गौरी - गउरा या ईसर (शंभु)- गउरा। आदि परब " ईसर-गउरा जगार । अब बारा आना मिलावट अउ चार आना निमगा रहिगेहे। बिस्कुटक (विज्ञापन) के जमाना हर बड़ फरत फूलत हे । लोगन पसंद घलोक करत हे आज शंभु (ईसर) - गउरा परब गौरी -गौरा बनके रहिगे हे , जबकि गौरा -गौरी एकेच आय।
सुरहुत्ती के तको मायने हे वो दिन ले काय -काय जिनिस के सुरुवात होथे समझेल परही। प्रायः गांव म मूल संसकिरति ले जूरे किसान, मजदूर मन हर जादा रहिथे जेन मन मूल संसकिरति के ऊंचहा झंडा फहरइया माटी ले जूरे मनखे आय। माटी के काया, माटी म हे मिल जाना।" सिरिष्टि के अंग _धरती, पानी, पवन, आगी, अकास संग जीव जंतु, पशु - पंछी जनावर ला जय जोहार करे के परब आय सुरहुत्ती। फेर अब काहे- घर मा नाग देव भिंभोरा पूजे ला जाए जइसन होगे हे।"
सुरहुत्ती तिहार मा बिहाव संसकार अउ जिनगी के सुग्घर गायन हे। हमर गंवई गांव के देवी - देवतन ल लोक गीत के माध्यम ले जय जोहार करे जाथे। ये पुरातन संसकीरिति ला छेत्र के गोंड जनजाति समुदाय म विशेष रूप ले देखे जा सकत हे। एमा घर परिवार माई -पिल्ला के जिनगी के समृद्धि के सुग्घ्घर वरनन अउ बरनन हे। एक परकार के एमा सामाजिक परिवेश बिहाव "लोक गाथा" के सामरिक अनुखा नजारा देखे ला मिलथे।
ईसर- गउरा ल माटी ले गढ़ के बनाय के नेग -दस्तुर हे, आजकल लोगनमन रेडिमेंट ला खरीद के तको ले आथे।(ईसर देव मरकाम टोटम -बईला, गवरा दाई नेताम टोटम -केछवा)
*आवव ये परब के महिमा ला जानन_* कातिक महीना के अमावस्या तिथि के सात -पांच दिन पहिली "गउरा चौंरा" मा फूल कुचरे के नियम हे जेला गांव के महिला बेटी - माई मन करथे। सुरहुत्ती के दिन सबले पहिली एक निश्चित ठीहा ले माटी लाय जाथें जेन बेरा महिलामन लोक गीत गाथें -
*(1) ढेला ढेलवानी, मोर जऊंहर खेती, ढेला ला मारे कुदार....।*
_ये चुलमाटी गीत आय" गीत मा किसान ल समझाए गेहें कि किसानी कोनो सहज काम - बुता नोहे। माटी ल कोड़के उपजाऊ बनाय ला परथे तभे पईदावार बने हो सकत हे। माने खेती किसानी करना जऊंहर बुता आय।
*(2) जोहार -2 मोर ठाकुर देवता, सेवर लागंव मय तोर....*
हंसा चुगथे मूंगा मोती फूले वो चना के दार...।
- ये गीत मा ईसर -गउरा ला माध्यम बनाके सरधा - भकती भाव ले गांव के परमुख देवी - देवता जइसे ठाकुर देव, शीतला, साड़हा देव, भूमियार, गढ़माता, भैंसासुर, अउ बईगा- बइगिनमन ला जोहारत नेवता पठोय के भाव परगट करे गेहे। देवता के संगे - संग,गांव शहर ला जगाए के उदिम करे जावत हे। इहां एक पंछी हँस जेकर खान - पान के वरनन मिलत हे। गीत मा देवतन के संग चिरई -चिरगुन ला जोरे गेहे।
*(3) एक पतरी रैनी -भैंनी राय रतन वो..।*
गउरा देवी तोरे सीतल छाय , चऊंक ,चंदन, पिरोढ़ी,....
