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*विधा- चौपाई छंद*
*विधान- सम मात्रिक छंद, चार चरण, 16-16 मात्राओं पर यति, युगल चरण तुकांतता, पदांत ऽऽ विकल्प ।।ऽ, ऽ।।, ।।।। मान्य, ।ऽ। वर्जित*
मन में तम इतना गहराया ,
अंतस दीप जला ना पाया ।
वृथा मोह में जनम गँवाया ,
शायद ये है प्रभु की माया ।।
मन में ऐसी तृष्णा जागी ,
बना रूपसी का अनुरागी ।
भूल गया मैं सुध-बुध सारा ,
फिरा जगत में मारा- मारा ।।
अपनों ने अतिशय समझाया ,
दुनियावी भय भी दिखलाया ।
पागल मन को कुछ ना भाया ,
प्रेम अगन की धुनी रमाया ।।
जाति-पाँति के दीवारों की,
घुटते निर्धन चित्कारों की ।
व्यथा कथा माता समझाई ,
ऊँच-नीच की दिया दुहाई ।।
मन ही मन यह निश्चय ठाना ,
मात-पिता को दुश्मन माना ।
त्यागा घर पाते ही मौका ,
अबुझ लहर पर खेया नौका ।।
मगर भाग्य ने ठोकर मारा ,
चित्त हो गया मैं बेचारा ।
मिला प्यार में धोखा भारी ,
समझ आ गई दुनियादारी ।।
मस्तक धुन रोया पछताया ,
समय अपरिमित वृथा गँवाया ।
भटके को प्रभु राह दिखाया,
रूप जाल से मुझे बचाया ।।
बहुत अनादर मैंने भोगा ,
अब अंतर्मन रोशन होगा ।
बीत गई वह रातें काली,
ले बहार आई दीवाली ।।
*रचयिता- मोहन लाल कौशिक बिलासपुर (छ.ग.)*
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