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सोमवार, 14 अक्टूबर 2024

खूब लडी दामिनी

 ✍️ खूब लड़ी दामिनी ✍️


     पर्वत थर थर कांप उठे

      आसमां भी रोने लगा

      धरती शर्म से लाल हुई 

     हुगली जल कलुषित  हुआ

        बंगाल के काले पन्नों मे़

        लिखी गई  कहानी  थी

      खूब लड़ी दामिनी  वह  तो

         डाक्टर बिटिया रानी थी .


       चीर हर बाधाओं को आई

        मन में एक  उत्साह  लिए

        मात् पिता का अभिमान 

      औ,दोस्तों का प्यार लिए

       ख़ुद को साबित करना था

         ऐसी वह मतवाली थी

       ख़ूब लड़ी दामिनी वह तो

       डाक्टर  बिटिया  रानी थी.


       मन में बस जूनून यही था

        कुछ करके दिख़लाना है

       कलकत्ता की सोंधी खुशबू 

          से भारत महकाना है.

            आंखों के सारे सपने 

        साकार वो करने वाली थी

        खू़ब लड़ी दामिनी वह तो

          डाक्टर बिटिया रानी थी.


       अभी पंख़ परवाज़ भरे थे

          आसमान भी दूर था

         शाहिन के कोमल पंखो पर

        नया नया सा जोश भरा था

         ना भूली ना भटकी थी वह

           खौफ़ से अनजानी थी

        ख़ूब लड़ी  दामिनी  वह  तो

         डाक्टर बिटिया रानी थी.


        आसमां का खुला निमंत्रण 

        चांद सितारों का अभिनंदन

        धरती का वह लेकर चुम्बन

        उड़ती फिरती नील गगन

        पंख़ो की ताक़त से नापे

           मीलों की लम्बाई थी

          खू़ब लड़ी दामिनी  वह तो

           डाक्टर बिटिया रानी थी.


          पर गिद्धों के क्रू द्दष्टि से

       बच ना सकी वह नन्ही परी

       नोंच लिया कोमल पंखों को

         ख़ून से लथपथ हुई परी

       लड़ती रही  अस्मत के लिए

        जो उसकी मंडला झांसी थी

        ख़ूब लड़ी दामिनी  वह  तो 

          डाक्टर बिटिया रानी थी .


       मर कर भी वह अमर हो गई 

       बन कर एक जलती मशाल

        विधि और विधान के लिए

       बनी दामिनी कठिन सवाल

       रसूख़दार फाईलों में उलझी

        झुलसी हुई कहानी थी

        ख़ूब लड़ी दामिनी वह तो

         डाक्टर बिटिया  रानी थी.

                ///ईति ///

       प्रमदा ठाकुर  अमलेश्वर 

      रायपुर छत्तीसगढ़.

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