नेरवा गड़े घर पागे ।।
चारों मुड़ा सोर उड़त हे, राम अपन घर आगे।
जन मन के आस पुरागे, आनन्द मंगल छागे।।
जग न्यारा जे जग पसारा,घट घट हावे समाये।
हेरिक हेरा सबो हरागे पांचों तत् जेमा समागे।।
पबरित पावन अवधपुरी,लागे इंद्रपुरी लजागे।
जग लागे अइसे जइसे,सउहंत त्रेताजुग आगे।।
घरो घर फहराए पताका, ऊंच अगास हरसाये।
बनवासी मनवासी बिचित्तर,सबके साध पुरागे।।
जेखर नाम भव तारे सगरो,नेरवा गड़े घर पागे।
ग्यान भगति बैराग लागे,पावन भारत सकलागे।।
शून्य गगन होके मगन झर झर फुलवा बरसाये।
मनमोहनी बाल रूप मूरतिया नैनन आस पुरागे।।
/ बसन्त आना //
ओ राजा बसन्त इधर भी तो आना,
मेरी सँकरी गली ,नेम निभा जाना।
याद न जाती बरखा रानी की चुनर,
रख कण्ठ में हँसी,आना मुस्काना।।
पगले आम तो देखो बौराये हुए ये,
बिन निमन्त्रण पाती के आये हुए ये।
महुआ माते पलाश पगलाए हुए ये ,
नाचे बेगानी शादी में, होके दीवाना।।
ओढ़ पीली चुनर वो इठलाती चली,
घूंघट सरकाती पवन बासन्ती चली।
माथ दमके चंदा लजाई सी पगली,
रूप अनुप्रास उपमा,उत्प्रेक्षा मस्ताना।।
बासन्ती रंगे,रंग मन गहन प्राण की,
नीरस है जीवन बिन सुधा ज्ञान की।
काव्य सौंदर्य को मिली नई बानगी
कलम थामे हाथों,नित नया नजराना ।।
रोशन साहू ( मोखला )
7999840942
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