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मंगलवार, 8 अक्टूबर 2024

" नवरात्रि का पर्याय है , महिला सशक्तिकरण "


 

नवरात्रि विशेष ...
                             डॉ. सूर्यकांत मिश्रा
 


                     हिंदू धर्म में नवरात्रि का पर्व अनादिकाल से शक्तिपूजा के रूप में मनाया जाता रहा है । इन दिनों हम मां जगदम्बे के नौ स्वरूपों की पूजा अलग - अलग रूप में करते आ रहे हैं । यही एक पर्व है जो मां जगदम्बे को समर्पित है । हमारे मानवीय समाज में महिलाओं को भी मां जगदम्बे का ही स्वरूप माना जाता है । अब तो शासन स्तर पर भी महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं । इन्हीं योजनाओं में " महिला सशक्तिकरण " का संबंध नौरात्रि पर्व से जोड़ा जा सकता है । यदि हम यह कहें कि नवरात्रि पर्व महिला सशक्तिकरण का पर्याय है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । कारण यह कि नवरात्रि पर्व ही अकेला ऐसा पर्व है जिसे शक्ति और क्षमता का उत्सव कहा जा सकता है । नौ दिन तक पूजे जाने वाले मां दुर्गा के नौ रूप , स्त्री शक्ति की नौ कलाओं के परिचायक हैं । हम देखें तो मां दुर्गा के नौ रूपों में हर रूप में स्त्री शक्ति के अलग - अलग पहलू देखने को मिलते हैं । मां अम्बे के नौ स्वरूपों के प्रतीकवाद को समझकर हम समाज में महिलाओं की भूमिका और दुनिया में उनके योगदान को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं । इस पर्व के माध्यम से हमें यह अनुभव होता है कि महिलाओं में असीम शक्ति है , जो सृजन , पालन और संहार का दम - खम रखती है । आज की महिलाओं ने अपनी इस काबिलियत को अब पहचानना शुरू कर दिया है । यह भी माना जा सकता है कि नवरात्रि पर्व दिव्य स्त्री ऊर्जा का आनंदोत्सव है । यही वह पर्व है जो शक्ति के नौ स्वरूपों का सम्मान करता है । इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि यह पर्व महिला सशक्तिकरण और साहस का प्रतीक है ।
                       नवरात्रि का आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व अत्यंत गहराई लिए हुए है । इन नौ दिनों में से प्रत्येक दिन देवी दुर्गा के एक पहलू का प्रतिनिधित्व करता है । इसे ही हम महिला सशक्तिकरण से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ कह सकते हैं । यह पर्व महिलाओं में छिपी अंतर्निहित शक्ति और क्षमता की याद दिलाता है । यह पर्व यह भी बताता है कि कैसे महिलाएं दृढ़ संकल्प और दृढ़ता के साथ बाधाओं और चुनौतियों को परास्त  कर दिखाती हैं । वैसे भी देवत्व का सर्वोच्च रूप स्त्री को ही माना जाता है । शक्ति की देवी को मां जगदम्बे के रूप में जाना जाता है । ब्रह्मांडीय मां , अपने भक्तों की रक्षक और बुराई का नाश करने वाली हैं । हमारे धर्म ग्रंथों में यह स्वीकार किया गया है कि महान शक्ति से सुशोभित मां ने स्वयं को तीन मुख्य रूपों में प्रकट किया :- महालक्ष्मी , महासरस्वती और महाकाली । मां के यही तीन स्वरूप तीन - तीन और स्वरूपों में प्रकट हुए और फिर नौ दुर्गा के रूप में सामने आए । इन्हें हम मां शैलपुत्री , मां ब्रह्मचारिणी , मां चंद्रघंटा , मां कुष्मांडा , मां स्कंद माता , मां कात्यायनी , मां कालरात्रि , मां महागौरी , तथा मां सिद्धिदात्री के नाम से पूजते आ रहे हैं । जिस प्रकार हम मां के नौ स्वरूपों को पूजते हैं और अपनी हर मनोकामना पूर्ण करते हैं , ठीक उसी तरह आज धरती पर स्त्री ऊर्जा के एक ज्वलंत उदाहरण के रूप में महिलाएं खड़ी हैं । यही कारण है कि दुर्गा पूजा महिलाओं का उत्सव बन गया और  " मां दुर्गा " महिला सशक्तिकरण का पर्याय । 
