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शनिवार, 16 नवंबर 2024

हसदेव बचाबो

 हसदेव बचाबो---- चौपाई छंद 


चल संगी हसदेव बचाबो।।

महतारी के मान बढ़ाबो।।

बिन एकर हे सबके मरना।।

सोंचव जल्दी का हे करना।।


चार- चिरौंजी तेंदू मउहा।।

मिलथे संगी झउँहा- झउँहा।।

जीव-जन्तु बर इही सहारा।।

कटत हवय हसदेव बिचारा।।


डीह डोंगरी नदिया घाटी।।

बंजर होवत हावय माटी।।

हे विकास के नाँव धराये।। 

लोगन ला कइसे भरमाये।।


लाख-लाख हे पेड़ कटावत।।

पूँजीपति मन मजा उड़ावत।।

धरती हा सुसकत हे भारी।। 

लोंचत हें लबरा बैपारी।।


जल जंगल ले हे जिनगानी।।

देवय हम ला दाना पानी।।

शुद्ध हवा कइसे मिल पाही।।

रुख राई हा जब कट जाही।।


हाथी भलुवा घर-घर जाहीं।।

गाँव शहर मा रार मचाहीं।।

उजरत हावय इँकर बसेरा।।

कोन मेर अब करहीं डेरा।।


देख चलावत हावँय आरी।।

चुप बइठे हें सत्ताधारी।।

भैरा कोंदा बनगे हावँय।।

पद पइसा के महिमा गावँय।।


आज उजारत हावँय कोरा।।

ककरो झन गा करव अगोरा।।

आघू आवव बहिनी-भाई।। 

जल जंगल बर लड़ौ लड़ाई।।



मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

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