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मंगलवार, 8 अक्टूबर 2024

ग़ज़लें

नवीन माथुर पंचोली
1
किनारा  भी  वहाँ  मझधार  सा है।
जहाँ दरिया  किसी किरदार सा है।

हवा  के  साथ  ग़र कश्ती चले तो,
सहारा  वो  किसी  पतवार  सा है।

रहेगा  राह  भर  मिलकर   हमेशा,
मुसाफ़िर  साथ  में दिलदार सा है।

कभी  खामोशियाँ  कहती हैं हमसे,
इशारा   आपका   इकरार  सा  है।

कभी   आगे   कभी  पीछे  चलेगा,
ज़माना  चाँद  की  रफ़्तार  सा  है।

रिवायत इश्क़ है मुश्क़िल तो लेक़िन,
निभाना  भी  जिसे  दरकार  सा है।

2

कहने भर की  ख़ूब कमाई।
हँसती  है  हम पर  महँगाई।

बाजारों  के  भाव  सुने  तो,
नोटों  की कीमत झुठलाई।

धंधे  बाजों   की   आसानी,
मुश्क़िल में हैं कम तनख़्वाई।

कर-चोरी,कमतोल,मिलावट,
घोर    मुनाफ़ाख़ोरी    छाई।

रुपयों का व्यवहार रहा बस,
भूले   पैसे  ,  आना   ,पाई।

बढ़ता निजी का फैशन सब,
लगता  है  अब  जेब कटाई।

आजादी  के  इस आलम  में,
छूट  मिली  है  कितनी भाई।
3

हमें उस  राह  की हसरत नहीं है।
जहाँ  रफ़्तार  की  मुद्दत नहीं  है।

उन्हें कह दो तकल्लुफ़ छोड़ दें सब,
हमें  इस बात की  चाहत नहीं  है।

रखें  कैसे  वहाँ  व्यवहार अपना,
जहाँ  जज़्बात की कीमत नहीं है।

हमारे  नाम  की  तारीफ़  जितनी,
हमारे  काम  की  इज्ज़त नहीं  है।

कोई  कितना किसी के दरमियाँ है,
हमें  इस  बात की दिक्कत नहीं है।
4

बात  तब  बेअसर  हो  गई।
जब किसी को ख़बर हो गई।

हमनें  पर्दा     उठाया  ज़रा ,
चोर  सबकी   नज़र हो गई।

कुछ  कही न सुनी और पर,
बात  उनसे  मगर  हो  गई।

मिल गया राह में हमसफ़र,
जिंदगी  मुख़्तसर  हो गई।

जो दवा  थी सभी  के  लिए,
हमनें पी  तो  ज़हर हो  गई ।

दिन  की  बातें  रहे  सोचते,
जागते  रात   भर  हो   गई।
  ----  नवीन माथुर पंचोली
            अमझेरा धार मप्र
       मो 9893119724

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