छत्तीसगढ़ के चंदन माटी,सोन कस धान उगाथे।
तेकरे सेती छत्तीसगढ़ हा,धान के कटोरा कहाथे।।
करमा ददरिया पंथी सुआ, गीत ल जम्मो गाथे।
छत्तीसगढ़ी गुरतुर बोली, सब्बो के मन ल भाथे।।
छत्तीसगढिया सबले बढ़िया,कइथे हमला भइया।
छत्तीसगढ़ मईया के सुग्घर, परँव मँय हा पँइया।।
तोर कोरा म उपजे धान, तिवरा राहेर उनहारी।
नरवा गरवा घुरवा बारी, हावय तोर चिनहारी।
मेहनत करथे तोर कोरा म,करथे खेती किसानी,
किसिम किसिम के फसल लगाथे,बोथे आनी बानी।
कहाँ जाबे छोड़ के संगी,अपन छइहाँ भुईयाँ,
छत्तीसगढ़ मईया के सुग्घर,परँव मैं हा पइयाँ।।
कल कल कल बहत रइथे ,नदिया नरवा के पानी।
जीव जंतु के पियास बुझाके,बचावत हे जिनगानी।।
तोर कोरा म परबत पहाड़,घाट अऊ जंगल झाड़ी।
सुख -शांति से चलत राहय, जिनगी के ये गाड़ी।
तिहार बार म जम्मो मनखे,नाचय ता ता थईया।
छत्तीसगढ़ मईया के सुग्घर,परँव मँय हा पइयाँ।।
©- लोकनाथ ताण्डेय 'मधुर'
भण्डोरा,बिलाईगढ़,
जिला-सारंगढ-बिलाईगढ़(छग)
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