नान्हे कहानी
*साइकिल के देवारी*
प्रदीप भोले के घर म एक ठिन अडबड़ जुन्ना साइकिल हर कई बछर ले खतावत परे रहीस।सायकिल के पूरजा पूरजा म जंग लग गे रहीस। टायर मन ह तको सरगे रहीन।जेन ला देख देख के प्रदीप भोले के घरगोंसाईन हरेक देवारी म भोले जी ल आंखी देखावत बरजत कहय- जंग लगे साइकिल ल राखे काबर हस?एला फेंक काबर नी देवस?
सुख दुःख के संगवारी सायकिल बर राखे मोह ल आखिरकार भोले जी ल मन मारके छोंड़ना परीस। देवारी के दू दिन पहली कापी- किताब टिपली -बाटल बिसाए बर घर आए कबाड़ी के हाथ म भोले जी हर सौ रुपया म साइकिल ल बेंच दीस।
कबाड़ी वाला ह अपन ठेला म सायकिल ल लाद के जाय लागिस। तभे प्रदीप भोले के घरगोंसाईन हर तनतनावत निकलीस अऊ चिल्लाईस- कस जी सायकिल कस तोरो दिमाग म जंग लग गे हे का ?अतका बड़ साइकिल ल खाली सौ रुपया म दे देहे। अरे,जानत तो होबे,कबाड़ी वाले मन ह बिकट चालू होथें।
कबाड़ी वाला ओखर बात ल सुनके बुदबुदाए लागिस- चालू कोन हे?कचरा ल सौ रुपया म बेंचोइया कि कचरा ल सौ रुपया म खरीदोइया ? दूसर कोति ठेला म लदे साइकिल हर मने मन ए सोंच सोंच के गदगद होवत रहीस कि भोले जी के घर म एक कोंटा ल छेंके खतावत परे रहें।आज साफ सफाई तको हो गे अउ बड़े कबाड़ी के दूकान म चार पइसा जादा म बेंचा जाहूं त बिचारा छोटे कचरा ठेला वाले के घर म देवारी तिहार ह बने मन जाही। ए बात ल गुनत कुलकत सायकिल क हेडिंल म लगे जंग खाए घंटी ह ट्रिन ट्रिन बाजत बोल पड़ीस- दूसर ल खुसी देहे म ही तो असल देवारी के मजा हे।
*विजय मिश्रा 'अमित'*
पूर्व महाप्रबंधक (जन)
एम 8 सेक्टर 2 अग्रोहा कॉलोनी,पोऑ- सुंदर नगर रायपुर (छग) 492013 मोबा.9893123310
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