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मंगलवार, 5 नवंबर 2024

चिन्हारी


जन्मभूमि को भूलना क्यों।

तू मिट्टी से दिलदारी रख।


अहंकार में क्यों  है डूबा।

मन विचार उपकारी रख।


धर्म-कर्म के काज तो करले।

नाम  निशानी  चिन्हारी रख।


तन मन निर्मल गंगा का पानी।

मुख मे  न  चुगली चारी  रख।


गिरेगा नहीं फिसलेगा नहीं।

तू मात पिता आधारी  रख।


अकड़ को  टूटना  है  पड़ता।

तू झुकने की कलाकारी रख।


रिश्तों में कड़वाहट क्यों है।

मन मंदिर खुला दुवारी रख।


जोश जवानी चरदिनिया है।

बुढ़ापे  की  तू  तैयारी  रख।


बात किसी को बुरी न लगे।

जुबान  मीठी सी प्यारी रख।


सच क्या है और झूठ क्या है।

परख के थोड़ी समझदारी रख।


मंदिर-मंदिर क्यों तू भटके।

उर में तो कृष्ण मुरारी रख।

विजेन्द्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव (धरसीवाँ)

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