देखव छत्तीसगढ़ बने ले, मिलिस नवा पहिचान।
महतारी के मान बढ़े हे, सुनले मोर मितान।।
किसम-किसम के लोक गीत हे, रोज मया बगराय।
करमा-पंथी सुवा-ददरिया, सबके मन ला भाय।।
एकर महिमा हावय भारी, कइसे करँव बखान।
महतारी के मान बढ़े हे, सुनले मोर मितान।।
धनहा-डोली टिकरा टाँगर, धान पान लहराय।
होत बिहिनिया चिरई-चिरगुन, गीत मया के गाय।।
बोली भाखा मीठ इहाँ के, मीत मयारू जान।
महतारी के मान बढ़े हे, सुनले मोर मितान।।
आनी-बानी जुरमिल जम्मों, मानँय तीज तिहार।
होली-अक्ती परब हरेली, हावय तीजा सार।।
लोहा-टीना चूना-पखरा, एकर भरे खदान।
महतारी के मान बढ़े हे, सुनले मोर मितान।।
अंगाकर अउ गुरहा बजिया, सुनके टपकय लार।
बोहावत हे महानदी अउ, अरपा पैरी धार।।
चंदन कस माटी हे एकर, पाये जी बरदान।
महतारी के मान बढ़े है, सुनले मोर मितान।।
मुकेश उइके "मयारू"
ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)
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