फिर बताशी फूल बूँदों के ,
खिले हैं डार पर ,
फिर बजी मुरली हवा की ,
साल वन में रात भर ,
फिर निचोड़ी पर्वतों ने ,
चूनरी बरसात की ।
मेघदूतों ने सुनाई ,
यक्ष की पीड़ा व्यथा ,
यक्षणी की आँख से बहती ,
उदासी की कथा ,
बेख़बर नचती रही है ,
किन्नरी बरसात की ।
छा गयी है फिर धरा के ,
कर्ण -फूलों की महक ,
गंध- गुच्छों को निहारा ,
तितलियों ने एक टक ,
फिर लजाई झौंपड़ी में ,
गूजरी बरसात की ।
कमलेश श्रीवास्तव ।
094250 84542
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