हाथ में नई हे हथियार
काटे ल चलीस खुशियार
कोन जनी
कईसे काटही
झिकत हे
पूदकत हे
कपड़ा निचोय कस
अईंठत हे
गठान पिचकोलावत हे
मिट्ठा रसा चुचवावत हे
रसा सनात हे माटी में
पिरा उठत हे छाती में
मान के हो गे मरदन
कसाय कस लगत हे गरदन
बोले रिहिस
ला लेबे दु-चार
चूहके बर
जीव के होगे काल
बेंदरा कस होगे हाल
बंद कर के मुठ्ठी पा नई सके
आगू मे रखे चना
खा नई सके
ये बात ल जान जथे होशियार
बिना हथियार
नई कटे खुशियार।
रवि यादव "झोंका"
श्यामपुर "छुईखदान"
के.सी.जी.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें