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गुरुवार, 31 अक्टूबर 2024

ले बहार आई दीवाली


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*विधा- चौपाई छंद*

*विधान- सम मात्रिक छंद, चार चरण, 16-16 मात्राओं पर यति, युगल चरण तुकांतता, पदांत ऽऽ विकल्प ।।ऽ, ऽ।।, ।।।। मान्य, ।ऽ। वर्जित*


मन में तम इतना गहराया ,

अंतस दीप जला ना पाया ।

वृथा मोह में जनम गँवाया ,

शायद ये है प्रभु की माया ।।


मन में  ऐसी  तृष्णा  जागी ,

बना  रूपसी  का अनुरागी ।

भूल गया मैं सुध-बुध सारा ,

फिरा जगत में  मारा- मारा ।।


अपनों ने अतिशय समझाया ,

दुनियावी भय भी दिखलाया ।

पागल मन को कुछ ना भाया ,

प्रेम  अगन  की  धुनी  रमाया ।।


जाति-पाँति के दीवारों की, 

घुटते निर्धन चित्कारों की ।

व्यथा कथा माता समझाई ,

ऊँच-नीच की दिया दुहाई ।।


मन ही मन यह निश्चय ठाना ,

मात-पिता को  दुश्मन माना ।

त्यागा  घर   पाते  ही  मौका ,

अबुझ लहर पर खेया नौका ।।


मगर भाग्य ने  ठोकर मारा , 

चित्त  हो  गया   मैं  बेचारा ।

मिला प्यार में  धोखा भारी ,

समझ आ गई  दुनियादारी ।।


मस्तक  धुन   रोया  पछताया , 

समय अपरिमित वृथा गँवाया ।

भटके को  प्रभु  राह दिखाया, 

रूप  जाल  से   मुझे  बचाया ।।


बहुत अनादर मैंने भोगा ,

अब अंतर्मन रोशन होगा ।

बीत गई वह रातें काली,

ले बहार  आई  दीवाली ।।


*रचयिता- मोहन लाल कौशिक बिलासपुर (छ.ग.)*


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