रोशन साहू ( मोखला )
आगे हावय लोकतंत्र के, सबले बड़े तिहार ।
झन भुलाबे वोटिंग तारीख , दिन तिथि वार।।
जग मा बड़का लोकतंत्र, हमर भारत भुइयाँ ।
जनता ले जनता बर इँहा , जनता के सरकार।।
सुजानिक बुधियार ग संगी,तँय गजब हुसियार।
वोट डारे बर जाबे संगी, थोकिन काज बिसार।।
चल गा होरी,चल हल्कू,बहिनी धनिया,झुनिया।
चलव जुम्मन शेख,चौधरी,चलव ग झारा-झार।।
भड़कौनी मा झन आबे संगी,चुनबे छाँट निमार ।
लालच के घर खाली होथे,मन हावय उजियार ।।
काम-कमई,सरदी-गरमी,छट्ठी-बरही जिनगी भर।
पहिली वोट डारबे त खाबे,बिहाव मा लाड़ू चार।।
जिंहा नइहे लोकतंत्र उँहा,कपटी गरकट्टा सरकार।
खून-खराबा तानाशाही अउ अड़बड़ अतियाचार।।
टी वी,मोबाईल,पेपर सबो, समाचार ल जानत हव।
पास परोस के देस मा देखव,मचे रहिथे मारामार।।
जनता रूप जनार्दन के ,जनमत हावय सुख सार।
परजा धरम निभाबे पाबे, भारत माता के दुलार।।
दुनिया-दुनिया मा हावे गोठ ,जनतंत्र हमर हे पोठ ।
अंगरी स्याही निसान पाबे ,सँहराही तोला परिवार।।
रोशन साहू ( मोखला )
7999840942
खुद को समझा था तेरी महफ़िल की रौनक।
हैरान हूँ जो कहा तूने कि सिर्फ किरायेदार हूँ मैं।।
न चुका पाऊँगा मुझे ऐसे न आजमाओ औचक।
दूर से सही बस एक नजर कि तेरा तलबगार हूँ मैं।।
गर पहले मिल पाते तो,लिख पाता औ गीत गजल।
उम्र गुजरी बस यूं ही ,पल दो पल तो जी पाता मै।।
सच कहता तलाश थी ,रहबर रहगुजर की मुझे।
बस मुझको इतना पता,कुछ जख्म तो सी पाता मैं।।
क्या पता पिछला जन्म कुछ ऐसा जो कर गुजरे ।
यूँ न उठता समन्दर कि भर-भर आँसू न बहाता मैं।।
वो हिसाब लिए है बैठा ,शायद जन्मों-जन्मों का।
लगता हिसाब में गफलत,दुख बेहिसाब न पाता मैं।।
सिर्फ एक अफसाना कि,सुन लो सुनाना है तुझे।
तेरे दर से कईयों बार, लौटाया लौट आया मैं।।
वो कहते बर्बादियों का डगर,मगर संकरी सी भली।
जिस गली में न जाना था,जाकर न लौट पाया मैं।।
तुझे लगता कि फिक्र तेरी,मुझको तो न कभी रही।
बस तेरी इसी बात पे,बार-बार जार-जार रोया मैं।।
अब तो "मैं" खुद ही न रहा,अब तो बस 'तू' ही 'तू' ।
दूर से ही सही देखा तो,अच्छा है खुद को खोया मैं।।
मेरे जूतों से औकात जानने ,है माहिर ये जमाना।
सुनो कि अंतिम सफर में,औरों का मोहताज हूँ मैं।।
चेहरे ,कपड़े से कयास ,तो कभी अल्फ़ाज़ से मेरे।
सबने किए बिन पढ़े प्रमाणित फ़क़त राज़ हूँ मैं।।
रोशन साहू 'मोखला' (राजनांदगांव)
7999840942
।। मंद मंउहा ले मायन नाचा ।।
ढेंकी कुरिया मा ढेंरहा चुपे-चुप,चांटत हावय नून।
मिक्चर लाबे ढेंरहीन थोरकिन, मोर बात ला सुन।।
दूल्हा डउका संग मारत हावन, दूनों आधा-आधा।
सारा डेड़ सारा सकबोन बने,सबो साढू साँझ कुन।।
बर बिहाव मा आवय मजा,जब मन लागय रुमझुन।
सोमरस येला कहिथे ढेंरहीन,जे पियाय पावय पुन।।
तेल हरदी मायन पहिली,हम ला चाही मउहा पानी।
कूलर पंखा गद्दा सुपेती, बेवस्था चाही झटकुन ।।
मउहा पानी के ढेंरहीन तोला ,कतेक बतावँव गुन ।
शेर नाचा नाचबो नंगत,जब बाजही नागिन धुन।।
होरी कस गदर मताबो, सूपा चरिहा घलो ठठाबो ।
खीरा गोंदली चनाये माढ़े, लिमऊ लाबे नानकुन।।
अंटियावत बरतिया जाबोन,हम रहिबोन नंगत टुन्न।
हमर मान ले हावे ढेंरहीन,सबो महूरत सबो सगुन।।
पउवा पानी ले सनमान ,नइ ते हो जावय अपमान।
चड्डी घलो झन बांचय चाहे, उतरय धोती पतलून ।।
रोशन साहू ( मोखला )
7999840942
आवाज........
उनींद अलसाई सी भोर
रहती नित प्रतीक्षारत
आंगन बुहारते
देखूँ मैं
भोर की किरण
मेरी किंचित इच्छा.....
सूरज पर रख तवे
सेंकती नित रोटियाँ
कि ,जैसे-
मां का घर,
ननिहाल,
अब ससुराल,
रसोई ही मेरी दुनिया।
आँगन के मुंडेर पर चहकती
चिड़ियों का कलरव
सुन पाती हूँ
खिड़कियों के रास्ते ..
नन्ही चिड़िया को
दाना चुगाती माँ.....
कि
तेज होती जाती रोटियाँ बेलने
सेंकने की गति
हाथ अविराम
ना यति....
हाथों के फफोले का जलन
महसूस होता जब
इनके जीन्स
सासू माँ की चादर
बच्चों के कपड़े धोते...
उड़ चलीं
छत पर वे चिड़ियाँ नही है अब
गीत गाती चहकतीं स्वछंद
जिनके लिए
नित रख आती
सकोरे में दाना पानी....
जब मैं कपड़े सुखाने जाती
निहारती उन्हें कि दिख जाए वे......
कि
आवाज आती
अरी ओ महारानी!
मेरा खाना तो निकाल
दवाई भी तो लेनी है ?
रोशन साहू 'मोखला' राजनांदगाँव
7999840942
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