बनगे छत्तीसगढ़ राज ,सब करें नाज।
फेर आधा अधूरा,भाखा के हे काज ।
चोबीस साल होगे, कई घ सवाल होगे।
कहत कहत थकेंन,कहे म लागे लाज।
अपन भाखा जेहर, दर्जा बर तरसे।
परके भाखा बन फिरे,हमर महराज।
कतको सभा होइस, कतको भाषन हे।
मुंह ताकत बइठे, छत्तीसगढ़ीया समाज।
आंखी म सबके झूले ,आठवीं अनुसूची।
भाखा ल मिल जातीस ,कहों एकर ताज।
सुरता करांव संगी,मन बात हर आगे।
भले मोर कविता पढ़इया,होवय नाराज।
गिरधारी लाल चौहान
सक्ती छत्तीसगढ़
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