महँगाई
महँगाई भरमार हे, काय बतावँव यार।
भाजी पाला हा घलो, होगे हे सौ पार।।
धनिया मेंथी के भला, का पुछबे तँय भाव।
भाँटा मुरई काहथे, मोला झन गा खाव।।
महँगाई अतका हवय, होवत हाहाकार।
कइसे खाहव गोंदली, रोज साग मा डार।।
मिरचा संग पताल हा, अपन बतावत हाल।
बेंचत बैपारी सबो, होवत मालामाल।।
आलू राजा साग के, किम्मत अपन बताय।
महँगाई बाढ़े तभो, बारो माह खवाय।।
हरदी लहसुन तेल के, अब्बड़ होगे दाम।
रँधनी खोली भीतरी, कइसे चलही काम।।
मुकेश उइके "मयारू"
ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)
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