*_* ये गीत मा हर शब्द के महत्ता परगट होय हे । इहाँ महिलामन के गउरा दाई के परती परेम देखव अउ गीत के अरथ समझव आत्मवंदित संसकारित गीत रैनी -भैंनी माई के सखी- सहेली हे जो रतन (नवरत्न)के समान हे ये बिहाव मा गौरा महारानी के समान हे, जेन चऊंकी, चंदन,पीढ़ा संग सनमानित हे। पतरी (गोल पात्र) जेन समाज के परमुख अंग आय। जइसे - रोटी,बेटी, गोंटी, लेटा ,बेटा, फेंटा। ये गीत म नारी सनमान के भाव जगे हे नारी समाज मा सबले बड़े धन लछमी के समान हे।
*(4) ईसर राजा के रचे हों बिहाव,,,, गौरा बिहाय चले जाए..।*
-ये गीत के माध्यम ले झलकत हे कि बर - बिहाव के रचना होगे हे ,ईसर राजा सज -संवर के अपन गउरा रानी संग बिहाव करे बर जावत हे। संग मा संगी- साथीमन तको गगन - मंगन होके गमकत बरतिया बनके जावत हे।
*(5) ओगरी - ओगरी नव से ओगरी..*। जहां डरइया डांरे...।।
ये गीत ह संदेश देवत भाव परगट करत हे कि गांव मा बरतिया ओरी - पारी करके आगेहे। हर गांव के अपन बेवसथा होथे बाहिर ले आय उपद्रवी, बेड़जत्ता मनला डारना(दण्ड)। ये काम सियान मन करथे। जब ईसर -गउरा के आगु मा काँसा, डड़इयां चघथे त पेरा डोरी ले सांटा मारे जाथे। हाथ- पाँव मा तेल बाती ले सुमतेला देय जाथे, आखिर म हुम - धूप देवाके शांत करे जाथें।
*(6) लाले -2 परसा लाले हे खम्हार,,,। लाले हे ईसर राजा घोड़वा सवार...।।*
ये गीत मा ईसर राजा के बिरता रूपी सिंगार के बखान करे गेहे। जइसे परसा,खम्हार के फूल लाल रइथे वइसने ईसर देव लाल वेशभूषा बनाले हे बईला ला छोड़के घोड़ा मा सवार होगे हे। संग मा भरे पुरे सम्पत्ति के बखान गीत के माध्यम ले झलकत हे।
*(7) देतो दाई -2 दही अउ बासी,,,। अखरा खेलन बर जाहूँ वो दीदी...।।*
- येहर मउर सोपनी के बेरा गाय के गीत आय जेमा अपन सब्बो रिसतेदार मनला ओरिया - ओरिया के आसीरबाद मांगत हे। दही बासी गांव के लोकपिरिय भोजन आय जेकर ले सरीर पुष्ट , फुन्नांक होथे। अखरा पाली (अखाड़ा) ताकत आजमाए के ठीहा आय। ये एक परकार के फौजी बनेके तइयारी गीत आय।
*( 8) एक पतरी चढ़ाएन गउरा बेलवा वो बेलवाती,*
*आमच आमा फूले गउरा*
*मांझम वो चौंरासी*
*रोनिया के भोंनिया.......।।*
- ये गीत मा परकिरती संग मानुष के सुघ्घर मिलाप करे गेहे। गोल पतरी, तीन पाना वाला बेल के, आमा के डंगाली म जोत्था -जोत्था फूलना, सुख समृद्धि पाय के कामना उपमा सवरूप करे गेहे। मांझा - ऊंचहा सुभित्ता जगा। चौंरासी गढ़ म जनम धरना या 84 देवी- देवता के आसिरवाद पाना, चौरसिया होगेस रे...(एक कहावत) रोनियां- सीत" ठंड के मउसम ला इंगित करत हे। ये ढंग ले एमा भूत,भविष्य, वर्तमान लोक गायन म समाहित होगे हे।
*(9) काकर करसा रिगबिग -सिगबिग...।*
ईसर के करसा सिंहासन रे बाबू...। भाई वाले.... बिन भाई वाले.......।।
- करसा समृद्धि के परतिक आय, करसा बड़े होथे अउ कलश छोटे। एमा ईसर गउरा ला केंद्रीत करत भाई - बहिनी के परेम सुख- दुख के बात बताए गेहे। भाई वाले अउ बिना भाई वाले बहिनीमन कइसे करसा बोहथे। निराश बहिनी ल बार - बार ईसर -गउरा कोती ईसारा करत (बिस्वास)ढांढस बंधाए गेहे।
*(10) उठो उठो बड़े डरइया हो.. अंगना बटोरो..।।*
ईसर राजा अब बिहाव के बाद बड़े डरइया (दण्ड देने वाला) बनगेहे जेला बिहिनिया गउरा दाई उठावत हे। घर अंगना बटोरत अपन सास ल काहत हे, पियास लगही त करसा के पानी ल पी लेबे ,ठंडा लगही त पिसोरी पाठ कथरी ल ओढ़ लेबे, कोनो गरमी लगही त धुकनी (पंखा) मा धुक लेबे परिवारिक जीवन के भाव ये गीत मा समाय हे।
ये ढंग ले सुरहोत्ती मा लइका-सियान, बुढ़वा -जवान, माई -पिल्ला के सुख - दुख के गाथा संघर गेहे।
अइसने ईसर- गउरा ले संबंधित 20-25 सों गाना मिल जाहि जेमा जिनगी के सार तत्व छुपे हे। निश्चित रूप ले सुरहुत्ती मानवीय घरेलू जीवन, पराकिरतिक ग्रामीण सांसकिरतिक परिवेश के सुघरई के सुग्घर खजाना हे।
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*मदन मंडावी*
ढारा, डोंगरगढ़, छत्तीसगढ़
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