                     मां जगदम्बे का प्रादुर्भाव क्यों और कैसे हुआ ? यह भी हमारे शास्त्र में उल्लेखित है । देवी पुराण में कथा मिलती है कि शारीरिक रूप से भैंसा और राक्षस के रूप में " महिषासुर " ने ब्रह्मा जी से वरदान पा लिया कि कोई भी मनुष्य उसे पराजित न कर पाए । इसके बाद उसी महिषासुर ने पृथ्वी और स्वर्ग में विनासकारी हाहाकार मचा दिया । स्वर्ग के देवताओं ने सामूहिक रूप से ब्रह्मा , विष्णु , महेश के सामने अपनी उक्त चिंता को प्रकट किया । यही वह समय था जब बारी शक्ति का जन्म हुआ । त्रिपुरारी देवों ने अपनी शक्तियों को एकत्र कर एक " योद्धा महिला " का प्रतिरूप तैयार किया । यही वह महाशक्ति थी जो मां जगदम्बे के रूप में प्रकट हुई । एक महिला को पूरी महिला सेना बनाकर देवताओं ने अनेक शक्तियां और हथियार प्रदान किए । विष्णु जी ने उन्हें सुदर्शन चक्र दिया । शिव जी ने त्रिशूल और भगवान गणेश ने तलवार प्रदान की । इसके उपरांत वही दिव्य शक्ति अपनी सवारी शेर पर सवार होकर स्वर्ग से उतरी और महिषासुर को ललकारने उसके महल में जा पहुंची । दस दिन तक चले भीषण युद्ध में मां दुर्गा ने दसवें दिन महिषासुर का सिर काटकर अपने दैवीय क्रोध का प्रदर्शन किया । नवरात्रि के आगमन के साथ ही यह हमें स्मरण कराता है कि महिलाएं प्राचीन काल से ही सशक्त थीं । इसे ही हमने देवी पूजा के अनुष्ठानों में व्यापक रूप में देखा और अनुभव किया है । 
              देवी मां का उत्सव मनाना स्त्री शक्ति का उत्सव मनाना है । यह हम सभी को स्त्रीत्व के वास्तविक अर्थ और आज उसकी स्थिति पर विचार करने की प्रेरणा प्रदान करता है । आज के राजनीतिक संदर्भ में महिला आरक्षण एक आवश्यक कदम है । जैसा कि महिलाओं द्वारा और राजनैतिक दलों द्वारा राजनीति मजबूरी के आधार पर सहमति व्यक्त की गई है , ताकि महिलाओं को उसी तरह सक्षम बनाया जा सके जिस तरह मां दुर्गा को शांति , सदभाव बहाल  करने और दुनिया की रक्षा करने के लिए त्रि देवों तथा अन्य देवताओं के द्वारा वरदान स्वरूप प्राप्त हुए थे । आज महिला सशक्तिकरण विशेष रूप से ग्रामीण और उपनगरीय क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है । जहां पितृसत्तात्मक समाज ने विभिन्न कुरूपों में रूपांतरित होकर एक समझदार दिमाग और सार्थक सामाजिक अस्तित्व के मानदंडों के सभी तर्कों धता बता दिया है । यह समाज महिलाओं को उनकी जाति और वंश के बावजूद सबसे निचले स्तर पर गिराता आ रहा है । हमारा समाज इस बात को तो स्वीकार करता है कि जन्म और मोक्ष को संभव बनाने के लिए एक नारी , एक शक्ति की परमावश्यकता है , बावजूद इसके महिलाओं का अपमान समाप्त नहीं हो पा रहा है! 
                    भारतीय परंपरा में मनोयोग पूर्वक की गई शक्ति की आराधना आध्यात्मिक कायाकल्प की वैज्ञानिक विधि का ही पर्याय है । इस साधना की समग्र सिद्धि इस बात पर निर्भर करती है कि साधक का मन निष्पाप हो । हृदय निष्कलंक हो और उसकी साधना मानवीय मूल्यों , आदर्शों के लिए समर्पित हो । शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा का नौ स्वरूप राष्ट्र भारती के रूप में प्रकट होता है । भारतवर्ष की सांस्कृतिक चेतना प्रारंभ से ही मातृशक्ति के प्रति श्रद्धा , सम्मान , अर्चन और वंदन के भाव से समर्पित रही है । यही कारण है कि हम सभी अपनी - अपनी मनोरथ सिद्धि के लिए विद्या , लक्ष्मी और शक्ति की उपासना करते आ रहे हैं । 
                             डॉ. सूर्यकांत मिश्रा
                             राजनांदगांव ( छत्तीसगढ़ )   9425559291

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