धान पाकत हे
केकरा बिला ले झाँकत हे
मुँही हा सुक्खा होवत हे
समारू काँदी ला लू के ढोवत हे
काकी के फइरका देवावत हे
कका बड़का तारा लगावत हे
पानी बादर टरत हे
करगा झरगा झरत हे
दुकालू दुरा मा काँटा रूँधत हे
भुरवा,करिया कुकूर उँघत हे
चौंरा मा चैतू,बैसाखू सकलाए हे
ठेकेदार एडवांस धराए हे
चलत हे ईंटा भट्ठा के गोठ
नेवरनीन के निकले हे पेट पोठ
मोटरा पारा भर के बंधाए हे
भइया मोटर मा चघत बोरी अलगाए हे
नान नान लइका ला चघावत हे
परदेश कमाए बर जावत हे
भउजी कहत हे,
बड़े,घर द्वार ला देखे रइहा
आही हमरो आवास,फोन मा कइहा
सुन्ना परगे पारा
कका,काकी,मंगली,छोटकू,
मनटोरा आँखी मा झूलत हे
कमाए खाए जाए बर,
गाँव उसलत हे
राजकिशोर धिरही
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