आज के रचना

उहो,अब की पास कर गया ( कहानी ), तमस और साम्‍प्रदायिकता ( आलेख ),समाज सुधारक गुरु संत घासीदास ( आलेख)

शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2024

छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य: सुवा


सुवा गीत ह हमर राज्य के गोंड जाति के माईलोगन मन के नृत्य आए। आज सबो जाति के कन्या मन अउ महिला मन ए नृत्य ल करथे। एहा देवारी के परब म माईलोगन मन के द्वारा गाए जाने वाला गीत है। 

का हरे सुवा आवव जानन:-

एमा सुवा  मिट्ठू ल कहिथे।मिट्ठू ह चिरई मन के एकठन प्रजाती हरे जेन ह हरियर रंग के रहिथे, अउ ओकर चोंच ह लाल रंग के रहिथे। सुवा चिरई के एकठन खास विशेषता ए हे कि ऐला जोन भी गोठ रटवाथे ओला ओहा हूबहू बोलथे, दोजराथे। 

सुवा नृत्य:-

ए लोकगीत म माईलोगन के जात मन ह मिट्ठू के माध्यम ले अपन संदेस देवत ए गीत ल गाथे।ए गीत के जरीये स्त्री मन ह अपन अंतस मन के गोठ ल गोठियाथे ,ए विस्वास के संग कि ए सुवा ह मोर व्यथा ल प्रिय तक पहुँचाही कहिके।एकरे बर ए लोकगीत ल कभू कभू वियोग के गीत तको केहे जाथे।


सुवा गीत म हमनला हमर लोक कथा ल सुने बर तको मिलथे:-

सुवा गीत म हमनला लोक कथा ल सुनेब तको मिलथे, सुवा गवइया मन ए लोक कथा ल सुवा गीत म अइसन पिरोय रहिथे, जेन ल सुनेमा अड़बड़ सुघ्घर अउ गुरतुर जनाथे, संग म हमनला शिक्छा तको मिलथे। जईसे:-

बेटा होवय त श्रवन जईसे, जुग जुग अमर होई जाए।

अंधरी अंधरा दाई ददा ल कांवर म तिरथ घुमाए, सुवा बोलत हे।

भाई होवय त लछमन जईसे राज पाठ ल ठुकराय, रघुराई संग वन चले बनवासी के जीवन ल बीताय, सुवा बोलत हे रे।

नारी होवय त सती सावित्री जईसे पतिव्रता कहिलाय, सत्तवान के रक्छा करेबर यमराज ल हराय , सुवा बोलत हे।


कईसे नाचथें सुवा नृत्य ल आवव जानन:-

धान लुवई के बेरा म ए लोकगीत ल अड़बड़ उत्साह के संग म गाए जाथे। एमा शि्व पार्वती के(गउरा गउरी) के बिहाव तको मनाये जाथे। माटी के गउरा गऊरि बनाके एकर चारों मुड़ा म घुमके सुवा गीत गाके नाचे के परम्परा हे।कुछ कुछ जगा म माटी के सुवा बनाके ए गीत ल गाए जाथे।

कब चालू होथे ए गीत ह आवव जानन:-

सुवा गीत ह देवारी के कुछ दिन पहिली चालू होथे अऊ देवारी के दिन ईसर गउरी गऊरा के बिहाव के संगे संग समाप्त हो जाथे। पुराना जमाना ले गाए जाने वाला ए गीत मउखिक हे। सुवा गीत म स्त्री मन बाँस के टुकनी म भरे धान के ऊपर म सुवा के प्रतिमा ल रख देथे।अउ एकर चारों डाहन गोल भाँवर होके नाचथे अउ गाथे। बाँस ले बने टुकनी ल जेन म धान अउ सुवा ल रखे रहिथे, ओला बोहइया ल सुग्गी केहे जाथे।

सुवा गीत ह हमेसा एक ही बोल ले शुरू होथे। अउ ओ बोल हरे :-

तरी हरी नहाना मोर नहाना सुवा रे मोर ले जाना मोरो संदेश।

अइसे टाईप ले गाथे अउ नाचथे। अब दुर्भाग्य के बात ऐ आए कि ए गीत ह सल्लग नंदावत जात हे। अब के नोनी मन ए नृत्य ल करेबर लजाथे, शरम मरथे। आज हमनला ए लोकगीत मन ल बचाय रखना हे। एहा पुरखा मन के देवल अनमोल उपहार हरे। एला हमनला संजोके राखेब ल लागही।


✍️ गणेश्वर पटेल✍️

ग्राम पोटियाडिह 

जिला धमतरी(छ ग).

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें