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रविवार, 27 अक्टूबर 2024

लछमी रिसा गे


      "   लछमी  रिसागे "

सोला आना कहाँ गोठियाये ल आथे  l  "सोला आना के जमाना म लछमी  ला देखत रहेन l "  गुपती म, पठेरा म, तिजोरी म खन खन खन बाजत रहय l

जब ले  एकन्नी चवन्नी बंद होये हे अउ  बड़े बड़े नोट निकलीस बड़का मन चपक डरिन l तब ले लछमी रिसागे l

 ईमान  धरम म  एक आना  भाई बर, दू आना दाई बर,तीन आना बाई बरl तेरा आना सोज्झे फेंक मार  सेखी गोठ l उही ला पतियाथे सब l

"तेरा आना लबरा मन हमर ले ऊंच हे l "

 मोर सग संगवारी साँगा म झूलत हे राँगा बेचत बेचत l सोसाइटी के चाउंर खाके उही सोसाइटी के अध्यक्ष बन गे l तेरा मेरा आना  जाना शक म बोजागे l जलकुकड़ाई  अमागे l लछमी के जमाना रहिस  मुठा मुठा अन्न सूपा भर भर के निकलय l साल  बछर पुरगे l ओ जमाना के आदमी मन लछमी के आना ला  देखावय l 


लछमी रहय नहीं एके जघा l जाथे त  ओखी लगाके l तास पत्ती खेलने वाला मन बने जानथे l बस दाऊ अउ गौंटिया कहाई म फुले रहिगे l

गौंटिया के लोटिया डूब गे हवा हवाई म l दाऊ के  नाउ मन उदालहा बना दीस दाऊ ला पटका भर ला जान, अउ कुछु नई हे l कोदो कूटकी ले कोठी  पचासो साल ले भरे रहय l कोदो काला कइथे पूछथे बुजा मन l 

अपन बाप पाहरो ल नई देखे हे भैंस चरायअउ कसेली कसेली दूध पियय, पंडरु अस मेछ रावय l ओ समे म लछमी  मान जाय ओला मना लेवय l

गर म गहना ओरमाए रहय घर के लछमी मन l गोड़ कनिहा ले  नाक कान के ओरमत ले पहिनय l पुतरी बना के राखय 

पुतरी अस दिखत रहय घर म l

नौकर सौंजिहा मन देखे बर तरसे l लछमी मन ला घर ले बाहिर जान नई देवत रहिस l आघू पाछू दू झन संग म झूलत डोलत रहय l 

मजाल हे कोनो सीटी पार के देख ले कोनो l लछमी पति मुरकेट के मार दय l बहुत मान सम्मान घर घर म l

  जब ले लछमी बाहिर आना जाना करें ला धरे हे तब ले ओहा गुस्साए रहिथे l 

उल्लू सवारी करना बंद दीस l स्कूटी म सवार मोर लछमी माल ताल सब घूम आथे l लछमी सबला उल्लू  नई बना सकय l 

बैपारी मन ठेकेदार मन साहूकारमन नेता मन जतका लछमी ला आवत जावत देखे हे उही मन दरसन  करत हे l

    लछमी म तौलत हे बोरा बोरा  भर के l हमर बर काबर रिसागे हस माता?

एक एक रुपिया ला चिमोट के रखथ न इज्जत ले संभाल के ले

केरा पान अउ लाई म बैठार के मान गौन कर थन माता l 

छप्पन भोग डहर भुला जथस माता l

हमरो देहरी ला खुन्द लेबे माता!रद्दा देखत हन l


मुरारी लाल साव 

कुम्हारी

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