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एक दीप उनके लिए-
जो मातृभूमि की रक्षा हेतु,
सीने पर गोली खाते हैं|
अपना तन-मन अर्पित कर,
माटी का कर्ज चुकाते हैं||
एक दीप उनके लिए-
जो अपने अथक परिश्रम से,
वसुधा को उर्वर बनाते हैं||
अपना खून पसीना बहाकर,
जो सबको अन्न खिलाते हैं||
एक दीप उनके लिए-
जो तम की अमावस रातों को,
चीरकर नया सबेरा लाते हैं|
जो अंधकार में रहते हुए,
औरों का घर जगमगाते हैं||
एक दीप उनके लिए-
जिनके छत्र छाया में नित,
ज्ञान का दीपक जलता है|
वर्तमान का नौनिहाल और,
भविष्य का युवा पलता है||
एक दीप उनके लिए-
जो परहित खातिर मरता है,
जो परहित खातिर जीता है|
जिनके कर्म रामायण जैसी,
आँसू बनकर बहती गीता है||
रचनाकार:-श्रवण कुमार साहू, "प्रखर"
शिक्षक/साहित्यकार, राजिम, गरियाबंद (छ.ग.)
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