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रविवार, 7 अप्रैल 2024

राम राज्य


प्रिया देवांगन "प्रियू"

 /राम राज्य//

 स्वार्थ भरा जीवन क्या जीना, हँसकर समय बिताएँ।
नई उमंगे नये तराने, सीखें और सिखाएँ।।
छोड़ो कल की तुम बातों को, ये तो हुई पुरानी।
अब इतिहास रचें मिल करके, हो ये अमर कहानी।।

फूल खिले हर आँगन–गुलशन, मिले वक्त में रोटी।
मानवता को समझो सारे, रखो सोच मत छोटी।।
द्वेष भावना और अहिंसा, तज दो इनकी राहें।
धर्म सनातन दीप जलाकर, फैलाओ तुम बाॅंहें।। 

तप्त हृदय लेकर क्यों बैठे, जलते हैं अंगारे।
अपनेपन का मोल नहीं क्यों, हैं रिश्तों से हारे।।
करें माफ हम इक दूजे को, आओ गले लगाएँ।
मानव मन की इस बगिया को, मिल के हम महकाएँ।।

नहीं गाॅंठ पड़ने तुम देना, चलना सीधी रेखा।
रक्त रगों में इक सा बहता, ना करना अनदेखा।।
हम चौरासी भोग लिए अब, मानव तन है पाया।
राम राज्य फिर से लाना है, हमने स्वप्न सजाया ।।
 
बहती है पुरवाई//

माह फरवरी आतुर है मन,
                  धरा प्रेम बरसाई,
सुरभित गुलाब की पंखुड़ियाँ,
                शूल मध्य इठलाती।
देख दृश्य पुलकित है कण-कण,
                कोयल गीत सुनाती।।
पात–पात तरुवर झूमे जब,
                 संग बसंती आई।।

प्रणय गीत का भाव जगाती,
           कवियों की कविताएंँ।
 स्पर्श हृदय को करें शब्द ये,
             श्रृंगारित हो जाएँ।।
पग–पग जीवन उल्लास भरे,
               बहती है पुरवाई।।

पीले–पीले सरसों फूले,
           बृक्षारण महकाते,
भॅंवरे तितली मिलकर सारे,
             बैठ वहाँ हर्षाते,
लगे झूलने बौर आम के,
           झूम उठे अमराई।।

रूप बसंती सज बैठी जस,
               दुल्हन नई नवेली,
कभी सुहाने दृश्य दिखाती,
            रचती कभी पहेली,
बॅंधे प्रीत में प्रियतम सारे,
             बजती है शहनाई।।


 

राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़


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