कब तक ले लिखबो लिखरी
चूक-चूक ले हे माला-फुंदरी,
बहूँटा भर-भर हे सुघ्घर चुरी
मुड़ म पागा उप्पर हे खुमरी !
चटनी-बासी,आमा के अथान
तिवरा, चेच, पटुवा के बखान ,
डंवर अउ गुरमटिया के धान
मोर कुंदरा ल महल तँय जान !
गुलगुल भजिया,चाँउर चीला
हम आवन किसनहा पिला ,
काहत हँव मँय बात सहीं ला
छकत हम खाथन माईपिला !
ये सुत उठ के बड़े बिहनिया
खेत जाथन जी धर के पनिया,
धरती के हम हन जी गुनिया
ठाड़ बेरा बासी लाथे पुनिया !
नांगर-बइला हे जी हमर परान
हम सङ्गी ये भूंईंयाँ के भगवान,
छत्तीस गढ़िया सबले बढ़िया
जय जवान,जय-जय किसान !
कब तक अइसन गीत ल गाबो
हम कमाथन अउ मुहूँ लमाबो,
अपन कमई के दाम कब पाबो
उँखर मुहूँ म तारा कब लगाबो !
-- *राजकुमार 'मसखरे'*
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