातिन ओला कभु नइ नि कहे। पानी बरसे के चाहे कतको जाड़ जनावे फेर जाबेच करय ओकर सुभाव रहिस।सेवा करे बर नि छोड़ीस।
कतका बेर काय हो जाही तेकर गम नि मिले। 'जिनगी के दीया के ठिकाना नि हे कतका बेर बुझा जाही '।अइसनहे महेतरु कका के संग घलो होगिस,ओकर.जिनगी के दीया बुझा गिस।चम्मास के दिन रहे झोर-झोर के पानी गिरत रहिस सर-सर हवा घलो करत रहे।बादर के गरजइ अऊ बिजली के लहुकइ जबर डर लागत रहे।येती खोरी काकी के खेत कोती सालहो,ददरिया गीत के तान सुनावत रहिस।
महेतरु कका घर के चंदैनी गोंदा कहर-महर करत ममहावत हे फेर समे के बेरा ल कोन जानथे। देखते-देखत घर के मुहाटी आंट म बइठ के कका महेतरु आल्हा पढ़त रहिस।आल्हा पढतेच-पढ़त ओलहर गिस देखा-देखा होगे।उठाके घर कोती खटिया म सुताइन फेर जिनगी के सांसा के तार तो टूट गे।हाथ-नारी जुड़ा गिस ।येती बिजली के चमकइ,बादर के गरजइ, पानी के गिरइ कका महेतरु के देहें संग जुड़ा गिस।अइसे लागत रहय जइसे कका ल लेहे बर आय रहिस अऊ कका के संगे-संग चल घलो दिस।
खोरी काकी ल खेत ले लानिन ओकर आँखी ले आँसू के नदिया कस धार बोहावत रहे।आँखी ले दुख के आँसू पोछत लुगरा के अँचरा भिजगे।ओकर एकेझन भांचा रहिस ओला बलाय बर खोरी काकी कहिस !ओकर भांचा ल तुरते लेहे जावत हौं रोआसी अवाज म तीजउ कहिस ! ओकर भांचा आइस अऊ ओही ह क्रिया-करम करिस।अपन के सबो चीज बस घर-दुवार अऊ खेत डोली ल अपन के भांचा ल दान दे दिस अऊ एक कंँवरा सीथा के आसरा म तुंहरे तीर रहे रहूँ खोरी काकी अपन भांचा ल रोवत-रोवत कहिस !सबो के बोझा ल बोहत हं म हं मिलावत ओकर भांचा हव कहिस !
कका के जाय के पाछू काकी के जिनगी अद्धर होगे।ओकर भांचा मन अपन मामी के बनेच सेवा जतन करंय।समे के समे ताते-तात साग-भात रांध के खवांय।दवाई-मांदी, सूजी-पानी बीच बीच म देवातेच रहंय।भांचा मन कतको सेवा करंय फेर गोसाईंयाँ के नी रहे म खोरी काकी के जिनगी बिरथा होगे।' खोरी काकी के जिनगी अंधियारी रात कस *कुलुप अंधियार* होगे '।ओला हरास छूगे जिनगी के *बेर बुड़ती बेरा* ढरकत हावे...'अऊ देखते-देखत खोरी काकी के तन के पोंसे चिरई पिंजरा ले उड़ियाय बर धर लिस अऊ ओकर जिनगी के बेरा बुड़ गिस '....।
' भले मनखे ल भगवान घलो जल्दी अपन तीर म बला लेथे '।गांँव म खोरी काकी के जाय के पाछू छेवारी कराय बर कतको झन ल संसो परगे काबर के ओकर छेवारी कराय कभु अकारत नि होय हे।'ओहर निसुवारथ भाव ले सेवा करय '।लइका मन ल मया करे।खेत-खार म सालहो, ददरिया, सुआ करमा के गुरुतुर गीत के तान अब कभु नि सुनावय बस खोरी काकी नांव के *सपना के सुरता* बांच गीस...।खेत-खार सुन्ना परगीस जइसे कोइली के बिना अमरइया '।खोरी काकी के लवठी के ठुक-ठुक अवाज सुने के अऊ खाई-खजेना खाये के अगोरा म लइका मन हाथ पसारे ठाढ़े के ठाढ़े रहिगिन.'.....।
✍️ डोरेलाल कैवर्त " *हरसिंगार "*
तिलकेजा, कोरबा (छ.ग.)
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